सरसा। सच्चा सौदा : कोई नया धर्म, मजहब, फिरका, सम्प्रदाय या कोई नई लहर नहीं है। यह ईंट, पत्थरों आदि से बनी कोई इमारत का नाम नहीं है और न ही किसी आदमी का नाम है। सच्चा सौदा- अर्थात ‘सच्च का सौदा’ सच क्या है ? सच्च है ओ३म, हरि, अल्लाह, राम, वाहिगुरू, परमात्मा और सौदा है उस मालिक परमात्मा का सच्चा नाम जपना, मालिक की भक्ति करना बिना किसी ढोंग, पाखण्ड, दिखावे के। यह पवित्र दरबार सभी धर्मों का सांझा सर्वधर्म संगम है। और बिना किसी की साझा सर्व धर्म संगम है। यहां पर सभी धर्मों का बराबर हार्दिक सत्कार किया जाता है। परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने सच्चे मुर्शिदे कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के हुक्म से सरसा शहर के बाहर शाह सतनाम सिंह जी मार्ग पर एक छोटी सी कुटिया बनाई और उसमें रूहानी सत्संग लगाकर ईश्वर- प्रभु की सच्ची भक्ति, मालिक के सच्चे नाम का प्रचार-सच्च का सौदा आरम्भ कर दिया। इसीलिए वह कुटिया सच्चा सौदा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
धीरे-धीरे पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने वहां पर एक डेरा बनाया जो डेरा सच्चा सौदा के नाम से जाना जाने लगा। डेरा सच्चा सौदा परम संत शहनशाह मस्ताना जी बिलोचिस्तानी तथा परम पिता शाह सतनाम जी धाम डेरा सच्चा सौदा सरसा आज जो हम देख रहे हैं ये पवित्र धाम उसी कुटिया का ही विस्तृत स्वरूप है। ये सब कुछ परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी के पवित्र वचनों द्वारा ही संभव हुआ है। डेरा सच्चा सौदा स्थापित करके परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, हमारे पीरो-मुर्शिद दाता सावणशाह जी का हुक्म है कि किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना, मेहनत-दसां नहुआं दी किरत कमाई करके खाना है। इसीलिए शुरू-शुरू में यहां पर सत्ब्रह्मचारी भाई अपने प्यारे मुर्शिदे-कामिल शहनशाह मस्ताना जी के हुक्मानुसार रोजाना जंगल से सूखी लकड़ियां बीन बीन कर लाते और उन्हें बाजार में बेचकर उसका राशन लाया करते थे।
पूज्य बेपरवाह जी ने सख्त मेहनत के द्वारा यहां पर एक बहुत सुन्दर बाग लगवाया और सब्जियां भी उगाई जाने लगीं और आपजी स्वयं भी कई-कई घंटे फावड़ा चलाते हुए परिश्रम किया करते। रोजाना ताजा सब्जियां व फल बाजार में बहुत कम दामों पर बेच कर आया करते। गोबर के उपले (पाथियां) बनाए जाते और वे सूखी पाथियां शहर में बेचने के लिए भेज देते। लोग अपनी गाड़ियों में कोई कपड़ा बेचता है कोई कुछ बेचता है लेकिन पूज्य बेपरवाह जी नई जीप में सूखी पाथियां भर कर बेचने के लिए कहते। सत् ब्रह्मचारी भाई अपने मुर्शिद प्यारे जी के हुक्मानुसार बाजार के चौक में खड़े होकर आवाज लगाते हुए सूखी लकड़ियां पाथियां बेचते कि ले लो ये सच्चा सौदा की है। रेट बहुत कम होते और लोग हैरान रह जाते। कभी दरबार का सारा सामान (टैंट, बर्तन, स्पीकर आदि) आंगन में बाहर निकलवा लेते और शहर में मुनादी करवा कर सामान की नीलामी कर दिया करते लेकिन दूसरी तरफ साथ-संगत में दुनिया के सामने नोट सोना-चांदी, कपड़े, कम्बल थानों के थान लुटा दिया करते।
इस तरह सच्चा सौदा की दूर-दूर तक मशहूरी होने लगी कि सच्चा सौदा में एक ऐसे फकीर है जो सुन्दर-सुन्दर मकान बिल्डिगें आश्रम के अन्दर बना लेते हैं और फिर अगले पल ही उन्हें गिरवा देते हैं। ऊंटों गधों, बकरियों को खूब बूंदी खिलाते हैं। कुत्तों के गले में नए-नए नोटों के हार पहना देते हैं और नोटों के टोकरे भर-भर कर हवा में सभी के सामने उड़ा देते हैं। लोग ज्यों ज्यों पूज्य शहनशाह जी के ऐसे करिश्मयी अद्भुत खेलों के बारे में सुनते त्यों-त्यों वे सच्चा सौदा की ओर आकर्षित होने लगे। इस तरह बहुत दूर-दूर तक सच्चा सौदा की मशहूरी होने लगी और दुनिया बहुत भारी संख्या में सच्चा सौदा में आना शुरू हो गई।
एक दिन परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने सच्चा सौदा की वास्तविकता को स्पष्ट करते हुए वचन फरमाया, हमारे पीरो मुर्शिद दाता सावण शाह साई ने हमें जो अपना नूरी खजाना बख्शा था हमने एक बाल जितना भी उसमें से खर्च नहीं किया। वो खजाना वैसे का वैसा दबा पड़ा है। हमारे बाद जो हमारी ताकत आएगी असीं तो दुनिया में नोट, सोना, चांदी, कपड़े, कम्बल बांटे हैं और वो ताकत अगर चाहे तो हीरे जवाहरात भी बांट सकती है। असी यहां पर मकान बनाए और गिराए और फिर बनवाए लेकिन वो ताकत बने बनाए मकान अगर चाहे तो आसमान से धरती पर उतार सकती है। सच्चा सौदा में इतनी संगत होगी कि तिल धरने की भी जगह नहीं होगी। अपनी ही गाड़ियां अपने ही स्पीकर और अपना ही सब सामान होगा और मौज दूर-दूर तक जाएगी। सरसा से नेजिया तक संगत ही संगत होगी। इतनी भारी भीड़ होगी कि थाली ऊपर से फेंके तो नीचे ना गिरे लोगों के सिरों पर ही रह जाए। हाथी पर चढ़कर दर्शन देंगे पर दर्शन फिर भी मुश्किल से हो पाएंगे।
हाथ कंगन को आरसी क्या
पढ़े लिखे को फारसी क्या।
आज सब कुछ ज्यों का त्यों हम सच्चा सौदा में देख सकते हैं।
महापुरुषों का वचन है : संत वचन पलटे नहीं पलट जाए ब्रह्मण्ड।
पूज्य बेपरवाह जी के हाथी वाले उपरोक्त वचन के बारे में मौजूदा पूजनीय हजूर महाराज जी ने चलती-फिरती स्टेज की ओर संकेत करते हुए साघ-संगत में स्पष्ट किया. भाई ! यह पूजनीय बेपरवाह जी का वचन था कि हाथी पर चढ़कर दर्शन दिया करेंगे। भाई । यह स्टेज हाथी ही है। यह आधुनिक हाथी है जो बिना खुराक व बिना तेल-पानी के चलता है।”
यह आज भी वोही सच्चा सौदा है जिसे परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी ने बनाया चलाया, परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने जिसे अपनी रहमत दया-मेहर से सजाया है और आज परम पूजनीय हजूर महाराज संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी की पावन व योग्य रहनुमाई में अपनी मेहनत परिश्रम व हक हलाल, दसी नहुआं दी किरत कमाई से टहक रहा है और अपनी पावन मर्यादा (रूहानियत व इन्सानियत की सच्ची सेवा) के आदर्श को लेकर दुनिया भर में जिसका नाम है। मालिक की अपार कृपा से सच्चा सौदा का नाम जबान पर आते ही श्रद्धा से सिर झुक जाता है। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपने एक भजन फरमाते हैं :
टेक :- सच्चा सौदा तारा अक्खियां दा,
साडे दिल दा चैन सहारा ए
जिंद वारिए गुरू तो लख वारी,
सानूं जान तों लगदा प्यारा ए
इस दर दे असूल निराले ने.
सारी दुनिया दे विच भाले ने।
इथे आउंदे कर्मा वाले ने,
इस दर दा अजब नजारा ए
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