पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के
पावन गुरगद्दी दिवस पर विशेष
सरसा। 28 फरवरी 1960 का वह ऐतिहासिक व खुशनसीब दिन जब सारी कायनात खुशियों से महक उठी थी। हर किसी का दिल अपने कामिल-ए-मुर्शिद के महा रहमोकर्म को देखकर रूहानी मस्ती से सराबोर हो रहा था। यह पवित्र दिवस था, जब डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूज्य मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही के रूप में विराजमान किया। रूहानियत में गुरूगद्दी की एक खास अहमियत है।
परमपिता परमात्मा संतों के रूप में हर समय दुनिया की संभाल करता है, वहीं समयानुसार अपना चोला भी बदलता रहता है। हालांकि पूर्ण संत-महात्मा अपने गद्दीनशीनी के बारे में पूर्व में ही इशारा कर देते हैं, किंतु इन्सान उन इशारों को तब समझ नहीं पाता। लेकिन जब इन्सान पूर्ण संतों के वचनों को साक्षात पूरा होता देखता है तो उसे उन वचनों की समझ आती है।
पूज्य सार्इं बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने भी अपने उत्तराधिकारी के बारे में बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया था। 1954 में पूजनीय शाह मस्ताना जी श्री जलालआणा साहिब में रूहानी सत्संग फरमाने पधारे। इसी दौरान एक दिन सार्इं जी रेतीले रास्ते से नजदीकी गांव गदराना जा रहे थे तो आपजी ने फरमाया, ‘आओ वरी! तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाते हैं।
जमीं पर एक पदचिह्न पर अपनी डंगोरी (लाठी) से गोल दायरा बनाते हुए जब पूज्य सार्इं बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने जब ये वचन फरमाए तो साथ में जो सेवादार थे, उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ। दरअसल थोड़ी देर पहले ही वहां से पूज्य परमपिता शाह सतनाम जी महाराज गए थे। रेत पर आप जी के पदचिह्न दिखाकर सबको स्पष्ट कर दिया।
कहते हैं कि कामिल फकीर द्वारा फरमाए गए वचन कभी व्यर्थ नहीं जाते। हुआ भी ऐसा ही, करीब छह वर्ष बाद इन्हीं वचनों को पूरी दुनिया ने अक्षरश: पूरा होते भी देखा, जब 28 फरवरी को पूज्य सार्इं मस्ताना जी ने मानवता पर बहुत बड़ा रहमोकर्म करते हुए पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज को ‘आत्मा से परमात्मा’ के खिताब से नवाजते हुए अपना उत्तराधिकारी बनाया।
गुरगद्दी की बख्शिश करने से पूर्व पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने आप जी की कई कठिन परीक्षाएं भी ली। घर-बार, आलीशान हवेली को तुड़वाकर घर का सारा सामान, जिसमें सुई से लेकर खेती बाड़ी का सामान और बड़े-बड़े संदूक तक शामिल थे, सब आश्रम में लाने का हुक्म फरमाया। फिर उसी सामान को बाहर सड़क पर रखकर रखवाली करने का आदेश हुआ।
परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात सड़क पर बैठकर सामान की रखवाली की और सुबह होते ही पूरा सामान साध-संगत में बांट दिया। परमपिता जी अपने सतगुरु पर पूर्ण विश्वास करते हुए हर परीक्षा में खरे उतरे। यह भी उस खुद-खुदा का एक विचित्र खेल ही था, क्योंकि शाह मस्ताना जी महाराज व परमपिता शाह सतनाम जी महाराज जी तो दो जिस्म एक जान थे, पर दुनियावी नजर में कुछ और नजर आ रहे थे।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का जन्म 25 जनवरी 1919 को हरियाणा के सरसा जिले के गांव श्री जलालआणा साहिब में आदरणीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी जैलदार के घर पूजनीय माता आसकौर जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया। आप जी का बचपन का नाम श्री हरबंस सिंह जी था।आप जी जब बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पास डेरा सच्चा सौदा में आए तो मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम बदल कर शाह सतनाम जी रख दिया।
बहुत ऊंचा व नेक दिल घराना, धन धान्य आदि जहां किसी भी दुनियावी वस्तु की कमी नहीं थी, चिंता थी तो केवल संतान की। एक बार गांव में एक फकीर का आगमन हुआ। पूज्य माता-पिता जी ने कई दिनों तक उस फकीर की दिल से सेवा की जिससे उस फकीर ने खुश होकर कहा-भगतो आपकी सच्ची-सेवा से हम बहुत खुश हैं। आप Ñकी सेवा भगवान को मंजूर है।
वह आपकी संतान प्राप्ति की सच्ची हार्दिक, कामना को अवश्य पूरी करेगा। आपके घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। इस तरह उस सच्चे फकीर की दुआ से पूज्य माता-पिता की 18 वर्ष की प्रबल तड़प उस समय पूरी हुई जब पूज्य परम पिता जी ने 25 जनवरी 1919 को उनके यहां अवतार लिया। आप जी बचपन से ही दयालुता के समुद्र थे। आप जी शुरू से ही घरेलू कार्यों की बजाए परमार्थी कार्यों में अधिक रूचि लेते थे और हर सम्भव लोगों का भला करते थे।
परम पूजनीय परम पिता जी जब से शहनशाह मस्ताना जी महाराज की पावन-दृष्टि में आए, पहले दिन से ही शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को उन्हें अपना भावी उत्तराधिकारी मान लिया था और उसी दिन से ही आप जी को अपने रूहानी नजरिए से डेरा सच्चा सौदा के दूसरे पातशाह के रूप में देखना आरंभ कर दिया था। जब समय आया पूज्य परम पिता परमात्मा ने पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के रूप में अपनी ईश्वरीय मर्यादा को सम्पन्न करते हुए अपने-आपको आपजी की नूरी बॉडी में जाहिर कर दिया।
दुनियावी नजर में पूज्य मस्ताना जी महाराज ने आप जी को दिनांक 28 फरवरी 1960 को प्रभावशाली शोभा यात्रा के द्वारा डेरा सच्चा सौदा में अपने उत्तराधिकारी बतौर दूसरे पातशाह विराजमान करने पर स्पष्ट कि या कि पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज स्वयं परमपिता परमात्मा का स्वरूप कुल मालिक हैं।
नोटों के हार पहनाकर पूरे सरसा शहर में जुलूस निकाला गया ताकि दुनिया में गुरगद्दी को लेकर कोई शंका न रहे। गुरगद्दी की पावन रस्म के दौरान सांई मस्ताना जी ने जोशीले अंदाज में वचन फरमाए-‘दुनिया सतनाम-सतनाम जपते मर गई, पर वो नहीं मिला। वो सतनाम ये हैं, जिनके सहारे खंड-ब्रह्मंड खड़े हैं।’ परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने दूर-दराज के क्षेत्रों में संत्संंगें लगाकर आडंबरों के चंगुल में फंसे असंख्य लोगों को जागरूक कर उन्हें रामनाम से जोड़ा।
परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने भी 23 सितंबर 1990 को भी उक्त परंपरा का निर्वाह करते हुए पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा की तीसरी पातशाही के रूप में गुरगद्दी पर विराजमान किया। आप जी सवा साल तक पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के साथ स्टेज पर विराजमान रहे।
आप जी ने गुरगद्दी के बारे में जो वचन फरमाए वो इतिहास में कहीं नहीं मिलते। आप जी ने फरमाया कि हम थे (पूज्य सार्इं मस्ताना जी के रूप में), हम हैं और हम ही रहेंगे(पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में )। इन पावन वचनों ने गुरगद्दी के बारे में कोई शंका रहने ही नहीं दी।
आज आप जी के ही रूप पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं से साढ़े छह करोड़ से भी अधिक लोग नशे इत्यादि बुराईयां छोड़कर सदकर्म के मार्ग पर चल रहे हैं। पूज्य गुरू जी ने कन्या भ्रूणहत्या, वेश्यावृति उन्मूलन तथा किन्नरों के उत्थान के लिए भी अभियान चलाया है।
पूज्य गुरू जी की पावन प्रेरणाओं का ही नतीजा है कि आज डेरा सच्चा सौदा की करोड़ों की साध-संगत दुनियाभर में मानवता भलाई के 133 कार्यों में जोर-शोर से लगी है। पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के पावन गुरुगद्दी दिवस को साध-संगत आज पावन महारहमोकर्म दिवस के रूप में मना रही है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।