Subprime Crisis: भारतीय राजनीति में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति छायी रहनी चाहिए या जातिगत जनगणना। सामान्यतया भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति को सुर्खियों में छाए रहना चाहिए था किंतु चुनावों में जातीय कारकों से अधिक लाभ मिलता है क्योंकि लोग भूल जाते हैं कि दशकों से जातियां सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दर्शाते हैं न कि उस संस्था की चेतावनी को जो अर्थव्यवस्था पर पैनी निगाह रखता है। Reserve Bank
भारतीय रिजर्व बैंक ने उन तथ्यों को उजागर किया है जो आर्थिक स्थिति के बारे में सुखद संकेत नहीं दे रहे हैं। इनमें व्यक्तिगत ऋण और ऋण चूककर्ताओं में वृृद्धि के सबप्राइम संकट की परोक्ष चेतावनी भी शामिल है। मूल्यों में वृृद्धि के चलते रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत बने रहने दिया है। बैंक ने संकेत दिया है कि आम चुनावों तक रेपो रेट यही बने रहेंगे। दूसरे शब्दों में बैंक ने स्पष्टत: कहा है कि दरों में कटौती की बहुत कम गुंजाइश है। इसका अर्थ है कि ऋण लेने वालों चाहे वे वैयक्तिक हो या कारपोरेट, ऋण की लागत बढ़ती जाएगी। Reserve Bank
क्या ऐसी स्थिति में बिहार की जातिगत जनगणना महत्वपूर्ण है? अगस्त 2023 के आंकड़ों के अनुसार मुद्रा स्फीति की दर 6.83 प्रतिशत है जो जुलाई में 7.44 प्रतिशत थी और भारतीय रिजर्व बैंक की सहन सीमा 6 प्रतिशत से आगे चली गयी और रिजर्व बैंक चाहता है कि यह 4 प्रतिशत से नीचे आए और यदि यह लक्ष्य प्राप्त होता है तो अच्छी बात है और नहीं होता है तो चुनावों के बाद दरें बढ़ सकती हैं।
112 अत्यधिक पिछड़ी जातियां और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जो सरकार की उज्जवला गैस योजना के अंतर्गत आते हैं, वे यह जानकर खुश होंगे कि सरकार ने रसोई गैस सिलेंडरों के दामों में 200 रूपए की कटौती की है। इसके साथ ही व्यावसायिक सिलेंडरों की कीमतों में 300 रूपए की वृृद्धि की है। यह क्रास सब्सिडी है। इससे गैस कंपनियों को नुकसान नहीं हो रहा है किुंत इससे अनेक मदों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। इससे महंगाई और जीवन की लागत बढ़ेगी। गैस पर सब्सिडी के स्थान पर बाजार से अधिक राशि जुटाई जाएगी। तकनीकी रूप से देखें तो इससे तेल कंपनियों का खजाना सिकुड़ जाएगा किंतु बाजार की लागत रिजर्व बैंक के आकलन को गड़बड़ा सकता है और इससे बैंक का 5.2 प्रतिशत का भावी आकलन गड़बड़ा सकता है।
कमजोर वर्गों की प्रतिक्रिया के बारे में कहना आसान नहीं है। खुशहाली और कठिनाई की भावनाएं संतुलित नहीं हंै। ऐसी स्थिति में वे अपनी जातियों के अनुसार निर्णय ले सकते हैं और जिनके बारे में राजनीतिक रूप से कुछ भी भविष्यवाणी करना कठिन है। इससे अनेक अटकलें पैदा होती हैं और चुनावी पंडितों का कार्य कठिन हो जाता है। हालांकि रिजर्व बैंक का कदम चुनावी मुद््दों के पूर्णत: अनुकूल नहीं है किंतु इससे ये प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक नीति में उठाए कदम और अधिक महत्वपूर्ण होंगे।
अमरीका में स्थिति इसके विपरीत है। वहां पर फेडरल बैंक दरों में वृृद्धि कर रहा है और दरों में एक और वृृद्धि की संभावना और है किंतु वहां पर रोजगार का सृजन हो रहा है। बेरोजगारी की दर घटकर 3.8 प्रतिशत रह गयी है और मजदूरी में भी वृृद्धि हुई है। यह भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। अमरीका में दरों में प्रत्येक वृृद्धि से शेष विश्व से पूंजी का प्रवाह अमरीका की ओर होता है। इसका तात्पर्य है कि अन्य देशों में निवेश में गिरावट आएगी और भारत को इस बारे में चिंतित होना चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक चाहता है कि सरकार के बॉण्ड, जी-सेक, सिक्योरिटी. बिक्री आदि पहले ही अधिक हो चुके हैं। दस वर्ष के बॉण्डों पर कम प्रतिफल मिल रहा है। बैंक ने कहा है कि वह तरलता के प्रबंधन के लिए उसके कदमों का लाभ नहीं मिला है। कुल मिलाकर अमरीका और जी सिक्योरिटी के बीच प्रतिफल में अंतर निचले स्तर तक पहुंच गया है और इससे रूपए-डालर की विनिमय दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। डॉलर पहले ही 83.25 रूपए तक पहुंच गया है।
बैंक के खुला बाजार कार्य बॉण्ड की कीमतें गिर रही हैं। किंतु अमरीका में 20 वर्ष के बॉण्ड की कीमतें भी बढ़ रही हैं। मुद्रा की दरों का प्रबंधन करना कठिन हो रहा है। आवास क्षेत्र में ब्याज दरों में परिवर्तन करने से यह आशा जगी है कि बिक्री बढ़ सकती है किंतु यह भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास के लिए सांत्वना की बात नहीं है। वे व्यक्तिगत ऋणों के बारे में चिंतित हैं और उन पर निगरानी रखी जा रही है।
वार्षिक आधार पर अगस्त 2023 में व्यक्तिगत ऋण बैंकों के ऋण का 37.7 प्रतिशत है। मौद्रिक नीति समिति की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 33 लाख करोड़ और 2021 में 29 लाख करोड़ की तुलना में 2023 में यह 40 लाख करोड़ रूपए से अधिक है। इन ऋणों में क्रेडिट कार्ड ऋण में अगस्त में 23 प्रतिशत की वृृद्धि हुई है, वाहन ऋण में 21 प्रतिशत और आवास ऋण में 14 प्रतिशत की वृृद्धि हुई है। भारतीय बैंकिंग सेक्टर में खुदरा ऋण की कंपाउंड वार्षिक वृृद्धि दर मार्च 2021 और मार्च 2023 के बीच 24 प्रतिशत की वृृद्धि हुई। Reserve Bank
भारतीय रिजर्व बैंक की वितीय स्थिरता रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है। यह बैंकों के सकल ऋणों की कंपाउंड वार्षिक वृृद्धि दर 13.8 प्रतिशत से काफी अधिक है। असुरक्षित खुदरा ऋणों की हिस्सेदारी मार्च 2021 से मार्च 2023 में 22.9 प्रतिशत से बढ़कर 25.2 प्रतिशत हो गयी है जबकि सुरक्षित ऋण 77.1 प्रतिशत कम होकर 74.8 प्रतिशत रह गयी है। जुलाई के अंत में बैंकों के असुरक्षित ऋण का कुल मूल्य 12 लाख करोड़ रूपए था।
नोमुरा ग्लोबल मार्केट रिसर्च की 29 अगस्त की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर ऋणों में बैंकों के लिए तात्कालिक जोखिम नही हैं किंतु विनियामक बार बार इन ऋणों में अत्यधिक वृृद्धि के बारे में चेतावनी दे रहा है और इससे निवेशक भी चिंतित हो रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक 2007-08 के वैश्विक सबप्राइम संकट जैसी स्थिति से चिंतित है तथापि शक्तिकांत दास ने ऐसी पुनरावृृति की संभावना के बारे में कुछ नहीं कहा है। इस क्षेत्र में अधिक चूक की प्रवृृति देखी गयी है। Reserve Bank
भारत में असुरक्षित ऋण भुगतान चूककतार्ओं की संख्या बढ़ रही है। व्यक्तिगत ऋण क्षेत्र में यह अप्रैल 2021 में 21.4 प्रतिशत थी और अब 21 अप्रैल 2023 को यह 32.9 प्रतिशत थी। बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 16044 उधारकतार्ओं पर कुल 396469 करोड़ रूपए का कर्ज है और यह राशि जानबूझकर चूककर्ता की श्रेणी में फंसी राशि में 41 प्रतिशत की वृृद्धि हुई है अैर यह दिसंबर 20220 में 245767 करोड़ रूपए से 1 लाख करोड़ रूपए अधिक हो गयी है।
इस बात के लिए अटकलें लगायी जा रही हैं कि जातिगत जनगणना के बाद ऋण माफी की मांग भी बढ़ेगी किंतु माइक्रो फाइनेंस उद्योग का कहना है कि उनके उधारकर्ता जानते हैं कि ऋण माफी की घोषणाआें से चूककर्ताओं की संख्या में वृृद्धि नहीं होगी या ऋण लागत में वृृद्धि नहीं होगी। राज्य और अन्य सरकारों को राजनीतिक दृृष्टि से इस ओर ध्यान देना होगा। कर दरों में मई 2024 तक परिवर्तन न हो किंतु बढ़े व्यक्तिगत ऋण और चूककर्ताओं की संख्या में वृृद्धि शुभ संकेत नहीं है जिसके बारे में भारतीय रिजर्व बैंक ने आगाह कर दिया है। Reserve Bank
शिवाजी सरकार, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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