अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से देखें तो भारत के लिए जी-20 का बाली शिखर सम्मेलन काफी अहम रहा। प्रधानमंत्री के साथ-साथ समूह देशवासियों ने उस वक्त गर्व महसूस किया, जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने समापन समारोह में भारत को जी-20 की अध्यक्षता सौंपने का ऐलान किया। राष्ट्रपति जोको विडोडो बधाई के पात्र हैं कि उनकी अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन का समापन सफलतापूर्वक हुआ। भारत आगामी एक दिसंबर से अपना कार्यभार संभाल लेगा और अगले एक वर्ष में वैश्विक समस्याओं के समाधान में अपनी विशेषज्ञता वह विश्व से साझा कर सकेगा। बाली शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी सफलता यूक्रेन युद्ध के खिलाफ आम सहमति बनना है।
इसका अर्थ है कि बतौर सदस्य राष्ट्र रूस भी इस तथ्य से सहमत है। इससे परिस्थिति काफी दिलचस्प बन गई है। विश्व को युद्ध से बचाना काफी जरूरी है। यही कारण है कि शिखर सम्मेलन में मौजूद सभी नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि युद्ध का विश्व-व्यवस्था में कोई स्थान नहीं। हालांकि जब प्रधानमंत्री मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में जोरदार तरीके से यह बात कही कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं है’, उसके बाद विश्व भर में माहौल तनाव रहित होता गया। सुखद है कि जी-20 के घोषणापत्र में लगभग सभी प्रमुख वैश्विक मसलों का जिक्र किया गया है, इसलिए इसमें जो वैश्विक सहमति दिखाई दे रही है, वह नई विश्व-व्यवस्था को लेकर उम्मीद जगाती है।
भारत को इसके आधार पर आगे बढ़ना चाहिए और कुछ नई पहल के साथ इसका नेतृत्व संभालना चाहिए। जाहिर है, अगले एक साल के लिए नई दिल्ली को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। एक तरफ, जी-20 के भीतर ही सदस्य देशों में बढ़ रहे तनाव व नई विश्व-व्यवस्था को लेकर कुछ सदस्यों की विस्तारवादी सोच से भारत को जूझना होगा, तो दूसरी तरफ, वैश्विक तनाव, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव, बहुपक्षवाद की वकालत करने वाली वैश्विक संस्थाओं की निष्क्रियता, महामारी जैसी समस्याओं से भी उसे पार पाना होगा। स्पष्ट है, जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत से बड़ी अपेक्षा रहेगी। संयुक्त राष्ट्र को सशक्त बनाने में जी-20 जैसे समूहों का सहयोग निहायत जरूरी है।
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