आप धन से मोहब्बत न करें, इसका मतलब यह नहीं है कि आप धन न कमाएँ या धन को एकत्रित न करें। अवश्य कमाइये और अवश्य जमा करिये। इस बात के लिए तो वेदों ने भी मना नहीं किया है फिर हम मना क्यों करें? धन कमाओ जीवन को चलाओ। पर धन को खर्च करते समय केवल भोग का ही नहीं बल्कि धर्म का भी ख्याल होना चाहिये। धन अगर फूल है तो धर्म उसकी खुशबू है। सुगंध के बिना फूल शोभा नहीं पाता। वेद आदेश देते हैं कि ‘‘धर्म में कर्त्तव्य बुद्धि रखो।’’ आप धार्मिक नहीं हैं ऐसा कोई नहीं कह सकता। यदि तुम धार्मिक नहीं होते हैं, ऐसा कोई नहीं कह सकता।
यदि तुम धार्मिक नहीं होते तो सत्संग नहीं सुनते और ज्ञान की पुस्तक नहीं पढ़ते। धार्मिकता में अगर कर्त्तव्य-बुद्धि हो तो आनन्द की वर्षा होने लगती है। धर्म-बुद्धि हमें बताती है कि ‘‘हम क्या हैं?’’ हम सर्वश्रेष्ठ घर में रह रहे हैं। मानव-शरीर उत्तम घर है। ‘‘हमें क्या करना चाहिये।’’ वेद कहते हैं कि धर्म पर चलो। धर्म पर चलना मनुष्य का कर्त्तव्य है। धर्म पर चलने के लिए बुद्धि हमारी सहायता करती है। भगवान ने सबसे उत्तम-बुद्धि मानव को दी है। धर्म-बुद्धि से कर्म का शुद्धिकरण होता है। बुद्धि के प्रकाश से यह शक्ति मिलती है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए? हमारा घर कैसा हो, हमारा परिवार कैसा हो? सबमें उत्तम-संस्कार होने चाहिए।
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