मराठा समुदाय का आरक्षण को लेकर संघर्ष हिंसक रूप धारण कर गया है।
महाराष्टÑ में मराठा समुदाय का आरक्षण को लेकर संघर्ष हिंसक रूप धारण कर गया है। राज्य सरकार ने 72,000 नौकरियों में मराठों को 16 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान कर मामले को शांत करने की बजाय और भड़का दिया है। हिंसक भीड़ ने बसों को फूंक दिया। इस घटनाक्रम ने राजस्थान के गुज्जर आंदोलन व हरियाणा जाट आंदोलन की यादों को ताजा कर दिया है। दरअसल यह हालात बेरोजगारी की भयानकता व राज नेताओं की नाकामी व स्वार्थ का परिणाम है।
राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की नीति के कारण आरक्षण का सहारा ले रही हैं
बेशक सभी योग्य युवाओं को सरकारी नौकरियां देना सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन नौकरियों का विकल्प रोजगार के अन्य अवसरों के द्वारा बनाया जा सकता है जिस पर सरकारें गौर नहीं कर रही। राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की नीति के कारण आरक्षण का सहारा ले रही हैं जिसका परिणाम है कि जाति आरक्षण एक नियति बनता जा रहा है। देखा-देखी उच्च जातियां भी आरक्षण की मांग करने के लिए संगठित हो रही हैं।
बिगड़े हुए हालात सरकारों की पैंतरेबाजी के कारण बने हैं।
आरक्षण के साथ-साथ हिंसा भी स्थायी रूप से जुड़ती जा रही है। बिगड़े हुए हालात सरकारों की पैंतरेबाजी के कारण बने हैं। दरअसल यह मामला केवल कानून व व्यवस्था का मुद्दा नहीं बल्कि इसके पीछे राजनैतिक स्वार्थ, सरकारों की नाकामी जैसे कारणों का भी विश्लेषण जरूरी है। कई राज्य सरकारों ने जाति वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए आरक्षण मुद्दे को ऐसी हवा दी कि पचास फीसदी हद का भी ध्यान नहीं रखा।
हरियाणा में जाटों के लिए आरक्षण कानूनी पेच के कारण अदालतों में फंसे
राजस्थान में गुज्जरों को आरक्षण व हरियाणा में जाटों के लिए आरक्षण कानूनी पेच के कारण अदालतों में फंसे हुए हैं। दरअसल इसे राष्ट्रीय समस्या की नजर से नहीं देखा गया, इसका समाधान निकालने की बात तो दूर है। राज्य सरकारों ने अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति की। प्रत्येक पार्टी सभी जातियों के वोट बैंक को रूझाने के लिए घोषणाओं के तोहफे जरूर देती हैं। देश के राजनीतिक ढांचे व राजनीतिक ताने -बाने को रिझाने बनाने के लिए भारी नीतियां व कार्यक्रम लागू करने की सख्त आवश्यकता है।जाति संगठनों को भी चाहिए कि वह सरकारी नौकरियों को रोजगार का एकमात्र स्रोत न समझें, बल्कि अन्य कारोबार से भी लाखों युवा अपना अच्छा रोजगार चला रहे हैं। देश में ऐसी मिसालें भी हैं जब किसी ने सरकारी नौकरी छोड़कर अपनी रुचि व लगन पर आधारित काम कर लाखों-करोड़ों रूपए कमाए।
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