नोट- यह कोई धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि अपने-अपने धर्म में रहते हुए सर्वधर्म को एक व इन्सानियत को मानना है।
- 1. अपना उप नाम जैसे शर्मा, वर्मा, अरोड़ा, संधू आदि की जगह ‘‘इन्सां’’ लिखें या इसके साथ ‘‘इन्सां’’ लिखें।
- 2. शराब नहीं पीना।
- 3. मांस-अंडे का सेवन नहीं करना।
- 4. पर स्त्री व पर पुरुष को आयु के अनुसार बड़े हैं तो माता-पिता के समान, बराबर के हैं तो भाई व बहन के समान तथा छोटे हैं तो बेटा या बेटी के समान मानना।
- 5. 7 दिन में से कम से कम एक दिन या 6घंटे परमार्थी सेवा करना या महीने में 4-5 दिन सेवा करें।
- 6. सुबह उठने के बाद अपने से बड़ों के पांवों को हाथ लगाना, नारा लगाना और छोटे बच्चों कोे प्यार से आशीर्वाद देना व नारा लगाना।
- 7. लोगों को बुराईयां छुड़वाकर नाम/गुरूमंत्र के लिए प्रेरित करें क्योंकि सतगुरु के वचन हैं कि किसी जीव को अगर आप बुराईयों से बचाकर मालिक से जोड़ते हैं तो उसका सैंकड़े गाय पुण्य करने जितना फल मिलता है।
- 8. ठग्गी, बेईमानी, चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार की कमाई से सख्त परहेज करना। सदा हक-हलाल व मेहनत की कमाई करके खाना।
- 9. दिन का आगाज मालिक की अरदास व सुमिरन से होना जरूरी कि मालिक अच्छे कार्य करूं व सबका भला करूं, तेरे दर्श कर सकूं।
- 10. कुछ भी खाने से पहले मालिक का सुमिरन व अरदास करना कि मालिक रूहानी तंदुरुस्ती व ताजगी देना।
- 11. कमाई का 15वां हिस्सा सृष्टि की नि:स्वार्थ सेवा में अपने हाथों से दान करना या ‘शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग’ में देना ताकि जरूरतमंद की सहायता की जा सके।
- 12. अगर दान ही करना है तो खूनदान, विद्यादान, मरणोपरांत नेत्रदान या पूरा शरीर दान करना व सृष्टि की सेवा के लिए पैसा खर्च करना।
- 13. व्यवहार (लेन-देन) का सच्चा व खरा होना जरूरी।
- 14. ऊंच-नीच व जात-पात का भेदभाव बिल्कुल नहीं करना।
- 15. सभी नशीले पदार्थों से परहेज करना तथा दिनचर्या में कसरत को शामिल करना जितना हो सके अपना काम स्वयं करना।
- 16. अधिक ब्याज दर पर पैसे नहीं देना तथा किसी लाचार व गरीब का शोषण नहीं करना।
- 17. अभद्र शब्दों का प्रयोग न करके सदा मीठा बोलना।
- 18. ख्याल, वचन व कर्म में सच्चाई का होना जरूरी।
- 19. परनिंदा, ईर्ष्या व टांग खिंचाई को छोड़Þकर लोगों को मालिक की तरफ प्रेरित करना।
- 20. दीनता, नम्रता और सादगी में रहना।
- 21. दहेज-प्रथा, बाल विवाह, भ्रूण हत्या, बाल-श्रम आदि कुप्रथाओं को छोड़कर एक अच्छे समाज का निर्माण करना, ध्यान रहे कि लड़की को परिजनों द्वारा स्वेच्छा से दिया गया धन व सामान दहेज नहीं है बल्कि यह लड़की का हक है।
- 22. लड़के-लड़की को एक समान मानना व बराबर का हक देना।
- 23. किसी को मुसीबत व दुर्घटना में फंसा देखकर उसकी यथा संभव सहायता करना।
- 24. हट्टे-कट्टे भिखारी को भिक्षा न देकर उसे मेहनत करने के लिए प्रेरित करना।
- 25. भूखे को खाना, प्यासे को पानी, लाचार को सहारा, अनपढ़ को शिक्षा और संभव हो तो बेरोजगार को रोजगार देना।
- 26. किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुंचाना।
- 27. अपने गुरू की निंदा न सुनना तथा न ही बहस-बाजी में पड़ना, न ही किसी की निंदा करना।
- 28. कुसंगत से बचकर हमेशा भजन सुमिरन व अच्छी बातें करने वालों का संग करना।
- 29. पूरी गैरत (अणख) से सच के मार्ग पर चलना।
- 30. न जुल्म करो और न सहन करो।
- 31. परोपकार ही धर्म है व इन्सानियत ही जात है।
- 32. नियमानुसार लगातार सुमिरन करना। कम से कम आधा घंटा सुबह और आधा घंटा सायं को सुमिरन करना।
- 33. हो सके तो दो से चार सुबह नाम जपो आधा या एक घंटा। फिर नाश्ता करना, मेहनत की कमाई, परिवार को समय, सोने से पहले आधा या एक घंटा नाम जपें, सही समय पर सोना।
- 34. सर्वधर्म इन्सां लॉकेट हमेशा पहन के रखना ताकि, हम एक व मालिक भी एक है, याद रहे।
- 35. अपने देश व अपने सच्चे सतगुरु की आन-बान-शान के लिए मर मिटना।
- 36. अहिंसा का पालन करना। अर्थात किसी भी जीव की हत्या नहीं करना और न ही उसे सताना।
- 37. जब कोई औरत गर्भवती हो तो उसको चाहिए कि वह अपने धार्मिक ग्रंथ, शब्द, सत्संग व योद्धा-शूरवीरों की कथाएं पढ़े और देखे। इससे होने वाले बच्चे के जीवन पर बहुत अच्छा असर होता है।
- 38. खाना खाते समय सत्संग या भजनों की कैसेट या सीडी ही सुनना और देखना।
- 39. कहीं भी कोई अश्लीलता (जैसे अश्लील टी.वी. में, फिल्म या पत्रिका इत्यादि में) हो तो उससे परहेज करना।
- 40. पेड़-पौधे लगाएं व उसकी संभाल भी करें ताकि वातावरण शुद्ध रहे।
- 41. अगर कोई बहन छोटी उम्र में विधवा हो जाती है तो उसका दोबारा विवाह करवाना। अगर नहीं करवा सकते तो डेरा सच्चा सौदा, सरसा के कमरा नं. 50 में संपर्क करवाना।
- 42. पाखंड व दिखावे से दूर रहना जैसे मढ़ी-मसाना, भूत-प्रेत, टोने-टोटके, मरणोपरांत फिजूल खर्चे, ढोंगी गुरू आदि से हमेशा दूर रहना।
- 43. समाज में फैली कुरीतियों व बीमारियों के प्रति सजग रहना व सजग करना।
- 44. बदलते हुए समय की मांग के अनुसार बुजुर्गों को चाहिए कि बच्चों को कुछ करने का मौका दें और गृहस्थ की जिम्मेवारी बच्चों पर डाल कर खुद भक्ति मार्ग अपनाना।
- 45. कुछ मिला है तो उसका अहंकार न करें और जिसकी चाह है उसके लिए ईमानदारी से मेहनत व सुमिरन करना। चिंता (टैंशन) नहीं करना।
- 46. जब भी गुस्सा आता है तो नारा लगाकर ठंडे पानी का गिलास पीकर पांच मिनट सुमिरन करना। जहां तक संभव हो क्रोध से बचकर रहना।
- 47. मालिक की सृष्टि से नि:स्वार्थ प्रेम करना।
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