सरसा। अमर शहीद मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी (Shaheed Mangal Pandey) थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
तथा मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से (Shaheed Mangal Pandey) काटने से मना कर दिया था,फलस्वरूप उन्हे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। वहीं पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की बेटी ‘रूह दी’ हनीप्रीत इन्सां ने अमर शहीद मंगल पाण्डेय के शाहदत दिवस पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि ‘1857 के भारतीय विद्रोह’ के पहले क्रांतिकारी और शहीद, #मंगलपांडे को याद करते हुए, जिनके बलिदान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम का मार्ग प्रशस्त किया। भावभीनी श्रद्धांजलि!
Remembering the first revolutionary and martyr of the 'Indian Mutiny of 1857', #MangalPandey whose sacrifice paved the way for India's freedom struggle. Heartfelt tributes!
— Honeypreet Insan (@insan_honey) April 8, 2023
विद्रोह की तत्कालीन वजह
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर अत्याचार तो हो ही रहा था। लेकिन हद तब हो गई। जब भारतीय सैनिकों को ऐसी बंदूक दी गईं। जिसमें कारतूस भरने के लिए दांतों से काटकर खोलना पड़ता है। इस नई एनफील्ड बंदूक की नली में बारूद को भरकर कारतूस डालना पड़ता था। वह कारतूस जिसे दांत से काटना होता था उसके ऊपरी हिस्से पर चर्बी होती थी। उस समय भारतीय सैनिकों में अफवाह फैली थी कि कारतूस की चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई गई है। ये बंदूकें 9 फरवरी 1857 को सेना को दी गईं।
इस्तेमाल के दौरान जब इसे मुंह लगाने के लिए कहा गया तो मंगल पांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उसके बाद अंग्रेज अधिकारी गुस्सा हो गए। फिर 29 मार्च 1857 को उन्हें सेना से निकालने, वर्दी और बंदूक वापस लेने का फरमान सुनाया गया। उसी दौरान अंग्रेज अफसर हेअरसेय उनकी तरफ बढ़े लेकिन मंगल पांडे ने भी उन पर हमला बोल दिया। उन्होंने साथियों से मदद करने को कहा लेकिन कोई आगे नहीं आया। फिर भी वे डटे रहे उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर गोली चला दी। जब कोई भारतीय सैनिकों ने साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपने ऊपर भी गोली चलाई। हालांकि वे सिर्फ घायल हुए। फिर अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। 6 अप्रैल 1857 को उनका कोर्ट मार्शल किया गया और 8 अप्रैल को उन्हें फांसी दे दी गई।
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