10 से 15 दिनों के अंतराल में प्रकोप बढऩे की संभावना
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जानकारी के अभाव में अंधाधुंध व महंगे कीटनाशकों के छिड़काव से बचें किसान : सहु
सच कहूँ/राजू ओढां। जट्ट दी जूण बूरी…. भले ही ये एक पंजाबी गीत की चंद पंक्तियां हैं लेकिन इस समय किसानोंं पर स्टिक बैठ रही है। इन दिनोंं की नरमें की फसल में उत्पन्न उखेड़ा रोग ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में किसान फसल को बचाने के लिए महंगे कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं। लेकिन फिर भी किसानों को राहत मिलती प्रतीत नहीं हो रही। इस स्थिति में कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को जानकारी के अभाव में अंधाधुंध रसायनों का छिड़काव करने की सलाह दी है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस रोग का प्रकोप अगस्त व सितंबर माह में अधिक होता है। इसका मुख्य कारण पौधे में पौषक तत्वों की कमी व सफेद मच्छर तथा चेपा का अधिक प्रकोप बताया गया है। फसल के अंतिम चरण में उत्पन्न इस रोग ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। उनका कहना है कि इससे नरमें के उत्पादन पर काफी विपरीत असर पड़ेगा। नुहियांवाली के किसान आसाराम नेहरा, डॉ. जगदीश सहारण, राजपाल वर्मा, रामकुमार नेहरा, लीलाधर जोशी व सुरजभान नेहरा ने बताया कि इस बार समय पर बरसात न होने के बावजूद भी फसल से अच्छी पैदावार होने की उम्मीद थी लेकिन ऐन वक्त पर नरमें में उखेड़ा रोग ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उन्होंने बताया कि नरमें को बचाने के लिए उन्हें मजबूरन महंगे रसायनों का सहारा लेना पड़ रहा है। कृषि विभाग के मुताबिक आगामी 10 से 15 दिनों के अंतराल में इसका प्रकोप अधिक होने की संभावना है।
ये है कारण व लक्षण :-
कृषि विभाग के सहायक तकनीक अधिकारी रमेश सहु के मुताबिक जहां खारा पानी है वहां पौषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिट्टी मेंं मौजूद होने के बाद भी पौधों को नहीं मिल पाते। इसके अलावा बरसात होने के कारण खेत में उपलब्ध पौषक तत्व काफी नीचे चले जाते हैं और पौधे की पहुंच से बाहर हो जाते हैं। इसका दूसरा कारण नरमें की फसल में सफेद मच्छर और चेपे का ज्यादा होना है। ऐसे में पौधे की पत्तियां न केवल पीली होकर गिरने लग जाती है अपितु पौधा भी सूखना शुरू हो जाता है।
ये है उपचार :-
अधिकारी के मुताबिक किसानों को चाहिए कि वे रोग आने की स्थिति में नरमें में रसायनों का अंधाधुंध छिड़काव न करें। इसके नियंत्रण के लिए 100 लीटर पानी में 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड दवा या 5 ग्राम सोडियम बैंजोइट का इस्तेमाल करें। इसके साथ-साथ एक किलोग्राम मैग्नीशियम सल्फेट के साथ 100 से 150 ग्राम बोरोन का प्रयोग करें। इसके 7 दिन पश्चात 2 किलोग्राम एनपीके (13:0:45) व 500 ग्राम जिंक सल्फेट का 2 किलोग्राम यूरिया के साथ घोल बनाकर 150 लीटर पानी में प्रयोग करें। कृषि अधिकारी रमेश सहु ने बताया कि अक्सर देखने में आता है कि किसान फसल में रोग आने पर महंगे कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। ऐसे में उन्हें दोहरे रूप से नुकसान झेलना पड़ता है। उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि कृषि विशेषज्ञों की राय के मुताबिक ही रसायनों का प्रयोग करें।
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