डॉक्टर्स ने किया 70 प्रतिशत ठीक, 1 लाख में एक होता है ऐसा : डॉक्टर
पाानीपत। जिले में प्लास्टिक जैसी चमड़ी वाले जन्मे नवजात का (Charisma of God) डाक्टरों द्वारा इलाज किया गया। दरअसल, 2 महीने पहले पंजाब के जीरकपुर के एक दंपती को पैदा हुए इस बच्चे का इलाज चंडीगढ़ के बड़े अस्पताल से चल रहा था। मगर, वहां के डॉक्टर असमर्थ रहे। जिसके बाद बच्चे को पानीपत के एक अस्पताल में लाया गया। जहां बच्चे को पुनर्जन्म मिला है। यहां करीब 1 महीने के इलाज के बाद कॉलोडियन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे को 70% ठीक कर दिया। अब बच्चा बहुत जल्द रिकवरी कर लेगा। जिसके बाद बच्चे को उसके परिजनों के हवाले कर दिया। बच्चे का आगामी इलाज दवाइयों पर 100% ठीक होने तक चलता रहेगा, जिसमें भी करीब 1 माह का समय लगेगा।
8 माह बाद ही पैदा हो गया था बच्चा
नियोनेटोलॉजिस्ट और पीडियाट्रिशियन डॉ. शालीन पारीक ने (Charisma of God) बताया कि बच्चे का जन्म 28 फरवरी, 2023 को जीरकपुर के एक दंपती के यहां 36 सप्ताह में बच्चा पैदा हुआ था। उस बच्चे में जन्मजात कोंजेनिटल स्किन डिसआॅर्डर था। इसमें प्लास्टिक जैसी तंग, मोमी, चमकदार त्वचा होती है। उस नवजात बच्चे को वहां के एक बड़े निजी अस्पताल से पानीपत रेफर किया गया था। यह आॅटोसोमल रिसेसिव जेनेटिक डिसआॅर्डर एक डमेर्टोलॉजिकल इमरजेंसी है, जो करीब 1 लाख बच्चों के जन्मों में 1 को होती है। पानीपत में ऐसी स्थिति में किसी बच्चे के जीवित रहने का यह पहला मामला है।
जन्म के समय ऐसा था बच्चा
शीतल के बच्चे (गोपनीयता कारणों से नाम बदल दिया गया है (Charisma of God) का जन्म तब हुआ, जब उसकी 34 वर्षीय मां गर्भावस्था के एक मुश्किल दौर से गुजर रही थी। शिशु सामान्य प्रसव के माध्यम से 36 सप्ताह में समय से पहले पैदा हुआ था। बच्चे की छाती, हाथ-पैर के ऊपरी और निचले हिस्से पर एक मोटी झिल्ली से ढकी लाल त्वचा थी। मेडिकल भाषा में इसे कोलोडियन झिल्ली के रूप में जाना जाता है। इसकी वजह से बच्चे की पलक और होंठ फटे हुए थे और कान विकृत थे। कुछ दिनों के लिए एक पेरिफेरियल अस्पताल में प्रारंभिक उपचार के बाद, बच्चे को पानीपत के एक सेंटर में ठकउव में रेफर कर दिया गया। यहां आने पर देखा गया कि बच्चे को आॅक्सीजन सपोर्ट सिस्टम की आवश्यकता है और उसे 70% ह्यूमिडिटी वाले इनक्यूबेटर में रखा गया।
ऐसे 50% बच्चों की हो जाती है मृत्यु
डॉ. शालीन पारीक के अनुसार, कोलोडियन बेबी सिंड्रोम एक (Charisma of God)जटिल बिमारी है और त्वचा के लिए एक खतरनाक स्थिति है। इस बिमारी से पीड़ित बहुत कम शिशु जीवन के पहले सप्ताह तक जीवित रहते हैं और उनकी मृत्यु दर 50% तक होती है। समय पर जांच जरूरी है।
कॉलोडियन सिंड्रोम बीमारी की वजह से होता है ऐसा
कोलोडियन बेबी सिंड्रोम से संबंधित मामले हमारे देश के अन्य हिस्सों में इससे पहले भी सामने आते रहे हैं। इस मामले में सफल परिणाम का पूरा श्रेय तृतीयक स्तर के नवजात मामलों के प्रबंधन में एनआईसीयू टीम के सिस्टमेटिक क्लिनिकल विशेषज्ञों को जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कॉलोडियन सिंड्रोम विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है जो कि मां-बाप के शुक्राणु में गड़बड़ी की वजह से होती है। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हो तो पैदा होने वाला बच्चा कोलोडियन सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित हो सकता है। इस रोग में बच्चा शरीर पर प्लास्टिक की तरह दिखने वाली परत के साथ पैदा होता है।
सख्त होकर फटने लगती है चमड़ी | Charisma of God
सामान्यत: महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कोलोडियन हो सकता है। इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है। धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है। यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होगा। कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं। इससे ग्रसित 10% बच्चे पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, लेकिन इन्हें भी जीवन भर इकथॉयोसिस (त्वचा संबंधी) समस्याएं रहती हैं। उनकी चमड़ी सख्त हो जाती है और इसी अवस्था में जीवन जीना पड़ता है। जोकि बड़ा ही कठिन है।
जेनेटिक डिसआॅर्डर है यह बीमारी
डॉक्टरों का कहना है कि यह एक जेनेटिक डिसआॅर्डर है यदि माता-पिता की हिस्ट्री में कोई इस तरह की बीमारी हो तो बच्चे में होना स्वाभाविक है। दूसरा क्रोमोसोम की वजह से भी यह बीमारी बच्चे में आ सकती है। अगर ऐसा बच्चा पैदा होता है तो दूसरे बच्चे की भी 25% तक चांस इसी प्रकार की स्थिति में पैदा होने की होते हैं। ऐसा बच्चा पैदा होने के बाद दूसरे बच्चे की प्लानिंग करते समय डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी होता है।
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