नेपाल-भारत संबंधों का पुर्ननिर्धारण

Nepal-India Relations

नेपाल में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना भड़काने के प्रयास में प्रधानमंत्री केपीएस ओली ने भारत के साथ एक विवाद और खड़ा कर दिया है। उन्होंने दावा किया है कि भगवान राम नेपाल के पश्चिम वीरगंज में थोरी में पैदा हुए थे। असली अयोध्या नेपाल में है न कि भारत में जहां पर वर्षों की राजनीतिक और कानूनी लड़ाई के बाद भगवान राम का मंदिर बनाया जा रहा है। कभी और की बात होती तो ओली के इस बयान को नजरंदाज कर दिया जाता किंतु प्रधानमंत्री के रूप में वे भारत के साथ एक और विवादास्पद मुद्दे को उठाना चाह रहे हैं।

ओली नेपाल में अपनी पार्टी और विदेश में चीनी नेतृत्व के दबाव में हैं। इसमें चीन का हाथ होने की संभावना है। चीन की राजदूत ओली और पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड़ के बीच सुलह का प्रयास करवा रही है। ओली द्वारा भारत विरोधी बातों को केवल नेपाल में राष्ट्रवाद को बढावा देना नहीं है। वे जानबूझकर और निरंतर भारत विरोधी रूख अपना रहे हैं और यह सब चीन की शह पर हो रहा है। उन्होंने हिंपी याधुरा, लिपुलेख और काला पानी के मुद्दे को उठाया और उन्हें नेपाल का भाग कहा। जब नेपाल ने अपना प्रादेशिक मानचित्र फिर से बनाया तो इस पर संसद में भी चर्चा हुई। उसके बाद ओली ने प्रादेशिक दावा कर भारत विरोधी भावना भड़काई। उन्होंने कहा कि भारत से आने वाला जीवाणु चीन और इटली से आने वाले जीवाणु से अधिक खतरनाक है।

अपनी पार्टी में समावेशी कार्यशैली न होने और भारत विरोधी रूख अपनाने पर जब उन्हें चुनौती दी जाने लगी तो उन्होंने फिर से भारत विरोधी बयान दिया और कहा कि भारत के साथ षड़यंत्र कर निहित स्वार्थी तत्व उनकी सरकार गिराने का प्रयास कर रहे हैं। इस पर उनकी पार्टी में भी विरोध हुआ और उनके विरोधी इस आरोप का प्रमाण मांगने लगे और उनके त्यागपत्र की मांग करने लगे। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति की बैठक बुलाई गयी जिसमें ओली से प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र मांगा जाना था या पार्टी के अध्यक्ष से त्यागपत्र देना था। किंतु इस बैठक को तीन बार स्थगित कर दिया गया और सुलह के प्रयास किए जा रहे हैं।

भगवान राम के बारे में ऐसा संवेदनशील बयान देने के पीछे तीन कारण हो सकते हैं। ओली समझते हैं कि प्रादेशिक राष्ट्रवाद से वे लोगों की भावना नहीं भड़का पाए न ही लोगों का ध्यान उनके अलोकप्रिय नेतृत्व से हटा। इसलिए उन्होंने इस धार्मिक मुद्दे को उठाया और उन्हें आशा है कि शायद इससे लोगों की भावना भड़के। भारत में सत्तारूढ भाजपा चीन और नेपाल दोनों देशों के कम्युनिस्टों की मुख्य प्रतिद्वंदी बन गयी हैं। भारत में भी भाजपा कम्युनिस्ट और कांग्रेस के रूप में विपक्ष का सामना कर रही है।

पिछले 20 वर्षों में चुनावी राजनीति में भाजपा की निरंतर सफलता का मुख्य कारण अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लगातार चलाया जा रहा अभियान है। इस मंदिर का निर्माण हिन्दू धर्म को मान्यता दिलाने और सांस्कतिक गौरव को बहाल करना है और ओली इस विवाद को खड़ा कर भाजपा की राजनीतिक पूंजी को नजरंदाज करना चाहते हैं। तीसरा, हो सकता है ओली सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर आधारित भारत और नेपाल के विशिष्ट संबंधों को बिगाड़ना चाहते हों। दोनों देशों की सांस्कृतिक एकता में दरार ड़ालकर ओली दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक मैत्री और प्रेम को तोड़ना चाहते हैं।

चीन कई देशों में भारी निवेश कर रहा है और वहां के राजनीतिक नेतृत्व और सेना के नेतृत्व को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहा है। नेपाल को संसाधनों की आवश्यकता है इसलिए वह चीन के हमलावर विस्तारवाद का आसान शिकार बन गया। भारत इसका मुकाबला कैसे करेगा? वह अपने पुराने विश्वसनीय मित्र नेपाल का विश्वास कैसे जीतेगा? वास्तव में भारत ने नेपाल की मैत्री को हाथ से खिसकने दिया।

समस्याओं के समाधान और संबंधों में सुधार के लिए भारत को हाल की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए कदम उठाने होंगे। इसकी शुरूआत 2015 में हुई जब नेपाल में संविधान निर्माण का कार्य शुरू हुआ। 2014 में मोदी ने नेपाल की यात्रा कर नेपाल की जनता का दिल जीता। नेपाल में मधेशी अपनी उपेक्षा के कारण विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और उन्होंने भारतीय सीमा को बाधित कर दिया था। भारत ने उनकी मांग का परोक्ष रूप से समर्थन किया और यह खराब रणनीति थी। भारत को नेपाल के साथ व्यवहार करना चाहिए न कि केवल मधेशियों के साथ। यह नेपाल का आंतरिक मामला था।

भारत मध्यस्थता और सुलह की पेशकश कर सकता था न कि जनता के एक वर्ग का समर्थन करता। बेशक वे भारतीय मूल के क्यों न हों। दूसरा भारत गुटनिरपेक्ष देश रहा है तथा अमरीका और सोवियत संघ में से उसका झुकाव सोवियत संघ की ओर रहा है। छोटे देश बड़ी शक्ति के साथ अपने संबंध रखना चाहते हैं किंतु यदि कोई देश किसी देश के साथ साझीदारी करना चाहता है तो उसे करनी चाहिए और भारत ने आज तक ऐसा नहीं किया। अमरीका और चीन के साथ भी वह ऐसी ही नीति अपना रहा है। चीनी तानाशाह भारत पर अपनी पसंद थोप रहे हैं। भारत ने भी दो अनौपचारिक शिखर बैठकों में चीन के प्रति झुकाव दिखाया और इससे यह संदेश गया कि भारत चीन को मनाने का प्रयास कर रहा है। साथ ही इससे नेपाल में भी संदेश गया कि यदि भारत चीन को मनाने का प्रयास कर रहा है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते।

महाबलिपुरम शिखर बैठक के बाद शी जिनपिंग नेपाल गए और उन्होंने वहां 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। तीसरा, जब ओली नेपाल के प्रादेशिक मानचित्र को फिर से निर्धारित कर रहे थे तो भारत ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और इसके बजाय सेनाध्यक्ष ने यह असंवेदनशील बयान दिया कि नेपाल यह चीन की शह पर कर रहा है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। भारतीय सेनाध्यक्ष नेपाली सेना का मानक जनरल होता है और यही स्थिति नेपाल के सेनाध्यक्ष की भी है और बेहतर होता कि नेपाल की घरेलू राजनीति पर कोई टिप्पणी नहंी की जाती। किंतु किसी देश की मांग या श्किायत को नजरंदाज करने से उसकी संवेदनशीलता को ठेस पहुंचती है।

भारत को नेपाल के साथ संबंधों में सुधार के लिए नई पहल करनी चाहिए और इस दिशा में पहला कदम यह होना चाहिए कि भारत नेपाल से स्पष्ट रूप से कहे कि उसे भारत और चीन के बीच रणनीतिक विकल्प चुनना है। भारत और चीन के बीच मतभेद सर्वविदित हैं और इनमें तब तक सुधार नहंी हो सकता जब तक चीनी साम्राज्य का विघटन नहीं होता या चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का तानाशाही शासन बहुदलीय लोकतंत्र में नहीं बदल जाता। साथ ही नेपालियों के साथ भावनात्मक संबंधों को बहाल करना होगा और नेपाल की इस आशंका का दूर करना होगा कि भारत उस पर दादागिरी कर रहा है। नेपाल को यह भी समझाना होगा कि राष्ट्रीय हित में उसके हित भारत के साथ जुड़े हुए हैं न कि विश्व के सबसे बड़े तानाशाही शासन चीन के साथ। सकल घरेलू उत्पाद बढेगा और घटेगा ंिकंतु समाज, राजनीतिक और सभ्यता को आगे बढाने के लिए आवश्यक संस्थानों को बढावा दिया जाना चाहिए।

                                                                                                                –डॉ. डीके गिरी 

 

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