जतीन्द्रनाथ ने भूख से मरना चुना

Jatindra Nath Das

जतींद्र नाथ दास 1904 में पैदा हुए था। इनको जतिन भी कहते हैं, पैदाइश की जगह कलकत्ता। बहुत हल्की उम्र में बंगाल का क्रांतिकारी ग्रुप ‘अनुशीलन समिति’ ज्वाइन कर लिया। केवल 16 साल की उम्र थी, जब आंदोलन के चलते दो बार जेल जा चुके थे। गांधी के असहयोग आंदोलन में भी चले गए थे। सन 1929 में आज ही की तारीख यानी 13 सितंबर को वो लाहौर जेल में शहीद हुए। 14 जून सन 1929 में जतींद्र अरेस्ट किए गए। डाल दिए गए लाहौर जेल में। उन्होंने कुबूल किया था कि उन्होंने बम बनाए, भगत सिंह और बाकी साथियों के लिए। वहां जेल में भारतीय राजनैतिक कैदियों की हालत एकदम खराब थी। उसी तरह के कैदी यूरोप के हों, तो उनको कुछ सुविधाएं मिलती थीं।

यहां के लोगों की जिंदगी नरक बनी हुई थी। उनके कपड़े महीनों नहीं धोए जाते थे। तमाम गंदगी में खाना बनता और परोसा जाता था। धीरे-धीरे भारतीय कैदियों में गुस्सा भरता गया और कुछ लोगों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया माने मांग पूरी न होने तक खाना-पीना सब बंद। मांग ये थी कि बराबरी मिले, राजनैतिक कैदियों को। कुछ लोगों ने भूख हड़ताल शुरू की, उनकी हालत खराब हुई तो बाकी कैदी भी हड़ताल पर चले गए। उन्होंने इस शर्त पर भूख हड़ताल शुरू की कि ‘जीत या मौत’।

26 जुलाई को आठ-दस आदमियों ने जतिन को दबोच लिया और नली के सहारे पेट में दूध डालना शुरू किया। दूध पेट की बजाये फेफड़ों में चला गया और जतिन-दा छटपटा उठे। उनके साथियों ने बहुत हल्ला किया लेकिन जब डॉक्टर पूरे आधे घंटे बाद दवाई लेकर आया तो जतिन ने दवाई लेने से साफ-साफ मना कर दिया। वे दृढ़ता से अपने साथियों से बोले- अब मैं उनकी पकड़ में नहीं आऊंगा। फिर वो कयामत का दिन आया। 13 सितंबर, इंसान बिना पानी पीये एक हफ्ता जिंदा रहता है। जतींद्र 63 दिन ऐसे ही झेल गए और फिर उनकी जिंदगी जीत गई।

 

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