प्रेमी बलविन्द्र सिंह इन्सां सुपुत्र श्री गुरनाम सिंह निवासी सफीपुर खुर्द ब्लॉक दिड़बा जिला संगरूर(पंजाब)। प्रेमी अपने प्यारे सतगुरू संत डॉ. एमएसजी (पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) की अपार रहमत का एक जबरदस्त करिश्मा इस प्रकार वर्णन करता है। प्रेमी जी ने उपरोक्त घटना क्रम के बारे में लिखित में बताया कि घटना 17 मई 1998 की है। उस दिन सुबह-सवेरे मैं अभी घर पर ही था कि अचानक मुझे, मेरे कानों में यह बात सुनाई दी कि ‘भाई’, आज तेरा एक्सीडेंट होगा।
आवाज बहुत ही प्रभावी थी। मुझे बहुत ही डर लगने लगा कि बाहर गया तो कहीं सचमुच ही एक्सीडैंट न हो जाए, और पता नहीं क्या होगा? मैंने निश्चय किया कि आज बाहर जाते ही नहीं। मैं इसी सोच में था कि इतने में मेरे बापू जी कहने लगे, बलविन्द्र, तू स्कूटर ले जा और दिड़बा मंडी से कपड़ा लेकर आ। मैंने बापू जी से कहा कि बापू आज मैं साईकिल भी नहीं चलाऊंगा। परंतु ज्यादा मजबूर करने पर मैं सूट का कपड़ा लेने के लिए बस पर बैठकर दिड़बा मंडी गया। उन दिनों में मैं एक टेलर मास्टर ‘पटियाला टेलर्स’ की दुकान पर कमिशन पर काम करता था। वहां से मुझे मेरे उस्ताद ने किसी के यहां से नाप वाली कॉपी लाने के लिए कहा। मैंने अपने उस्ताद को भी जवाब दे दिया कि मैंने आज ना ही बाईक पर और ना ही साईकिल पर चढ़ना है।
मैंने उसे अपना अंदर का भय जाहिर कर दिया कि आज मेरा एक्सीडैंट हो सकता है, मरे को चोट वगैरह भी लग सकती है। लेकिन वह कहने लगा कि तू जग्गी को साथ लेकर जा और जाकर कॉपी ले आ। कॉपी जरूरी चाहिए थी कुछ नाप वगैरह देखने थे, कटाई आदि करना थी। तब मैं उसे (अपने उस्ताद को) जवाब नहीं दे सका और साईकिल पर कॉपी लेने चला गया। साईकिल वह लड़का चला रहा था और मैं आगे डंडे पर बैठ गया, नाप वाली कॉपी लेकर जब हम वापिस आ रहे थे, पातड़ां-संगरूर मेन रोड़ से सामने से एक मारूति वैन आ रही थी, मैंने अपने अंदर का भय प्रकट करते हुए साथ वाले लड़के से कहा कि वह मारूति वैन अपने ऊपर चढ़ेगी, ऐसा लगता है।
वह कहता कि नहीं यार, ऐेसे कैसे! लेकिन मुझे तो अंदर का भय सता रहा था, मैंने तो आगे बैठे हुए साईकिल की ब्रेक लगाई और वैन से काफी दूर पर अपनी साईकिल रोक ली। वह कहे कि वैन रोड़ छोड़कर इतनी दूर कैसे आएगी? हमने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति साईकिल पर वैन के सामने आ गया, मारूति वाले ने जैसे ही कट मारा, मारूति उसके साईकिल को हिट करते हुए सीधे ही हमारी तरफ (जबकि हम सड़क से नीचे खड़े थे) आ गई। मैंने उस लड़के से कहा कि अब यह मारूति अपने ऊपर चढेगी ही चढ़ेगी और सचमुच देखते ही देखते वैन हमारे साईकिल पर आ चढ़ी और मुझे साईकिल पर आगे डंडे पर बैठे हुए को अपने साथ खींचकर ले गई।
तुरंत मेरे मुंह से ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा निकला। मेरी आंखों के आगे एक दम से अंधेरा छा गया(घबराहट के कारण) ड्राईवर ने गाड़ी को रोकने की कोशिश तो शायद की होगी लेकिन गाड़ी उससे रूकी नहीं, क्योंकि वह भी बहुत ही घबरा गया था।
वह दो जनों के साईकिल में टक्कर मार चुका था और इसी घबराहट के चलते गाड़ी वो नियंत्रित नहीं कर पाया था और गाड़ी उसने आगे गंदे नाले की पुली में ठोक दी और फिर गाड़ी भी वहीं रूक गई। गाड़ी ने अपनी टक्कर से मुझे नाले में से घसीट कर नाले के बाहर फैं क दिया। इतना सबकुछ मात्र कुछ पलों में ही हो गया था। जब मुझे होश आया, मैंने देखा तो गाड़ी ऐन बिल्कुल मेरे सिर के पास रूकी हुई थी। इतने में सच्चे दाता पूज्य गुुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने साक्षात् मुझे दर्र्शन दिए, सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, बेटा ठीक-ठाक है? मैंने अर्ज की, कि पिता जी आपजी रहमत से ठीक हूं जी। इसके उपरांत शहनशाह जी ने मुझे स्वयं ही बाहर निकाला और फरमाया, ‘अच्छा भाई हम चलते हैं।’ मैंने अपने आपको गंदे नाले से बाहर सुरक्षित पाया।
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