जिंदगी में बुरे कर्मों से तौबा करो और प्रभु को याद रखो

Anmol Vachan, True Saint

सरसा। पूज्य गुरु संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान दुनियादारी में इतना बुरी तरह से फंसा रहता है कि उसके पास अल्लाह, वाहेगुरु की याद व भक्ति-इबादत के लिए समय ही नहीं होता। इन्सान द्वारा किए जाने वाले सभी घरेलू कार्य नहाना, फै्रश होना, नाश्ता लेना आदि के लिए समय निश्चित होता है अर्थात् इन्सान के लिए सभी कार्य के लिए तो समय है तथा वह रूटीन में उन्हें करता भी रहता है, लेकिन उसके पास अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब के लिए समय नहीं है। इसकी वजह से ही उस इन्सान का आने वाला समय कभी भी ठीक नहीं होता और जब उसका बुरा समय आता है फिर वह उस मालिक को याद करता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब मुसीबत आती है तो इन्सान को भगवान याद आता है, लेकिन उसे उस समय भी मालिक को बुलाना नहीं आता, क्योंकि उसको गम, चिंता, टैंशन व परेशानियां इतनी बुरी तरह से घेर लेती हैं कि उसे याद ही नहीं रहता कि उसे मालिक को याद करना चाहिए, अगर वो उस मालिक को याद करना भी चाहे तो उसका ध्यान दूसरी ओर आकर्षित होता रहता है।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को अपने जीवन में एक रूटीन बनाना चाहिए कि वह सुबह-शाम उस मालिक को जरूर याद करेगा, अगर इन्सान इस प्रकार लगातार उस मालिक को याद करने लग जाए तो शायद उस इन्सान को भयानक से भयानक कर्म भी न भोगने पड़ें। जिस प्रकार इन्सान को बीमारी के समय सुबह-शाम दवाइयां लेनी पड़ती हंै तथा एक बार भी रूटीन टूटने पर उसे शुरू से दवाइयों का सेवन करना पड़ता है। यही बात राम नाम में है अगर इन्सान सुबह-शाम घंटा या आधा घंटा राम नाम का जाप करे तो डॉक्टरों द्वारा दी जाने वाली दवा का असर तो कुछ समय के लिए रहता है, लेकिन राम नाम की दवा का असर हमेशा रहेगा। इस रूटीन को तोड़ने के पश्चात मन फिर से वह रूटीन बनने नहीं देता। इसलिए भाई आप लगातार उस मालिक के नाम का जाप करोगे तभी आपकी सभी परेशानियां दूर होती जाएंगी और आप मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल बनते जाओगे।

आपजी फरमाते हैं कि इन्सान का मन बहुत जालिम है। वह उस मालिक के नाम का जाप न करने का कोई न कोई तोड़ तैयार ही रखता है। पूूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जो इन्सान गलती करके भी उसे नहीं मानता तो उसको कैसे बख्शा जाएगा, उसे खुशियां कैसे मिलेंगी, किसी-किसी को ऐसा मौका मिल भी जाता है, लेकिन वह ऐसे-ऐसे बहाने बना लेते हैं कि कभी सुना ही न हो। इसलिए रूहानियत में कभी झूठे बहाने नहीं चलते, अगर इन्सान से कोई गलती हुई है और उसे कभी फकीर से बात करने का मौका मिलता है तो उस दौरान अगर आप तौबा कर लेते हैं तो जल्द ही आप उस मालिक की भक्ति करना आरंभ कर देते हैं, लेकिन अगर इन्सान बयानबाजी करता रहता है तो उस पर उसका मन हमेशा हावी रहता है।

उस मालिक को इन्सान के मस्तिष्क को देखकर सब कुछ पता चल जाता है कि उसने अपने जीवन में क्या किया है, क्या किया था और क्या होगा आदि। लेकिन वह कभी किसी को उसकी गलती नहीं सुनाते। पर संत, पीरों को यह देखकर बहुत दु:ख होता है कि अगर यह उस मालिक को याद करता तो पता नहीं कितनी ही खुशियां हासिल कर लेता। फिर भी पता नहीं इन्सान बुरे कार्य करना क्यों नहीं छोड़ता? पता नहीं वह नशा जो कड़वा होता है उसे भी नहीं छोड़ता। अगर जहर मीठा है तो क्या इन्सान उसे खा लेगा। इसलिए भाई कहने का मतलब है कि आप कोई भी बुरा कर्म न किया करो। यह घोर कलियुग है, अगर इन्सान से कोई गलती हो भी गई है कि तो यहां आकर कोई बहाने न बनाओ। अगर इस घोर कलियुग में परमानंद की प्राप्ति करना चाहते हो तो हमेशा आप सुबह कम से कम आधा घंटा उस मालिक के नाम का सुमिरन करते रहिए, आपको गम, चिंता परेशानियों से मुक्ति जरूर मिल जाएगी।

इन्सान को चिंताओं से मुक्ति कैसे मिलती है इस बारे में वैज्ञानिक तरीके से समझाते हुए पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब इन्सान के अंदर गम, दु:ख, दर्द चिंताएं आती हैं तथा उसे अपने अंदर से एक बात का जवाब नहीं मिलता तो वो बात बार-बार उसके सामने आती रहती है तथा जितनी भी बार वो बात उसके आस-पास घूमती है तथा उसका दिमाग जवाब नहीं दे पाता तथा न वह किसी और को इस बारे में बता सकते हैं। इससे इन्सान के दिमाग में टैंशन हो जाती है तथा इन्सान जैसे ही उस मालिक के नाम का रूटीन बनाकर मेडीटेशन, भक्ति करेगा इन्सान का दिमाग दोगुना काम करने लग जाता है। इससे पहले जब इन्सान को आसान से सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था, लेकिन इस तरीके से इन्सान के दिमाग को जवाब उसके भीतर से ही मिल जाता है। इस प्रकार इन्सान परेशानियों से आजाद हो जाता है। उसे किसी से सलाह लेने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। इसलिए सभी को बार-बार कहते रहते हैं कि उस मालिक के नाम का जाप, भक्ति करते रहो इसको न छोड़ो।

आप अपने अंदर की बुराइयों व लड़ाई-झगड़ों को छोड़ दो, लेकिन मालिक के राम नाम को मत छोड़ो। अगर इन्सान इसको छोड़ देता है तो उसका मन उस पर हावी होकर इन्सान से गलतियां करवाएगा, मालिक से दूर करेगा और आपकी अच्छी-भली जिदंगी में क्या पता कब कौन-सी चीज नरक बनकर आ जाए और आप सारी जिदंगी रोते-तड़फते रहो। फकीरों का काम हमेशा इंसान को बुरे कर्म करने से रोकना होता है, लेकिन इन्सान नहीं मानता। जिस प्रकार मवेशी मार खाने के पश्चात भी प्लास्टिक के लिफाफे खाता रहता है तथा पॉलीथिन के कारण कई बार तो उसकी मौत भी हो जाती है। उसी तरह से संत, पीर-फकीर इन्सान को राम नाम का डंडा मारते रहते हंै, जिसके खाकर इन्सान तिलमिला जाता है और कहता है कि क्या यह मुझे कह रहे हैं? लेकिन वह यह नहीं जानता कि मैंने गलती की है इसलिए संत मुझे ही कह रहे हंै। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संतों का फर्ज है बताना। मानना या न मानना वो इन्सान की मर्जी है, उसे गुस्सा या बुरा मानने की जरूरत नहीं। सत्संग में आकर खुशियां ले जाइये। संतों के वचनों पर हमेशा अमल करते रहिए तभी परमानंद की प्राप्ति होगी।

 

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