सच्चे रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के जन्मदाता सच की मूर्त, प्रेम के पुजारी, गरीबों के हमदर्द, पहाड़ों से भी ऊंचे और समुद्र से भी गहरे प्रभावी गुणों से भरपूर शख्सियत पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी (Bapu Maghar Singh Ji) के गुणों को शब्दों में पूरी तरह संजोना असंभव है। उनका पूरा जीवन मानवता को ऐसा समर्पित रहा कि जो अपने आप में एक इतिहास बन गया।
पूजनीय बापू जी का जन्म सन् 1929 को राजस्थान के जिला श्रीगंगानगर की पवित्र धरती, पावन नमनयोग गांव श्री गुुरुसरमोडिया में पूजनीय पिता चिता सिंह जी व पूजनीय माता संत कौर जी के घर हुआ। आप जी के पूजनीय ताऊ जी श्री संता सिंह व पूजनीय माता चंद कौर जी ने आप जी को बचपन में ही गोद ले लिया था। इस कारण आप जी इनको ही अपने जन्मदाता मानते थे।
पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी (Bapu Maghar Singh Ji) परमात्मा की मेहर से महान शख्सियत थे, जिनको परमात्मा ने अपने रूप में संत अवतार को इस संसार में भेजने के लिए चुना। इससे बड़ी कुर्बानी और महान त्याग कोई और हो ही नहीं सकता कि 18 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद जन्मे अपने इकलौते व अति लाडले को उन्होंने अपने प्यारे मुर्शिद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के सिर्फ एक इशारे पर ही हंसते-हंसते समूह मानवता की सेवा के लिए उनको अर्पण कर दिया। कहने के लिए या फिर पढ़ने के लिए यह बात भले ही छोटी हो, लेकिन सोच कर देखें कि इतना बड़ा घराना, खुली जमीन-जायदाद होते हुए अपने इकलौते वारिस को महज 23 साल की आयु में अपने मुर्शिद-ए-कामिल के चरण कमलों में सदा के लिए समर्पित कर देना, आम आदमी का काम कदापि नहीं है।
आप जी का सारा जीवन मानव चेतना के लिए प्रकाश स्तंभ है। पूजनीय बापू जी का अपने लाडले से बेहद प्यार था और यह प्यार सारे गांव में मशहूर था। बापू जी अपने लाडले को बड़े होने के बावजूद गोद में उठाए रखते ताकि उनके बेटे को चलना न पड़े। आप जी की जीवन शैली सादगी का प्रत्यक्ष उदाहरण रही है। जो लोग यह सोचकर आते कि पूज्य गुरु जी के पूजनीय पिता जी से मिलकर आना है तो मिलने वाले पूजनीय बापू जी की सादगी को देखकर हैरान हो जाते और सादगी को प्रणाम (सैल्यूट) करते। बहुत बड़ी जमीन-जायदाद के मालिक और गांव के नंबरदार होने के बावजूद भी अहंकार की भावना उनके स्वभाव से हमेशा ही दूर रही।
आप जी की नजर में छोटे-बड़े वाली कोई बात नहीं थी। आप जी हमेशा ही अपने साथ काम करने वालों को अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। अपने घर आए किसी जरूरतमंद को उन्होंने कभी खाली हाथ वापिस नहीं जाने दिया। एक बाप जिसे अपने इकलौते बेटे से इतना प्यार हो कि उसके बिना एक पल भी न रह सके, परंतु एक ऐसा समय भी आया जब शायद उनके लिए बहुत ही बड़ी परीक्षा की घड़ी थी लेकिन इस घड़ी में भी उन्होंने अपने मुर्शिद-ए-कामिल के एक इशारे पर अपने इकलौते बेटे को डेरा सच्चा सौदा को समर्पित कर दिया। 23 सितंबर 1990 को वह घड़ी जब गुरुगद्दीनशीनी की पावन रस्म हुई तो पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी ने अपने सतगुरु जी के पावन अनमोल वचनों पर फूल चढ़ाए।
पूजनीय बापू जी (Bapu Maghar Singh Ji) ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से अर्ज की कि सार्इं जी! हमारा सब कुछ जमीन-जायदाद भी बेशक ले लो बस दरबार में केवल एक कमरा हमें रहने के लिए दे दो। पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी का पूरा जीवन ही परमार्थ की एक अमिट गाथा है। अपने जीवन की सुनहरी छाप छोड़ते हुए पूजनीय बापू नंबरदार मग्घर सिंह जी 5 अक्तूबर 2004 को इस नाश्वान संसार को अलविदा कहते हुए अपने मुर्शिद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की पावन गोद में सचखंड जा विराजे। ऐसी हस्ती को बार-बार नमन्, बार-बार सजदा। साध-संगत पूजनीय बापू जी की पुण्यतिथि 5 अक्तूबर को परमार्थी दिवस के रूप में हर वर्ष मानवता भलाई के कार्य कर मनाती है।