धर्म एक विचार है, जिसे नियंत्रित करना है असंभव

Religion

मध्य प्रदेश में ‘लव-जिहाद’ के खिलाफ कानून लाए जाने पर देश में एक राजनीतिक तूफान उठ रहा है। परन्तु यहां राजनीति से ज्यादा संवैधानिक पहलुओं को देखा जाना चाहिए। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्टÑ है यहां कोई भी नागरिक किसी भी धर्म में श्रद्धा रखे या श्रद्धा नहीं भी रखे, राष्टÑ उस व्यक्ति के धार्मिक विचारों की स्वतंत्रता की न केवल रक्षा करेगा बल्कि देश का संविधान किसी भी नागरिक की धार्मिक आस्थाओं में कोई हस्तक्षेप या छेड़छाड़ नहीं करेगा, न ही एक-दूसरे नागरिक से धर्म के आधार पर भेदभाव करेगा। ‘लव-जिहाद’ शब्द भी धार्मिक संर्कीणता की उपज है। कोई मुस्लिम बने, ईसाई बने, हिन्दू बने या सिक्ख या अपने पिता या माता से मिले धर्म का त्याग करे उस पर कोई अन्य नियंत्रण कैसे कर सकता है?

गुरुग्राम का निकिता हत्याकांड अब की ताजा घटना है, जिसे धर्म की राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है अन्यथा वह एक सिरफिरे युवक द्वारा एक युवती की हत्या है, युवती जो पढ़ाई में रूचि रखती थी और उसे शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। एक तरफा आर्कषण से बंधे अनेकों मामले, मारपीट, घायल करने या हत्या के केस देश में रोज आ रहे हैं लेकिन यहां हत्यारा मुस्लिम व पीड़िता हिन्दू होने के कारण मामला धार्मिक हो गया। दरअसल धर्म के सिद्धांतों का पालन व उसके माध्यम से ईश्वरीय व्यक्तित्व पाने वाले बहुत ही कम लोग हैं, बाकी लोग धर्मों में चिन्हों, वेषभूषा व ऊपरी बातों पर लड़ाई लड़ने वाले हैं। हजारों-हजार साल की मानवीय सभ्यता में पता नहीं कितने धर्म आए व गए और आगे भी यह दौर जारी है, कोई भी सत्ता या समूह किसी एक विचारधारा को जड़ नहीं बना पाया। अत: देश में धर्म पर राज्य या केन्द्र सरकारों का बढ़ता हस्तक्षेप मानव कल्याण के किसी काम का नहीं है, धर्म एक विचार मात्र है।

विचार की एक प्रकृति शाश्वत है, वह है विचार का परिवर्तनशील होना। विचार उपजा है तो परिवर्तन को रोककर नहीं रखा जा सकता, विचारों से ही आजादी मिली, विचार से ही भारत व इसके राज्यों ने आकार लिया, विचार ही है जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया का भविष्य तय करेंगे। कौन सा धर्म रहेगा, कौन सा नहीं रहेगा, कौन सा शासन रहेगा, कौन सा नहीं रहेगा, कौन सा देश टूटेगा, कौन से दो देश एक होंगे ये सब संवैधानिक संस्थाओं से ऊपर विचारों में निहित है। अत: लव-जिहाद के नाम पर लगाया जा रहा वक्त एवं शक्ति समय गुजारने के सिवाय कुछ नहीं। बेहतर यही है कि नागरिकों के कल्याण के लिए नागरिकों को खुशी देने के लिए, उन्हें आजाद रहने दिया जाए व नागरिकों की शिक्षा, स्वास्थ्य, जीविका व सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए।

 

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