नक्सली हमले में 24 जवानों की हुई थी शहादत
- बेहोश जवान राकेश्वर सिंह को उठा ले गए थे नक्सली
- सेवानिवृत्त शिक्षकों, पूर्व सरपंच और पत्रकारों ने निभाई अहम् भूमिका
- केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फोन करके जाना जवान का हालचाल
सुकमा। तर्रेम मुठभेड़ के दौरान बंधक बनाए गए सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) के जवान राकेश्वर सिह मन्हास को नक्सलियों ने रिहा कर दिया है। जंगल से उन्हें लेने के लिए चार लोगों की टीम गई थी, जिसमें कुछ स्थानीय पत्रकार शामिल थे। इसके बाद जवान राकेश्वर को बाइक से तर्रेम कैंप लाकर सीआरपीएफ के डीआइजी कोमल सिह को सौंपा गया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जवान से फोन पर बात कर हालचाल लिया। बता दें कि बस्तर के गांधी कहे जाने वाले धर्मपाल सैनी, गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बौरैय्या, रिटायर्ड शिक्षक जयरूद्र करे और मुरतुंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने जवान की रिहाई में अहम भूमिका निभाई।
उनके साथ पत्रकार गणेश मिश्रा और मुकेश चंद्राकर भी लगातार कोशिश में लगे थे। इन पत्रकारों ने नक्सलियों के साथ संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राकेश्वर सिंह की तस्वीर भी नक्सलियों ने इन्हीं के पास भेजी थी और अपना संदेश दिया था। नक्सलियों ने कहा था कि सरकार वातार्कारों की घोषणा करे, तभी जवान को छोड़ा जाएगा। इसके बाद मध्यस्थता के लिए चार लोगों को चयन किया गया। कई और पत्रकार भी जवान की रिहाई के लिए नक्सलियों के साथ टच में थे।
जन अदालत में हजारों लोगों की हामी के बाद छोड़ा
एक निजी चैनल के मुताबिक पत्रकार चंद्राकर से नक्सलियों ने कहा कि वे जगरगोंडा के जंगल में पहुंचें, जहां पर एनकाउंटर हुआ था। वातार्कारों के साथ कुछ पत्रकार भी घने जंगल में पहुंचे। यहां 20 गांव के हजारों लोगों को इकट्ठा कर ‘जन अदालत’ चल रही थी। इसी बीच जवान राकेश्वर को रस्सी से बांधकर लाया गया और मौजूद लोगों से पूछा गया कि क्या उन्हें छोड़ देना चाहिए। लोगों ने जब हामी भरी तब उनकी रस्सियां खोली गर्इं।
छह दिनों तक अलग-अलग गावों में घुमाया
रिहाई के बाद जवान राकेश्वर सिंह ने बताया कि हमले के दौरान वह बेहोश हो गए थे और तभी नक्सली उन्हें उठा ले गए। इसके बाद छह दिनों तक उन्हें अलग-अलग गांव में घुमाया गया। हालांकि कोई बुरा सलूक नहीं किया गया। खाने-पीने और सोने की उचित व्यवस्था की गई। जहां उन्हें ले जाया गया, वह इलाका 15 किलोमीटर के अंदर ही था। जवान को छुड़ाने गए पत्रकार ने बताया कि जन अदालत के दौरान काफी देर तक नक्सली भाषण देते रहे। इसके बाद ही उन्हें छोड़ा गया। चारों मध्यस्थ जवान के साथ तरेंम के रास्ते बासागुड़ा थाने पहुंचे।
राकेश्वर सिंह के सही सलामत छूटने के बाद उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। पिछले कई दिनों से उनका परिवार रिहाई का इंतजार कर रहा था और लगातार सरकार से अपनी अर्जी लगा रहा था। उनकी पत्नी ने सरकार को शुक्रिया अदा किया।
रिहाई में इनका अहम् रोल
जवान को छुड़ाने के लिए दंतेवाड़ा के सेवानिवृत्त शिक्षक जय रूद्र करे को शामिल किया गया। वह रिटायरमेंट के बाद धर्मपाल सैनी के साथ ही काम कर रहे हैं। पद्मश्री धर्मपाल सैनी सालों से बस्तर के आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें बस्तर का गांधी कहते हैं। इसके अलावा तैलम बौरैया भी एक पूर्व शिक्षक हैं और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं। इस ग्रुप में सुखमती हपका को शामिल किया गया, जोकि सामाजिक कार्यकर्ता हैं और गोंडवाना समाज की उपाध्यक्ष हैं।
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