देश में पर्यटन उद्योग के लिए किसी भी प्रकार की समस्या नहीं, बशर्ते सरकारी तौर पर पूरे प्रबंध हों। झारखंड में रोप-वे हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई। हादसे के बाद राज्य सरकार के प्रबंधों पर सवाल उठने लगे हैं, वहीं लापरवाह सिस्टम ने पर्यटन उद्योग को बड़ा झटका लगाया है। किसे भी हादसे के घटित होने के वास्तविक कारणों को पता लगाना बहुत जरूरी होता है, ताकि उन खामियों को दूर किया जा सके और भविष्य में दोबारा ऐसा कोई हादसा न हो। लेकिन मौजूदा परिस्थितियां यह हैं कि कारणों की वास्तविक्ता या तो सामने ही नहीं आती या फिर जांच में कारणों का पता लगने के बावजूद कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती। खामियां कहां रही, यह जानने के लिए महीने या कई साल तक लग जाते हैं।
कई बार जांच का लंबा वक्त वास्तविक कारणों को छिपाने में भी मदद करता है। यह भी कड़वी सच्चाई है कि जितना मर्जी बड़ा नुक्सान हो जाए उसकी गंभीरता कुछ दिन तक ही रहती है। बाद में बात आई-गई हो जाती है। किसी नुक्सान के लिए दोषी आधिकारियों को बहुत कम मामलों में ही सजा होती है। ताजा रोप-वे हादसे के साथ-साथ लापरवाही का जिक्र हो रहा है। रोप-वे का निरीक्षण करने वाली तकनीकी टीम ने 24 खामियों का जिक्र किया है जिसकी तरफ ध्यान न दिए जाने की बात कही है। सरकारी कंपनियां पैसा खर्च करने से बचने के लिए कमियों को दूर नहीं करती या देरी से करती हैं। अधिकतर बड़ी घटना घटित होने के बाद ही कोई कदम उठाया जाता है।
तकनीकी रूप में भी हम बहुत पीछे हैं। हमारे देश के मुकाबले यूरोपीय देशों में हैरतअंगेज मनोरंजन के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाता है, वहीं हादसे नामात्र ही होते हैं। इन देशों में संभाल करने में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। हमारे देश में इस बात की विशेष जरूरत है कि मशीनरी की संभाल संबंधी प्रमाण-पत्र या एजेंसी द्वारा किए निरीक्षण के बोर्ड लगाए जाएं, ताकि पर्यटक संतुष्टि से किसी मशीनरी का प्रयोग करें। रजिस्टरों, कंप्यूटरों में अधूरा रिकार्ड सार्वजनिक नहीं होने के चलते खामियों भरे प्रबंध जानी नुक्सान का कारण बन जाते हैं। रेलवे और बसों की फिटनेस और संभाल की जानकारी बसों, रेल गाड़ियों के बाहर लिखित रूप में पेश की जानी चाहिए।
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