-पूनम आई कौशिश : वरिष्ठ लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार
एक कांग्रेसी सांसद ने अपने विरुद्ध 204 मामलों की घोषणा की है जिनमें गैर-इरादन हत्या का प्रयास, जबरन किसी के घर में घुसना, डकैती, आपराधिक धमकी आदि के मामले शामिल हैं। ऐसे सदस्यों की संख्या 2004 मे 24 %, 2009 में 30% और 2014 में 34 % थी। राज्यों के बारे में कम ही कहा जाए तो अच्छा है। उत्तर प्रदेश में 401 विधायकों में से 143 अर्थात 36%, बिहार मे 243 में से 142 अर्थात 58% विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले चल रहे हैं जिनमें से 70 विधायकों अर्थात 49 % के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किए जा चुके हैं।
प्रश्न: अध्यापक: हमारे संवैधानिक लोकतंत्र मे संसद की क्या भूमिका है?
उत्तर: छात्र बोला, संसद लोक महत्व के मामलों पर चर्चा करने, विधेयकों की जांच करने और उन्हें पारित कर कानून बनाने, कार्यपालिका और राज्यों के संस्थानों के कार्यों की निगरानी करने तथा लोकतंत्र के इस पवित्र पावन मंदिर के प्रति सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण कार्य करती है।
अध्यापक: आप आंशिक रूप से सही हैं। आज संसद हल्ला गुल्ला, शोर-शराबा, अव्यवस्था, बहिर्गंमन, हाथापाई, माइक, कुर्सी टेबल तोड़ने का प्रतीक बन गई है। कुल मिलाकर यह तमाशा बन गई है।
इसमें कौन सी बड़ी बात है और संसद के मानसून सत्र के पहले सप्ताह में कुछ भी कार्य न हो पाने या तृणमूल सांसद के राज्य सभा सांसद द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री से कागज छीनकर फाड़ने पर अफसोस क्यों व्यक्त करें? सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पैगासस स्पाईवेयर विवाद पर बोल रहे थे। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस सांसद और आवास मंत्री पुरी के बीच तीखी नोकझोंक हुई और उसके बाद मार्शल को तूणमूल सांसद को सदन से बाहर ले जाना पड़ा।
इससे एक विचारणीय प्रश्न उठता है यदि हमारे माननीय सांसद इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं और केवल सत्र की अवधि से निलंबित किए जाने की सजा प्राप्त करते हैं तो फिर अव्यवस्था पैदा करने, रोड़ रेज या अन्य बातों के लिए आम आादमी को क्यों दोष दें क्योंकि क्या हमारे सम्माननीय सांसदों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करे।
किंतु यह कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है। पिछले मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने इस इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि राजनीति में दागी व्यक्ति अभी भी विद्यमान हैं हालांकि उसने पिछले वर्ष बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को आदेश दिया था कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट न दें। उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों, गुणों, उसके विरुद्ध आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी प्रकाशित कराएं।
राजनीतिक दलों द्वारा बिहार विधान सभा के दौरान उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा न किए जाने के विरुद्ध एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा, यहां विविधता में एकता है। हम विधायिका से कह रहे हैं कि वे ऐसे उम्मीदवारों के विरुद्ध कार्रवाई करें जिनके विरुद्ध आरोप तय किए जा चुके हैं किंतु कुछ भी नहीं किया गया है और किसी भी पार्टी द्वारा अपराधियों को राजनीति में प्रवेश करने या चुनाव में खडेÞ होने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है।
दुर्भाग्यवश हम कानून नहीं बना सकते हैं। दागी नेताओं या राजनीति को स्वच्छ करने में ऐसी कौन सी बड़ी बात है कि हमारे नेता इससे बचते रहे हैं और विशेषकर तब जब वे सफेदी की चमकार वाली राजनीति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और इस संबंध में अपने सच्चे प्रयासों को प्रमाणित करने के लिए किसी भी सीमा तक चले जाते हैं किंतु जब उनके शब्दों को व्यवहार में लाने की बात आती है तो वे अनजान बन जाते हैं आंखें बंद कर लेते हंैं।
हैरानी की बात यह है कि पिछले वर्ष सितंबर की स्थिति के अनुसार 22 राज्यों में 2556 सांसदों और विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले थे। यदि इसमें पूर्व विधायकों को भी जोड़ दिया जाए तो इनकी संख्या 4442 है। वर्तमान में लोक सभा के 539 सदस्यों में से 233 अर्थात 43 प्रतिशत सदस्यों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हंै जिनमें से 30 प्रतिशत के विरुद्ध गंभीर मामले हैं, 10 सांसद सजायाफ्ता हैं, 11 मामले हत्या, 20 मामले हत्या के प्रयास और 19 मामले महिलाओं के विरुद्ध अपहरण के हैं।
वस्तुत: उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक ऐसे विधायक हैं जिनके विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। राज्य में विधायकों के विरुद्ध 1217 लंबित मामले हैं। 446 मामले वर्तमान विधायकों के विरुद्ध है। भाजपा के 37 प्रतिशत विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं। राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए ऐसे उम्मीदवारों से पैसा मिलता है और ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को कानून से संरक्षण मिलता है। माफिया डॉन नेता का टैग प्राप्त करने के लिए इतनी भारी राशि क्यों निवेश करते हैं। क्योंकि यह नेता का टैग उन्हें अपनी राजनतिक शक्ति का प्रयोग कर जबरन वसूली का लाइसेंस दे देता है। वे प्रभावशाली बन जाते हंै और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके विरुद्ध मामले हटा दिए जाएं। इसके अतिरिक्त राजनीतिक निवेश पर प्रतिफल इतना ऊंचा है और यह इतना लाभकारी है कि अपराधी अन्य किसी चीज में निवेश करना नहीं चाहते।
आप राजनेताओं और अपराधियों के सांठगांठ को एक अस्थायी चरण मान सकते हैं किंतु त्रासदी यह है कि हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को अपराधियों ने हड़प लिया है जिसके चलते हमारे देश में आज राजनीति में अच्छे लोगों की कमी है और हमारे शासक आज व्यक्तिगत राजनीतिक लाभ के लिए कार्य करते हैं। बड़ी-बड़ी योजनाओं और सब्सिडी की घोषणा कर करदाताओं के पैसों का दुरूपयोग करते हैं, देश की परवाह नहीं करते। राजनीति के अपराधीकरण पर नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। समय आ गया है कि संसद लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन पर विचार करे और ऐसा कानून बनाए जिससे उस उम्मीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिले जिसके विरुद्ध गंभीर अपराधों में न्यायालय द्वारा आरोप निर्धारित किए जा चुके हैं।
इसके साथ ही हमें मतदाताओं को भी जागरुक करना होगा तथा राजनीति के अपराधीकरण के लिए सही स्थितियां पैदा कर लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ाना होगा। हमें तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा। भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए अयोग्य मानने के लिए एक व्यक्ति के विरुद्ध हत्या के कितने आरोप होने चाहिए। अपराधियों से राजनेता बने लोग कब तक बुलेट प्रूफ जैकेट, सांसद और विधायक का टैग पहनते रहेंगे? क्या अब ईमानदार और सक्षम नेता नहीं रह गए हैं? अन्यथा हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि आज के अपराधी किंगमेकर कल के किंग बन जाएंगे।
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