रमजान के पाक महीने में पाक की नापाक हरकतें

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राजेश माहेश्वरी

सरकार ने रमजान माह के दौरान बॉर्डर पर सीज फायर रोकने का फैसला लिया है। दरअसल सरकार ने भटके युवाओं को मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया था, लेकिन सरहद पार से रमजान में भी फायरिंग करने का दुस्साहस नहीं रुक रहा है। लगातार फायरिंग की जा रही है और सेना की चौकियों पर गोले दागे जा रहे हैं। इसका असर आबादी पर पड़ रहा है। सरकार की नीति से अलगाववादी और आतंकवादी जरूर बेनकाब हो रहे हैं, लेकिन सरकार के फैसले का राजनीतिक तौर पर कोई असर नही दिख रहा है। पाकिस्तान पर जवाबी कार्यवाही न होना दुश्मन को खुली छूट देने जैसा है, क्योंकि इस आदेश से भारतीय सेना के हाथ कार्यवाही के लिए बंध गये हैं।

जम्मू-कश्मीर में एक ‘अघोषित युद्ध’ जारी है। सीमापार से गोलाबारी, ग्रेनेड गोलीबारी लगातार की जा रही है। हमारे जवान लगातार ‘शहीद’ हो रहे हैं और नागरिक भी जख्मी हो रहे हैं। इस दौरान भारत-पाक के डीजीएमओ स्तर के सेना अधिकारियों के बीच बातचीत भी हुई। पाकिस्तान ने कबूल किया कि वह संघर्ष विराम का सम्मान 2003 के समझौते के मुताबिक करेगा। इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से ऐसी फायरिंग की गई कि अखनूर सेक्टर में बीएसएफ के दो जवान ‘शहीद’ हो गए और 13 नागरिक घायल हुए।

मौत का आखिरी आंकड़ा क्या होगा, उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। एक जवान की तो इसी महीने शादी तय थी। घर में उल्लास का माहौल एकदम मातम में तबदील हो गया। श्रीनगर में भी आतंकी हमला किया गया है। घायलों और मृतकों की गिनती करना छोड़ देना चाहिए। हालांकि कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की, लेकिन सेना के जवानों ने एक आतंकी को मार गिराया। उसके पास से एके रायफल, विस्फोटक आदि बरामद किए गए हैं।

खुफिया रपट है कि अब भी करीब 20 आतंकी सीमापार से घुसपैठ की फिराक में हैं। उन्हें जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी माना जा रहा है। इन आतंकी और फौजी हरकतों के पलटवार में भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने पाकिस्तान की 11 चैकियां तबाह कर दी हैं! कई रेंजर्सं भी ढ़ेर हुए होंगे! यह युद्ध का परिदृश्य नहीं है, तो और क्या है? बेशक युद्ध की विधिवत घोषणा नहीं की गई है, लेकिन दोनों ओर से जो पलटवार जारी हैं, उन्हें क्या नाम देंगे? कश्मीर के भीतर और पाकिस्तान की सरहद के ये मौजूदा हालात संघर्ष विराम के बावजूद हैं। आखिर संघर्ष विराम के हासिल क्या रहे हैं? रमजान के पाक महीने में संघर्ष विराम के मायने क्या रहे?

क्या पाकिस्तान अमन की भाषा और बोली नहीं समझता? यदि रमजान के दौरान संघर्ष विराम के मायने पाकिस्तान, आतंकियों और कश्मीर के पत्थरबाजों के लिए नहीं थे, तो फिर संघर्ष विराम का मकसद क्या था? भारत और जम्मू-कश्मीर सरकारों की संघर्ष विराम के पीछे नीति क्या थी? दोनों सरकारों ने यह ऐलान क्यों नहीं किया कि संघर्ष विराम अमुक पक्षों के लिए नहीं है। संघर्ष विराम के ऐलान के बावजूद पाकिस्तान सैंकड़ों बार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर चुका है। ऐसे हालात में बातचीत किससे करें-दीवारों से या फौज से!

पाकिस्तान में वजीर-ए-आजम तो फिलहाल कार्यवाहक है। जुलाई में आम चुनाव होने हैं। लगातार हत्याओं के बावजूद जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती एक ही राग अलापती रही हैं कि समाधान बातचीत से ही निकलेगा। जवानों को नहीं मारना चाहिए। संघर्ष विराम का सम्मान करना चाहिए। दरअसल यह भाषा महबूबा पहले भी बोलती रही हैं। क्या वह पाकिस्तान की पैरोकार हैं? ऐसे बयान के बावजूद जैश-ए-मुहम्मद आतंकी संगठन का सरगना मसूद अजहर रमजान के दौरान ही आतंकी हमले व्यापक और तीखे करने की धमकी देता है।

वह संघर्ष विराम को आतंकियों के लिए ‘ईदी’ करार देता है। क्या इन परिस्थितियों में भी बातचीत हो सकती है? जब डीजीएमओ और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर के संवाद नाकाम साबित हो चुके हैं, तो अब कौन-सी उम्मीदों के चिराग कायम हैं? बेशक सरकारें मानें या न मानें, कश्मीर के भीतर और अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा के आसपास मौजूदा हालात जंग के ही हैं। संघर्ष विराम को बंद किया जाना चाहिए और भारतीय जवानों को जंग की तरह लड़ाई लड़ने की छूट और अनुमति देनी चाहिए। उन घरों और आंगनों का क्रंदन, चीख-पुकार, विलाप और सब कुछ खोने का एहसास सरकारों को भी करना चाहिए।

कश्मीर के पत्थरबाजों को भी कुचलना बेहद जरूरी है, बेशक वे अपने ही लोग हैं, लेकिन वे पाकपरस्त भी हैं और उसके भाड़े पर सेना-विरोधी और भारत-विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। यह कहां का न्याय है कि पत्थरबाजों का सामना करने वाले जवानों के खिलाफ तो कानूनी केस दर्ज किए जाते हैं और सीआरपीएफ का वाहन घेर कर पथराव करना मानो पत्थरबाजों का मौलिक अधिकार है! इससे हमारे जवानों के मनोबल पर उल्टा असर पड़ता है।

आखिरकार डायरेक्टर जनरल आॅफ मिलिट्री आॅपरेशन यानी डीजीएमओ स्तर की वार्ता के बाद पाक एलओसी व अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सीजफायर पर सहमत हुआ है। यह फैसला 2003 में हुए शांति समझौते की शर्तों के अनुरूप है। दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच सहमति बनी कि यदि किसी ने भी सीजफायर तोड़ा तो पहले हॉटलाइन पर बातचीत होगी और फिर कोई निर्णय। इससे पहले एलओसी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा की स्थिति पर बातचीत हुई। सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यह पहला मौका है जब डीजीएमओ स्तर पर सेना संघर्ष विराम के पालन पर सहमत हुई। इसमें सीमा के निकट दोनों तरफ के नागरिकों की मुश्किलों को गंभीरता से लिया गया।

अब यह आने वाला वक्त बताएगा कि पाक इस वायदे का कितनी ईमानदारी से पालन करता है। देखना यह भी होगा कि क्या यह कोशिश रमजान के दौरान अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने तक ही सीमित रहती है या आगे भी इसका पालन होता है। विगत के हमारे अनुभव बेहद कटु रहे हैं। गत 23 मई को विदेश मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार इस साल पाकिस्तान ने एलओसी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 1088 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया। भारतीय सीमा पर जहां इस दौरान 36 लोग मारे गये वहीं 120 से अधिक घायल हुए।

अच्छी बात यह भी है कि जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता अब बातचीत की टेबल पर आने को इच्छुक नजर आ रहे हैं। हुर्रियत ने कहा है कि अगर केंद्र स्पष्ट रोडमैप पेश करता है तो कश्मीर के अलगाववादी नेता बातचीत में शामिल होंगे। वे अपनी शर्तों पर बातचीत करना चाहते हैं। दरअसल, पिछले दिनों गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि यदि हुर्रियत बातचीत के लिये आगे आए तो सरकार बातचीत कर सकती है।
लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान की नापाक हरकतें जारी हैं ऐसे में संघर्ष विराम का फैसला सहज नहीं है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर का इस संदर्भ में बयान फिजूल नहीं जाना चाहिए।

कुछ अंतराल के बाद कश्मीर में अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। वह हिंदुओं की धार्मिक यात्रा है। आतंकी उसे व्यापक स्तर पर निशाना बना सकते हैं। लिहाजा गंभीरता से विश्लेषण किया जाए, तो संघर्ष विराम से हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। आतंकी, अलगाववादी और पत्थरबाज जरूर लामबंद हुए होंगे। कश्मीर में शांति और स्थिरता तब तक संभव नहीं है, जब तक आतंकवाद का सफाया नहीं किया जाता। संघर्ष एक तरफा न बने इस लिए भारत को सोचना होगा।

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