कैसे करूं बयां तेरी रहमतों को ,
बदला कई जन्म नहीं चुका सकते।
तेरे अहसान हम पर हैं करोड़ो ,
अरबों – खरबों जन्म तक नहीं भुला सकते।
तूने दर्द हमारे लेकर ,
खुद कष्ट उठाए हैं।
अश्रु पोंछ कर हमारे ,
दीप मुस्कान के जलाये हैं ।
अब रोशन है जिंदगी हमारी ,
इन अहसानों को ।
और बतला नहीं सकते ,
कैसे करूं बयां तेरी रहमतों को ।
बदला कई जन्म नहीं चुका सकते ।।
नशा छुड़ा कर खुशहाल ,
जिंदगी तुम कर रहे हो ।
नशे में डूबी खलकत को ,
जिन्दा कर रहे हो ।
मरी इंसानियत जिन्दा देख ,
सच ये नहीं झुठला सकते ।
कैसे करूं बयां तेरी रहमतों को ,
बदला कई जन्म नहीं चुका सकते ।।
तड़पते इंसान आपने ,
फिर बचाए हैं ।
देकर प्यार अपना ,
दर्द उनके सहलाये हैं ।
आत्माएं उनकी ,
शुक्राना तुम्हारा कर रही हैं ।
नशे की कुरूपता से अब वो डर रही हैं ,
इतने अहसानों को अब ।
वो जतला नहीं सकते ,
कैसे करूं बयां तेरी रहमतों को ।
बदला कई जन्म नहीं चुका सकते ।।
ख़ुशी के अश्रु हैं उनकी आँखों में ,
हरदम यूँ ही वो रहमत चाहते हैं ।
अब वो खुशहाल अपनी कहानी ,
हमें हंसकर बताते हैं ।
तूं दो जहां का मालिक ,
खुशहाली सबके घरों में लाएगा ।
जो है नास्तिक इस धरा पर ,
आस्तिक उनको भी बनाएगा ।
खेल तेरे मस्ताने ,
किसी और को नहीं बता सकते ।
कैसे करूं बयां तेरी रहमतों को ,
बदला कई जन्म नहीं चुका सकते ।।
कुलदीप स्वतंत्र
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