सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इस कलियुग में राम-नाम की चर्चा होना बहुत बड़ी बात है। आज इन्सान बहुत स्वार्थी हो गया है। जब उसे दु:ख होता है तो वह भगवान को याद करता है और सुख में भगवान याद भी नहीं आते। अगर इन्सान सुख में भी भगवान को याद करे तो उसे दु:ख आए ही ना। इन्सान ने अपने खाने-पीने, सोने, काम-धंधे, बाल-बच्चों व दुनियावी हर काम के लिए समय निश्चित कर रखा है, लेकिन उस मालिक के लिए इन्सान के पास समय नहीं है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि अगर इन्सान चाहे 15 मिनट ही मालिक के चिंतन में बैठे, लेकिन उस समय ध्यान पूरी तरह से मालिक की याद और सुमिरन में ही लगना चाहिए। अगर इन्सान पूर्ण मनोयोग से मालिक की याद में समय लगाता है तो हम गारंटी देते हैं कि उसके सूली जैसे कर्म कंकर में बदल सकते हैं। मालिक की भक्ति सच्ची तड़प से होनी चाहिए। मालिक सच्ची भक्ति से प्रसन्न होता है, चढ़ावे से भगवान खुश नहीं होता।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को कर्मयोगी होने के साथ-साथ ज्ञानयोगी होना भी आवश्यक है, वरना कर्म तो गलत भी हो सकते हैं। रिश्वत लेने, भ्रष्टाचार करने, किसी का हक मारने से इन्सान स्वयं अपने ऊपर दुखों का पहाड़ तैयार कर लेता है। हक-हलाल की कमाई से घर में सुख-शांति आती है। अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बीमार की सेवा में, गरीबों के भोजन में या पशु-पक्षियों की सेवा में लगाएं परन्तु इस घोर कलियुग में परमार्थ कम स्वार्थ अधिक हो गया है। स्वार्थ के कारण आज भाई-भाई का दुश्मन बना बैठा है। इन्सान खुदगर्ज हो गया है। इस कलियुग में मानवता खत्म होती जा रही है। अगर इन्सान राम-नाम का सुमिरन करे तो उसके भयानक से भयानक कर्म भी खत्म हो सकते हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मालिक की प्राप्ति के लिए सत्संग सुनना चाहिए। राम का नाम सभी रोगों की मुकम्मल दवा है। मालिक का नाम गंदी आदतें व नशे छुड़वा देता है। राम-नाम जपोगे, अल्लाह, राम, गॉड की भक्ति-इबादत करोगे और वचनों पर अमल करोगे तो कण-कण, जर्रे-जर्रे में ओम, हरि, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब्ब दर्श-दीदार से भी जरूर नवाजेंगे।
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