कुशल व बहादुर शासिका थी ‘रानी दुर्गावती’

Rani-Durgavati

जीवन परिचय (Rani Durgavati)

 नाम रानी दुर्गावती
जन्म स्थान कालिंजर दुर्ग
पिता का नाम कीरतराय
पति का नाम दलपत शाह
बेटे का नाम वीर नारायण
मृत्यु स्थान जबलपुर

रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मातृभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थी। इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था। रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी। रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई।

रानी दुर्गावती का जन्म और बचपन

रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था।  राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया। वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है। इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लड़ाईयां लड़ी। कन्या दुर्गावती ने इसी कारण बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की।

रानी दुर्गावती का विवाह

दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के सांथ संपन्न हुआ। राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर , होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था। गोंड राजवंश और राजपूतों के इस मेल से शेरशाह सूरी को करार झटका लगा। शेरशाह सूरी ने 1545 को कालिंजर पर हमला कर दिया और बड़ी मुश्किल से कालिंजर के किले को जीतने में सफल भी हो गया, परन्तु अचानक हुए बारूद के विस्फोट से वह मारा गया। 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम वीरनारायण रखा गया। 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई। इस दु:ख भरी घड़ी में रानी को अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर स्वयं राजकाज की बागडोर संभालनी पड़ी।

रानी दुर्गावती और बाज बहादुर की लड़ाई

शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया। जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया। गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छुति थी और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया। रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई। युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ। इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई।

रानी दुर्गावती और अकबर की लड़ाई

1562 ईसवी में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया। अब मुगल साम्राज्य की सीमा, रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं।वहीं दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार कर लिया। अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था। इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को संदेश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुगल दरवार में भेज दे। रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से साफ इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया।

इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जैसे ही मुगल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया। लड़ाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ। शाम होते होते रानी की सेना ने मुगल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई।

रानी दुर्गावती की समाधि

वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नारिया नाला वह स्थान है जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थी।  अब इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

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