सेवा-सुमिरन करने से कटते हैं ‘संचित कर्म’

असफलता का कारण संचित कर्म | Religious Congregation

सरसा। इंसान इस दुनिया में अपने कर्म-चक्कर में उलझा हुआ है। ऐसे भयानक कर्म होते हैं, इन्सान को उनका पता भी नहीं होता। चौरासी लाख जूनियों में जीवात्मा घूमते हुए आखिर में मनुष्य शरीर में आई है और जन्मों-जन्मों के पाप-कर्म इस शरीर में भोगने पड़ते हैं। उक्त वचन पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां जी ने शाह मस्ताना जी धाम में शुक्रवार को प्रात:कालीन रूहानी मजलिस (Religious Congregation) के दौरान फरमाए।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कई बार इंसान कहता है कि उसने कोई पाप कर्म नहीं किया, गलत कार्य नहीं किया, तो पता नहीं क्यों दु:ख आते हैं? क्यों घाटा पड़ता है? क्यों असफलता मिलती है? तो इसका कारण है ‘संचित कर्म’।

मतलब कि पिछले जन्मों के पापकर्म इंसान को भोगने पड़ते हैं। आपने इस जन्म में कोई बुरा कर्म नहीं किया, लेकिन उन संचित कर्मों को खत्म करने के लिए आपने सुमिरन कितना किया? क्योंकि बिना सुमिरन वो कर्म कटते नहीं।

जब तक आप सुमिरन नहीं करेंगे, भक्ति नहीं करेंगे, तब तक आपके पापकर्म नहीं कटेंगे। इसलिए जब आप उन कर्मों का फल भोगते हैं, तो दु:ख-परेशानियां, असफलता आपको मिलती रहती हैं और तब आप संत, पीर-फकीरों, भगवान को दोष देते हैं।

सेवा-सुमिरन करोगे, तभी कर्म कटेंगे | Religious Congregation

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कई बार आप सेवा करते हैं, सुमिरन करते हैं, लेकिन आपकी औलाद, या आपके परिवार में कोई ऐसा होता है, जिसकी वजह से आप दु:खी-परेशान होते रहते हो कि मैं तो सेवा-सुमिरन करने वाला था!

फिर मेरे बच्चों में ऐसा क्यों हुआ! …तो, कुछ हद तक आपका किया गया सेवा-सुमिरन आपकी पीढ़ियों को दु:ख-दर्द, परेशानियों से बचाता है, लेकिन बेहद भारी कर्म जिसे भोगने पड़ रहे हैं, यदि वह खुद सेवा-सुमिरन करेगा, तभी उसके कर्म कटेंगे। क्योंकि हर कोई अपने कर्मों का मालिक है। इसलिए आप दोष भगवान को, सतगुरु को मत दो! दोष उसका है, जो सेवा-सुमिरन नहीं करता।

आप जी ने फरमाया कि कर्म भोगने वाले के कर्माें का लेखा-जोखा जब होता है, तो कई कर्म इतने भयानक होते हैं कि चाहे सारा परिवार सुमिरन करता रहे, तो पांच-सात प्रतिशत असर होता है, लेकिन सौ प्रतिशत असर तभी होता है, जब वह खुद सेवा-सुमिरन करे।

यही बात आप समझना नहीं चाहते। कई बार ऐसा होता है कि लोग सत्संग छोड़ देते हैं! राम का नाम छोड़ देते हैं! भक्ति करना छोड़ देते हैं, यह सोचकर कि हम तो भगवान का नाम लेने वाले थे! सत्संगी थे! तो फिर हमारे परिवार के साथ ऐसा क्यों हुआ? तो इस ‘क्यों’ का जवाब आपको बताया कि अपने कर्माें का बोझ हर किसी को उठाना पड़ता है। संतों के वचन जो मान लेता है, तो संत भगवान से प्रार्थना करके उनके कर्माें का बोझ हल्का करवा देते हैं।

डॉ. एमएसजी ने दी शिवरात्रि की बधाई | Religious Congregation

शुक्रवार को देशभर में मनाए शिवरात्रि पर्व की पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर देशवासियों को बधाई देते हुए शांति की कामना की। पूज्य गुरू जी ने देशवासियों से आह्वान किया कि वे अच्छे कर्म व सद्भाव से इस त्यौहार को मनाएं और इससे आपको सफलता जरुर मिलेगी।

 जो संतों की निंदा करता है, उसे दोनों जहान में दु:ख भोगने पड़ते हैं

  • संतों के वचन न मानना, सेवा-सुमिरन नहीं करना, मनमते चलना, वचनों में काट करना…
  • यह सब करके दु:ख का कारण आप अपने आप बना रहे हो।
  • फिर संंतों को दोष क्यों देते हो? इंसान की फितरत है कि खुद को दोष नहीं देता, परिवार को दे नहीं सकता,
  • आस-पड़ोस के लोग झेलेंगे नहीं और संत, राम, भगवान होते हैं, जिसको जो मर्जी दोष दे दो!
  • उसने कौन-सा कुछ गलत कहना है! पर आप भूल जाते हैं कि निंदा तो इंसान की ही बुरी होती है, मां-बाप की निंदा बुरी होती है,
  • संत, पीर-फकीर की निंदा के बारे में पवित्र ग्रंथों में लिखा है कि जो संतों की निंदा करता है, उसे दोनों जहान में दु:ख भोगने पड़ते हैं।
  • आप कहीं भी जाओगे कर्माें का लेखा-जोखा आपके साथ ही निपटेगा।
  • कर्मों से छुटकारा पाने का रास्ता राम-नाम व सत्संग के सिवाए दूसरा नहीं है।
  • सेवा-सुमिरन किया करो, ताकि आपके संचित कर्म कटते जाएं और आपकी जिंदगी में बहारें चारों तरफ से छा जाएं।

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