सरसा। हमारे प्राचीन काल के पास बहुत कुछ अच्छा है हमें देने के लिए। आज भी हम बहुत सी चीजें अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं जो हम अपनी दादी नानी से सुनते आए हैं क्योंकि हम जानते हैं वह बातें या परंपराएं पहले भी और आज भी महत्वपूर्ण हैं। फर्क सिर्फ उन्हें अपनाने में आधुनिकरण का है। आधुनिकता को समझने के लिए परंपरा का ज्ञान होना बहुत जरूरी है क्योंकि उसकी जड़ वहीं से जुड़ी हुई है।
पुराने समय में पत्थर के दो पाटों के बीच में उन्हें डालकर पीसा जाता था। पत्थर से की गई पिसाई अनाज या दूसरे सभी से जाने वाली वस्तुओं के पौष्टिक तत्वों को बरकरार रखती है और आटे को गर्म होने से बचाती है जिससे उसके फाइबर नष्ट नहीं होते। पहले के समय में पूरे दिन के खाने के लिए सुबह ही घर की महिलाओं के द्वारा आटा पीस आ जाता था। उस समय आटे को कई दिनों के लिए पीसकर इकट्ठा करके नहीं रखा जाता था क्योंकि शायद वह जानते थे कि ताजे आटे और पीसकर रखे गए आटे की पौष्टिकता में बहुत अंतर आ जाता है। वहीं पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की बेटी ‘रूह दी’ ने इंस्ट्राग्राम पर रील डाली है जिसमें पुरातन समय की आटा चक्की के साथ रूह दी दिख रही है।
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