पिछले दिनों भारत और अमेरिका ने रक्षा सुरक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेट (बेका) समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौता न केवल भारत बल्कि अमेरिकी नजरिए से भी काफी अहम माना जा रहा है। जिन परिस्थितियों में यह समझौता हुआ उसके संदर्भ में इसके महत्व को समझा जा सकता है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव का प्रचार अंतिम दौर में है। दूसरी ओर भारत लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है। राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले हुए इस समझौते से भारत-अमेरिकी रिश्ते तो मजबूत हुए ही हैं, साथ ही एलएसी पर चीन की आक्रामकता पर नियंत्रण लग सकेगा।
अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पिओ और रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर व भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता के दौरान दोनों देश जिस समझौते के लिए राजी हुए हैं, उस की पृष्ठभूमि साल 2002 में उस वक्त से ही लिखी जाने लगी थी जब भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस अमेरिका के दौरे पर गए थे। भारत और अमेरिका के बीच सैन्य सूचनाओं (जनरल सिक्योरिटी फॉर मिलिटरी इन्फोर्मेशन एग्रीमेट) के आदान-प्रदान को लेकर किये गए इस समझौते का असल मकसद, दोनों देशों के बीच हथियारों और अन्य सैन्य संसाधनों की खरीद फरोख्त को बढ़ावा देना था। हालांकि समझौते के विभिन्न पहलूओं और आशंकाओं को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत और विचार-विमर्श का लंबा दौर चला । इस बीच भारत और अमेरिका ने अगस्त 2016 में लॉजिस्टिक एक्सचेन्ज मेमोरेन्डम ऑफ़ एग्रीमेंट (एलइएमओए) समझौता तथा साल 2018 में द कम्यूनिकेशन कम्नेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी अरेन्जमेंट (कोमकासा) समझौते पर हस्ताक्षर किए।
निसंदेह बेका समझौते के बाद रक्षा क्षेत्र में अमेरिका और भारत एक-दूसरे के सबसे करीबी सैन्य साझेदार बन गए हैं। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि इस समय जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव अभियान में पूरी तरह से व्यस्त रहे, ऐसे में राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल समाप्त होने से ठीक पहले समझौते की क्या जरूरत थी। क्या ट्रंप चुनाव में अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है। कंही ऐसा तो नहीं कि ट्रंप समझौते के जरिए राष्ट्रपति चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हो।
हालांकि अभी जो स्थिति चल रही है, उसमें ट्रंप और बाइडेन के बीच कड़ी टक्कर देखी जा रही है। अनुमान तो इस बात का भी है कि शायद जोसेफ बाइडेन दिन प्रतिदिन कड़े होते मुकाबले में ट्रम्प को पछाड़कर व्हाइट हाउस पहुंच जाए। तो क्या समझौता हयूसटन में हाउडी मोदी में दिखी ट्रंप लहर को फिर से जगाने का प्रयास है। या फिर भारत अमेरिका के बीच स्थायी संबंधों की दिशा में एक कदम है। स्थिति चाहे जो भी हो सामरिक और रक्षा के क्षेत्र में अमेरिका और भारत जिस तरह से एक दूसरे का सहयोग कर रहे है, उससे यह साफ है कि दोनों देशों के रिश्ते शासनाध्यक्षों की व्यक्तिगत केमैस्ट्री से ऊपर उठकर स्थायी संबंधों की दिशा में आगे बढ़ रहे है।
समझौते के तहत अमेरिका अपने उपग्रहों व स्टेलाइट चैनल्स के जरिए प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण सूचनाएं और तस्वीरे भारत के साथ साझा करेगा। इन सूचनाओं और नक्शों की बदौलत भारत को अपने सामरिक लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकेगी। साथ ही भारत हिंद महासागर में चीनी युद्धपोतों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने में सक्षम होगा। अमेरिकी सैन्य उपग्रहों के द्वारा प्राप्त होने वाली सामग्री की सहायता से भारत हिंद प्रशात समुद्री क्षेत्रों सहित संपूर्ण दक्षिण एशिया की भौगोलिक गतिविधियों का नजर रख सकेगा।
समझौते में सैन्य डाटा साझा करने के अतिरिक्त अमेरिका भारत को क्रूज व बैलेस्टिक मिसाइलों की तकनीक देने के लिए भी सहमत हुआ है। कोई दो राय नहीं कि अमेरिका से भारत को जो तकनीक मिलेगी वो बहुत उच्च स्तर की होगी और इससे भारत को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद मिलेगी। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस समझौते के बाद हो सकता है कि अमेरिका भारत को सशस्त्र ड्रोन देने को भी राजी हो जाए। अगर ऐसा होता है, तो चीन व पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद की पृष्ठभूमि के बीच हुआ यह समझौता सामरिक दृष्टि से भारत की बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि कहीं जा सकती है।
भारत और अमेरिका के रक्षा व विदेश मंत्रियों के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता के दौरान दोनों देश हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा संबंधों को और अधिक मजबूत करने के लिए रणनीतिक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राजी हुए। वार्ता के दौरान अमेरिका की ओर से यह आश्वासन भी दिया गया कि भारत की संप्रभुता और स्वतंत्रता पर आने वाले किसी भी संकट से निबटने में अमेरिका भारत की हर संभव सहायता करेगा। अमेरिकी रक्षा व विदेश मंत्री ने गलवान घाटी में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देकर यह साफ कर दिया है कि चीन के साथ टकराव की स्थिति में अमेरिका भारत के साथ खड़ा है।
खास बात यह है कि दोनों देशों के बीच यह समझौता तब हुआ है, जब चीन के साथ भारत के रिश्ते अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। बड़ी संख्या में भारत और चीन के सैनिक सीमा पर जमे हुए है। ऐसे में समझौता भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और भू रणनीतिक क्षेत्र में सहयोग व तालमेल में तो वृद्धि करेगा ही साथ एलएसी पर चीनी आक्रामकता को नियत्रित किया जा सकेगा।
दरअसल, चीन की विस्तारवादी व आक्रामक नीतियां भी समझौते की एक बड़ी वजह है। चीन अपनी आक्रामक नीतियों से वैश्विक शांति के लिए खतरा बनता जा रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र व साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती गतिविधियों से दुनिया के कई देश चिंतित है। ऐसे में भारत अमेरिका के बीच हुए ताजा रक्षा समझौते से न केवल लद्दाख में चीनी हस्तक्षेप को नियत्रित किया जा सकेगा बल्कि चीन की वैश्विक आक्रामकता पर लगाम लग सकेगी। सच तो यह है कि भारत और अमेरिका के बीच हुआ ताजा रक्षा समझौता दोनों देशों के हितों के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
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