World Sparrow Day 2025: पक्षियों के लिए पूज्य गुरु संत MSG की मुहिम क्या कहना! सरसा के चिकित्सक परिवार का गौरैया को बचाने में विशेष योगदान

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World Sparrow Day 2025: पक्षियों के लिए पूज्य गुरु संत MSG की मुहिम क्या कहना! सरसा के चिकित्सक परिवार का गौरैया को बचाने में विशेष योगदान

World Sparrow Day 2025: पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (Saint Dr MSG Insan) ने पक्षियों के संरक्षण के लिए ‘पक्षी उद्धार मुहिम’ चलाई हुई है, जिससे प्रेरित होकर डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों अनुयायी अपने घरों की छतों पर पक्षियों के लिए दाना(चोगा) पानी रखते हैं। गर्मी के मौसम में छतों पर दाना पानी रखने की यह अनोखी मुहिम पक्षियों के लिए वरदान साबित हो रही है। सच कहूँ समाचार पत्र भी पूज्य गुरुजी की पावन प्रेरणा पर चलते हुए हर वर्ष 11 जून को वर्षगांठ पर पक्षी उद्धार से संबंधित कार्य करता है। सच कहूँ से जुड़े पाठक इस दिन पक्षियों के सकोरे लगाकर पानी रखते हैं तथा दाना डालते हैं।

27 सालों से कर रहे हैं प्रयास, अपने घर को बनाया गौरैया का सुरक्षा आशियाना

World Sparrow Day 2025: सरसा (सच कहूँ/सुनील वर्मा)। गौरैया की चहचहाहट भर से हमारे घर-आंगन की उदासी दूर हो जाती है। सुबह आंख खुलने पर कानों में सुनाई पड़ती गौरैया की चहक, बरसात में घर के आंगन में एकत्र पानी में किलोल करता गौरैया का झुंड और रसोई की खिड़की पर लटकते हुए अंदर की तरफ झांकती गौरैया…। आधुनिकता की चकाचौंध और शहरीकरण के चलते ये सब अब अतीत की बातें हो गई है। Sirsa News

विश्व गौरैया दिवस पर विशेष | Sirsa News

मगर इन सबके बावजूद आज भी विलुप्त होती गौरैया को बचाने के लिए पेशे से चिकित्सक और पक्षी प्रेमी डॉ. संजीव गोयल पिछले 27 साल से कार्य कर रहे हैं। उनके घर आंगन में आज भी गौरैया सहित अन्य पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है। जिनको सुनकर मन को सुकून मिलता है। सुबह की चाय भी डॉ. गोयल, उनकी धर्मपत्नी व माता-पिता इन चिड़ियों की चहचाहट साथ पीते है, जिससे मन को शांति मिलती है। उनका कहना है कि अब तो वे इनकी (चिड़िया) भाषा भी समझने लगे है। जब कोई बड़ा पक्षी इनके पास आता है या उनसे जब यह अपने आप को खतरा मानती है तो चहचहाने लगती है।

जब हम इनकी आवाज सुनकर बाहर आते है तो स्पैरो हमें देखकर खुश हो जाती है। उनका कहना है कि इस कार्य में उनका पूरा परिवार उनका साथ देता है। क्योंकि पूरा परिवार चिड़िया के साथ इंजॉय करता है, क्योंकि जब चिड़िया पास होती है तो अकेलापन महसूस नहीं होता। डॉ. संजीव गोयल खुद ही गौरैया का संरक्षण नहीं कर रहे बल्कि अपने दोस्तों-मित्रों व अन्य लोगों को भी चिड़िया के संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे है। इसके लिए वे लोगों को नि:शुल्क बर्ड फीडर देते है, ताकि उनका संरक्षण हो सकें। Sirsa News

1998 में मामी से हुए प्रभावित, लगी गौरैया के संरक्षण की लग्न

पेशे से एक चिकित्सक डॉ. संजीव गोयल ने सच कहूँ से विशेष बातचीत में बताया कि जब वह 1998 में सरसा आया तो यहां सिफ दो-चार हाऊस स्पैरो, जिन्हें सोन चिड़िया कहते हैं, वो घूम रही थी। घर में आई उनकी मामी ने कहा कि पहले जब हम घर में चुल्हें चौके पर खाना बनाते थे तो चिड़िया आती थी और आटा लेकर चली जाती थी। लेकिन आजकल दिखती ही नहीं है। मामी द्वारा कही गई ये बात उनको घर कर गई। फिर उन्होंने सोन चिड़िया का संरक्षण करने की ठानी तथा लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी चिड़िया को फिर से नया जीवन देने का संकल्प लिया। इसके पश्चात उन्होंने इस पर काफी स्टडी भी किया और फिर घर में बर्ड फीडर लेकर आए।

डॉ. संजीव गोयल ने आमजन से आह्वान किया कि चिड़िया वातावरण की शुद्धता की निशानी है, जितनी ज्यादा चिड़िया होगी मानों हम उतना ज्यादा शुद्ध वातावरण में रह रहे है। हमारा आस-पास शुद्ध वातावरण हंै। उन्होंने कहा कि चिड़िया सबसे सेंसिटिव जानवर होता है, जो जल्दी से मर जाता है। अपने आप को यह अडॉप्ट नहीं कर पाता। इसलिए आमजन से अपील है कि घरों में ज्यादा से ज्यादा बर्ड हाउस लगाए। स्पैरो के लिए फीडर लगाए। ताकि इनको दोबारा से पुनर्जीवित किया जा सकें।

पक्षी भी समझते है इंसान की भाषा | Sirsa News

डॉ. संजीव गोयल बताते है कि चिड़िया संरक्षण के लिए उन्होंने घर में बर्ड फीडर लगाए। लेकिन दो से तीन महीने तक कोई भी स्पैरो उनमें नहीं आई। क्योंकि पक्षी सोचता है कि कहीं इंसान मुझे अपने जाल में फंसाने की कोई प्लानिंग तो नहीं कर रहा या पकड़ने का कोई तरीका तो नहीं अपना रहा। फिर तीन-चार महीने बाद धीरे-धीरे बर्ड फीडर में चिड़िया आनी शुरू हो गई और रोजाना खाना खाने लगी।

डॉ. गोयल ने बताया कि फिर उन्होंने पक्षियों के लिए घोंसले बनाए। उनका मानना है कि चिड़िया कभी भी पेड़ में अपने अंडे नहीं देती। पहले कच्चे मकानों में जो बाले (लकड़ी के डंडे) वाली छत हुआ करती थी उनमें पक्षी अपना घोंसला बनाकर उनमें अंडे देती थी या फिर अब स्पेशल लकड़ी के घोंसलों में अंडे देती है। इसलिए डॉ. संजीव गोयल ने अपने घर में दर्जनभर पक्षियों के लिए स्पेशल लकड़ी नुमा घर बनाए हुए है। अब उनके पास 60 से 70 हाउस स्पैरो है। उनका कहना है कि सर्दियों में इनकी संख्या कम हो जाती है और मार्च-अप्रैल में फिर इनकी संख्या बढ़ जाती है। Sirsa News

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