शिलांग में दो समुदायों के बीच हिंसा की घटनाओं ने क्षेत्रवाद के करूप चेहरे को नंगा कर दिया है। चिंता वाली बात है कि आजादी से पहले पौनी सदी बाद भी क्षेत्र व जाति व भाषा के आधार पर भेदभाव और बेगानगी का अहसास खत्म होने का नाम नहीें ले रहा। शिलांग के मूल निवासियों और पंजाबियों के बीच टकराव की सख्ती इस हद तक पहुंच गई कि वहां केंद्रीय बल तैनात करने पड़े।
सख्त सुरक्षा के बावजूद शरारती अनसरों ने सुरक्षा बलों पर बम फेंका। ये घटनाएं मानवीय मन में इस अहसास को पक्का करती हैं कि वो किसी अन्य राज्य या क्षेत्र में जाकर जितनी मर्जी तरक्की कर लें और वहां की आबादी में घुल मिल जाए पर बेगाने होने की कसक से पीछा नहीं छुड़ा सकता। शिलांग के विकास में पंजाबी समुदाय ने अहम रोल अदा करके ना सिर्फ वहां की आर्थिकता को मजबूत किया बल्कि स्थानीय लोगों के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल भी बढ़ाया है। पंजाबी अपने दिलो दिमाग को मेघालय के साथ जोड़ चुके थे।
पर किसी एक घटना ने क्षेत्रवाद की आग को भड़का दिया। चाहे राज्य सरकार दावा करती है कि विवाद का कारण क्षेत्रवाद नहीं, पर भड़की भीड़ के तेवरों से क्षेत्रवाद का चेहरा स्पष्ट नजर आता है। ऐसी घटनाएं एक देश के संकल्प में बाधा बनती हैं। पंजाबी भाईचारे के हितों की रक्षा की पहली जिम्मेदारी मेघालय सरकार की है। केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में तेज नजर रखकर हालातों को सामान्य बनाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए। दरअसल शुरूआती दौर में ही अगर कानूनों को सख्ती के साथ लागू किया जाता तो शिलांग में ऐसे हालात ना बनते।
क्षेत्रवाद को पहले महाराष्टÑ में हवा मिलती रही है। सरकार की तरफ से वोट बैंक नीति के कारण नफरत को खत्म करने के लिए कोई ठोस प्रयास किये गए। ये बात समझने की जरूरत है कि यदि कोई अपने देश को प्यार करता है तो वो देश वासियों से नफरत किस आधार पर करता है? एक देश के लोगों को घुलमिल कर रहकर देश को आगे बढ़ाने की जरूरत है। देश एक गुलदस्ता है और विभिन्नता इसकी विशेषता है। सह असतित्व ना सिर्फ पूर्वी बल्कि पश्चिमी जीवन शैली का भी मुख्य अंग है और ये बात पश्चिम की ताकत भी बनी है। बाहर के देशों के रक्षा विभाग के मंत्री भी भारतीय मूल के नेता बने हैं। सद्भावना के साथ ही देश तरक्की कर सकता है। क्षेत्रवाद के लिए भारतीय संस्कृति में कोई जगह नहीं।