नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। भारतीय रिजर्व बैंक ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए परिचालन के आकार पर आधारित नियामकीय व्यवस्था की घोषणा की। नई व्यवस्था के तहत मार्च 2026 के बाद एनबीएफसी कंपनियों के 90 दिन से ऊपर के बकाया कर्जों को एनपीए में डाला जाएगा। नई व्यवस्था के तहत कोई एनबीएफसी किसी आईपीओ (प्रथम सार्वजनिक शेयरनिर्गम) में धन लगाने के लिए अपने किसी एक ग्राहक को एक करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज नहीं देगी। कंपनियों को उनके आकार के आधार पर चार स्तर पर वगीर्कृत किया जाएगा और उनका नियमन कंपनी के आकार, कार्य-क्षेत्र और जोखिम की धारणा के आधार पर होगा।
नए नियम 01 अक्टूबर से होंगे प्रभावी
रिजर्व बैंक ने एक विज्ञप्ति में कहा कि कंपनी के आकार पर आधारित नियामकीय व्यवस्था में कंपनी की पूंजीगत आवश्यकताओं, संचालन की गुणवत्ता, सावधानी के नियम और अन्य पहलू शामिल किए गए हैं। नए नियम 01 अक्टूबर, 2022 से प्रभावी होंगे। सबसे छोटे आकार वाली सामान्य स्तर की एनबीएफसी (एनबीएफसी-बीएल), मध्य आकार वाली कंपनियों (एनबीएफसी-एमएल) और उच्च स्तर की एनबीएफसी को एनबीएफसी-यूएल के रूप में जाना जाएगा।
150 दिन से अधिक के बकाया कर्ज को एनपीए में डाला जाएगा
चौथी श्रेणी की एनबीएफसी में संपत्ति के हिसाब से शीर्ष दस पात्र कंपनियों को ही स्थान मिलेगा। नयी नियामकीय व्यवस्था में सभी श्रेणी की एनबीएफसी के अवरुद्ध कर्जों को एनपीए की श्रेणी में डालने के लिए 90 दिन से अधिक के बकाया नियम में बदलाव किया गया है। नए नियमों के तहत 31 मार्च 2024 तक 150 दिन से अधिक के बकाया कर्ज को एनपीए में डाला जाएगा। फिर मार्च 2025 के बाद 120 दिन तक किस्त न मिलने पर खाता एनपीए हो जाएगा। मार्च 2026 के बाद 90 दिन से अधिक तक किस्त न मिलने में खाते को एनपीए की श्रेणी में डाल दिया जाएगा। नए नियमों के तहत एनबीएफसी में कम से कम एक निदेशक को बैंक या एनबीएफसी में काम करने का अनुभव होना चाहिए। कोई एनबीएफसी किसी सार्वजनिक शेयर निर्गम में आवेदन के लिए अपने किसी ग्राहक को एक करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज नहीं दे सकेगी।
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