पेट्रोल—डीजल के जीएसटी में शामिल न होने का कारण

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नई दिल्ली, एजेंसी।

पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक बार फिर आसमान पर पहुंच गई हैं। कर्नाटक चुनाव के बाद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी जारी है। सोमवार को पेट्रोल की कीमतों ने 84 का आंकड़ा पार किया। अब मंगलवार को डीजल भी 74 रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच इन्हें जीएसटी के तहत लाने की बात भी कही जा रही है। हालांकि सरकार के लिए ऐसा करना आसान नहीं है।
अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाता है, तो इससे इनकी कीमतों में कुछ राज्यों में काफी कमी आ जाएगी. लेकिन दूसरी तरफ, कुछ राज्यों में जहां पेट्रोल अभी कम कीमत में बिकता है, वहां इसके लिए लोगों को ज्यादा पैसे चुकाने पड़ सकते हैं। दरअसल मौजूदा व्यवस्था में महाराष्ट्र जैसे कई राज्य जहां 40 फीसदी तक वैट वसूलते हैं, तो वहीं अंडमान और निकोबार जैसे राज्य 6 फीसदी तक टैक्स पेट्रोल और डीजल पर लगाते हैं।
अगर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो इससे देश भर में अलग-अलग सेल्स टैक्स की बजाय एक ही टैक्स हो जाएगा। इससे भले ही महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में थोड़ी राहत मिलेगी, लेक‍िन कम वैट वसूलने वाले राज्यों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बहुत बड़े स्तर पर बढ़ोतरी हो जाएगी। ऐसे में कोई राजनीतिक पार्टी नहीं चाहेगी कि वह ऐसा कोई कदम उठाए।
अगर पेट्रोल और डीजल जीएसटी के तहत शामिल नहीं होता है, तो सरकार के पास एक्साइज ड्यूटी घटाने और राज्यों को वैट कम करने के लिए कहने का विकल्प होगा। हालांकि तमि‍लनाडु ने पहले ही ऐसा कोई कदम उठाने से इनकार कर दिया है। एक्साइज ड्यूटी घटाना भी सरकार के खजाने पर दबाव डाल सकता है। ऐसे में देखना होगा कि सरकार पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से आम आदमी को राहत देने के लिए क्या कदम उठाती है।

 

 

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