अग्रोहा मेडिकल कॉलेज से हिसार के निजी अस्पताल में किया रैफर
हिसार सच कहूँ/संदीप सिंहमार। राजस्थान सीमा से सटे हिसार जिले के गांव बालसमंद में 48 घंटे बाद बोरवेल से सुरक्षित निकाले गए 18 माह के बच्चे नदीम का जीवन एक बार फिर खतरे में है। लंबे वक़्त तक बोरवेल में फसे रहने की वजह से नदीम को निमोनिया हो गया। इसी वजह से उसकी हालत नाजुक बनी हुई है। दरअसल शुक्रवार सांय जब सेना व एनडीआरएफ की टीम ने मासूम नदीम को सुरंग बनाकर सकुशल बाहर निकाला तो उसे स्वास्थ्य जांच के लिए हिसार जिले के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले अग्रोहा मैडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया था। देर रात ज्यादा तबीयत बिगड़ने के कारण नदीम को उपचार के लिए हिसार के एक निजी अस्पताल लाया। जहां उसे आईसीयू में वेंटीलेटर पर रखा गया है।
निजी हॉस्पिटल में नदीम का इलाज कर रहे डॉक्टर विवेक गुप्ता ने बताया कि जब बच्चा लगभग मध्य रात्रि उनके पास आया तब उसकी हालत क्रिटिकल बनी हुई थी और अभी भी नदीम की हालत गंभीर है। डॉ विवेक गुप्ता ने बताया कि लगभग 48 घंटे बाद ही बच्चे के हालात में सुधार होने की संभावना है। उसी के बाद कुछ भी कह पाना संभव होगा। वही डॉक्टर ने कहा कि नदीम को निमोनिया बहुत ज्यादा है। इसके अलावा किडनी व अन्य आॅर्गन लगभग ठीक तरीके से काम कर रहे हैं। डॉक्टर ने कहा कि नदीम अभी बेहोश है और जब होश में आएगा और उसकी स्थिति में थोड़ा सुधार होगा तब जांच की जाएगी कि घटना से उनके मस्तिष्क पर कितना प्रभाव पड़ा है।
क्या मेडिकल कॉलेज में उपचार की सुविधा नहीं थी ?
अक्सर किसी भी मरीज की ज्यादा तबीयत बिगड़ने पर सबसे पहले किसी भी मेडिकल कॉलेज में उपचार के लिए रैफर किया जाता है। लेकिन यहां स्थिति बिल्कुल विपरीत बनी हुई है। नदीम को मैडिकल कॉलेज से हिसार की निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अग्रोहा मैडिकल कॉलेज में निमोनिया के ईलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं थी या चिकित्सक टीम को अपने आप पर भरोसा नहीं था, जो निजी अस्पताल के लिए रैफर किया गया। इस विषय पर स्थानीय जिला प्रशासन मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं।
लगातार बचाव की मुद्रा में चल रहे है। मीडिया की तरफ से बार-बार प्रयास किए जाने के बावजूद भी बच्चे नदीम की सेहत को लेकर कोई बयान नहीं दिया जा रहा है।अधिकारी बचते नजर आ रहे हैं। शायद इसकी एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि बोरवेल से निकाले जाने के बाद बच्चे को अग्रोहा मेडिकल ले जाया गया था लेकिन बाद में प्रशासन की तरफ से उसे हिसार के निजी अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया, जिससे लगातार स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की किरकिरी हो रही है।
सरकारी अस्पतालों के स्तर पर उठे सवाल
लोगों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं कि सरकार के अस्पतालों का स्तर ऐसा भी नहीं है कि इस तरीके के बच्चों का इलाज हो सके तो फिर डींगे हांकने का क्या फायदा ! मात्र निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज भी जब किसी निजी अस्पताल में करवाना पड़ता है तो फिर मेडिकल कॉलेज क्या केवल एक मात्र ट्रेनिंग सेंटर के रूप में प्रयोग किया जा रहा है या महज रेफरल केंद्र बन गए हैं, यह चिंतन का सवाल है।
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