केन्द्र सरकार ने दावा किया है कि उसकी आर्थिक नीतियों के कारण स्विजरलैंड के बैंकों में भारतीयों का जमा काला धन केवल 20 फीसदी रह गया। देश में कालेधन के खिलाफ छापेमारी से स्पष्ट है कि सरकार इस दिशा में बड़े कदम उठा रही है लेकिन आर्थिकता में आ रही मंदी एक बड़ी चुनौती भी है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता बल्कि देरी और भी मुसीबतें खड़ी कर सकती है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने इस बात का खुलासा किया है कि नोटबन्दी के कारण नकदी का जो संकट आया, वह पिछले 70 सालों में नहीं आया।
उधर बैंकों का एनपीए बढ़ने के बाद बैंकों ने कर्ज देने से हाथ पीछे खींच लिए तो लोग नॉन-बैकिंग कंपनियों की तरफ रूख करने लगे लेकिन सही व्यवस्था और विधि न होने के कारण नॉन-बैकिंग कंपनियों का पैसा डूब गया। मौजूदा हालातों में भरोसे की कमी है। कर्ज नहीं मिलने के कारण मंदी आ रही है। बैंकों की तरफ से रैपो दरों में कटौती भी माँग में विस्तार नहीं कर सकी। पिछले दो महीनों से आॅटो मोबाइल क्षेत्र में भारी मंदी की चर्चा है। गाड़ियों की खरीद नहीं होने के कारण एक लाख कर्मचारियों की नौकरी चली गई और 10 लाख नौकरियां संकट में हैं।
जीएसटी के कारण गाड़ियों की खरीददारी में गिरावट आई है। यह माना जा रहा है कि गाड़ियों की खरीद पिछले 19 वर्षों में सबसे निम्न स्तर पर जा पहुंची है। सोसायटी आफ इंडियन आॅटो मोबाइल के अनुसार जुलाई में गाड़ियों की घरेलू खरीद में 30 प्रतिशत से अधिक गिरावट आई है। आॅटो सैक्टर जीएसटी में तुरंत कटौती की मांग कर रहा है। ब्रांडिड दालों को भी जीएसटी के दायरे से बाहर निकालने की मांग की जा रही है। कंपनियों को भी चाहिए कि वह गाड़ियों की कीमतें वाजिब रखें। कंपनियों ने पिछले दो दशकों में भारी लाभ कमाया है।
बड़ा लाभ न मिलने पर कर्मचारियों की रोजी रोटी का भी ध्यान रखे। कानूनी अड़चनें भी इस मामले में रुकावट बन रही हैं। फिलहाल बी-4 इंजन आ रहे हैं जो लंबे समय तक नहीं चलाए जा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2020 में केवल बी-6 इंजन वाली गाड़ियों के निर्माण के आदेश दिए हैं। इन हालातों में ग्राहक दुविधा में है और पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं। मौजूदा हालातों के मुताबिक सरकार को जीएसटी दरों में बदलाव संबंधी जल्द निर्णय लेने की आवश्यकता है।