सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जो जीव ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक की याद में आकर बैठते हैं, उस परमपिता परमात्मा की चर्चा करते हैं, वो बहुत भाग्यशाली होते हैं या भाग्यशाली बन जाया करते हैं। जन्मों-जन्मों के संचित कर्म कितने हैं, इसका दायरा कितना बड़ा है, इसके बारे में कुछ भी लिख-बोलकर नहीं बताया जा सकता,
लेकिन यह हकीकत है कि जीव सत्संग सुनकर अमल करे तो जीव अपने भयानक से भयानक पाप-कर्मों से बच जाता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सत्संग सुनकर अमल करने का मतलब है कि आप नाम जपो, मालिक की औलाद से नि:स्वार्थ भावना से प्यार करो, कभी भी किसी का दिल न दुखाओ।
‘कबीरा सबसे हम बुरे, हम तज भला सब कोय’
अहंकारवश, काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, मन-मायावश जब जीव किसी का दिल दुखाता है तो उसकी भक्ति कटती है, वह खुद दुखी होता है और मालिक से दूर हो जाता है। इसलिए कभी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए। जब इतने बड़े महापुरुष, संत, पीर-फकीरों ने यह लिख दिया कि ‘कबीरा सबसे हम बुरे, हम तज भला सब कोय।
जिन ऐसा कर मानेया, मीत हमारा सोय।।’ कहने का मतलब है कि कहने को कोई भी कह देगा कि मैं ये हूं, वो हूं लेकिन जो लोग ऐसा मान लेते हैं कि मैं दूसरों को बुरा क्यों कहूं और वो वाकई किसी को बुरा नहीं कहता, बल्कि अपने आपको ही बुरा कहता है तो जो ऐसा कहकर मान लेते हैं, वो मालिक के मीत, प्यारे, अति प्यारे हो जाया करते हैं।
जो सत्संग सुनकर अमल करते हैं, वह खुशियों के हकदार बनते हैं
आप जी फरमाते हैं कि सत्संग में जीव को समझ आती है, लेकिन यह जरूरी है कि आदमी सुनकर अमल करे, तभी खुशियां हासिल होती हैं। सुनना अच्छी बात है। जैसे पत्थर गर्मी में रहते हैं तो किसी का पांव सड़ा देते हैं।
उस पर थोड़ा पानी गिरता रहे तो वो ठंडे रहते हैं। सत्संग सुनने से जीव चाहे अमल न करे फिर भी न सुनने वाले से तो बेहतर हैं लेकिन सुनकर अमल करने से ही खुशियां आती हैं, वरना किए कर्मों का भुगतान करना पड़ता है। इसलिए आप सत्संग सुनो, अमल करो और जो सुनकर अमल कर लिया करते हैं, वो ही दोनों जहान की खुशियों के हकदार बनते हैं। उन्हीं के अंदर पवित्रता आती है, चेहरे पर नूर आता है। वो एक दिन मालिक के दर्श-दीदार के काबिल जरूर बन जाया करते हैं।
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