वर्ष 2019 में राम, राहुल और राफेल तीन ग्रह एक साथ प्रधाानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली में बैठे दिखाई दे रहे हैं। चुनावी वर्ष में इन तीन ग्रहों का एक साथ एक घर में बैठना मोदी के राजनैतिक भविष्य के लिए अशुभ एवं अप्रिय स्थितियां पैदा कर सकता है। राम मंदिर, राफेल डील और राहुल गांधी तीनों परस्पर विरोधी ग्रह हैं। तीन शत्रु ग्रह अगर किसी की भी कुण्डली में एक साथ बैठ जाएं तो मुश्किलें बढ़ना तय माना जाता है। फिलवक्त नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली इन तीन ग्रहों के अनिष्ट दुर्योग से बुरी तरह प्रभावित दिख रही है। राम मंदिर का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालयय में लंबित है तो वहीं राफेल पर कांग्रेस चौकीदार चोर है का नारा बुलंदी से लगा रही है। राहुल गांधी पिछले एक-डेढ वर्ष में मोदी से टक्कर लेने वाले नेता के तौर पर उभरे हैं। ऐसे में राम मंदिर, राफेल डील और राहुल गांधी ने फिलवक्त मोदी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। मोदी अशुभ ग्रहों का संकट बखूबी महसूस कर रहे हैं, और शायद वो इनकी काट भी खोज रहे हों।
भारतीय जनता पार्टी आज जिस भव्य स्वरूप और राजनीतिक हैसियत में है, उसके पीछे राम मंदिर मुद्दे का सबसे बड़ा योगदान है। दो सांसदों से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने तक जब-जब भाजपा संकट में पड़ी, उसे राम नाम ने ही सहारा दिया। भाजपा राम मंदिर मुद्दे को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। लेकिन आज ये मुद्दा ऐसे मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां भाजपा को इस मामले में कोई बड़ा व ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है। आज केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार है। भाजपा के सामने एकतरफ देश की वो जनता है जिसने उसे राम मंदिर के मुद्दे पर उसे समर्थन और वोट दी तो दूसरी तरफ वो सुप्रीम कोर्ट है जहां मामले की सुनवाई लंबित है। अर्थात् इस मुद्दे पर भाजपा की स्थिति आगे कुअां, पीछे खाई वाली है।
राम मंदिर के मुद्दे पर टाल-मटोल से भाजपा के सहयोगी, हिदुंवादी संगठन और खासकर आरएसएस में भी नाराजगी का माहौल है। असल में एससी-एसटी एक्ट में अध्यादेश लाकर मोदी सरकार ने खुद अपनी मुश्किलें बढ़ायी हैं। ऐसे में राम भक्त दलील दे रहे हैं कि राम मंदिर पर भी सरकार अध्यादेश लाये। पिछले दो-तीन महीने से यह मुद्दा दोबारा चर्चा में है। साधु-सन्त, आरएसएस, वीएचपी से लेकर राम भक्त राम मंदिर निर्माण के लिये मोदी सरकार पर दबाव बना रहे हैं। राम मंदिर पर सरकार की हीला-हवाली से भाजपा के समर्थक नाराज हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार अदालत के फैसले के बाद ही कोई कदम उठाएगी। सुप्रीम कोर्ट जल्द ही नयी बेंच बनाकर सुनवाई तय करेगा। मामला चूंकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में भाजपा की हालत मशहूर फिल्म शोले के उस हाथ कटे ठाकुर जैसी है, जो चिल्ला तो सकता था, लेकिन बेचारा कुछ कर नहीं पाता था।
राम मंदिर की भांति राफेल डील के मामले ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। मोदी सरकार के अब तक कार्यकाल में कांग्रेस को राफेल डील ही एकमात्र ऐसा अस्त्र मिला है, जिससे वो मोदी सरकार को घेर पा रही है। सड़क से लेकर संसद और चुनावी मंच से लेकर चर्चार्आेंं तक में कांग्रेस राफेल-राफेल चिल्ला रही है। प्रधानमंत्री के बयान, वित्त मंत्री की फटकार और रक्षामंत्री के निर्मल ज्ञान और धुलाई के बाद भी कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट भी खरीद की प्रक्रिया पर सरकार को क्लीन चिट दे चुका है। राहुल का आरोप है कि देश का पैसा पीएम मोदी ने अनिल अंबानी के जरिए चोरी करवाया। एचएएल से 30 हजार करोड़ का अनुबंध तोड़कर अनिल अंबानी को दे दिया गया। जिसके चलते देश के प्रतिभाशाली नौजवानों का रोजगार छिन गया। राहुल के मुताबिक राफेल डील पर अगर मुकम्मल जांच होती है तो दो घोटालेबाजों का नाम निकलेंगे। जिनमें पीएम मोदी और अनिल अंबानी का नाम शामिल होगा। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण संसद में इस मुद्दे पर सिलसिलेवार जवाब दे चुकी है। बावजूद इसके कांग्रेस समझने को तैयार नहीं है। कांग्रेस इस मुद्दे पर जेपीसी की मांग कर रही है। वास्तव में कांग्रेस राफेल डील में भ्रष्टाचार का कीचड़ लगाकर मोदी सरकार का दामन दागदार करना चाहती है।
पिछले लगभग छह महीने की जीतोड़ मेहनत के बाद भी कांग्रेस इस मुद्दे पर मोदी सरकार को असरदार तरीके से घेर नहीं पा रही है। लेकिन चौैकीदार चोर है का शोर मचाकर वो देश की जनता को बरगलाने का काम बखूबी कर रही है। जिसका सियासी लाभ शायद उसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिला भी है। हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में मिली कामयाबी से चौकीदार चोर है और राफेल-राफेल का राग कांग्रेस और जोर-शोर से बजाने लगी है। यह बात दीगर है कि कांग्रेस राफेल डील में भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई ठोस प्रमाण या दस्तावेज अब तक पेश नहीं कर पायी है। न ही वो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पार्टी बनने की हिम्मत जुटा पायी। कांग्रेस की कोरी बयानबाजी और कागजी हवाई आरोपों के बावजूद मोदी सरकार को सड़क से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक में सफाई तो देनी ही पड़ रही है। संसद में हुई हालिया चर्चा में राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री को इस मामले में क्लीन चिट देने के साथ दोबारा सीधे तौर पर प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप मढ़े हैं।
पिछले एक साल से कांग्रेस की कमान संभाल रहे राहुल अपनी छवि सुधारने के लिये कैलाश मानसरोवर यात्रा से लेकर जनेऊ धारी फोटो जारी करने के तमाम प्रपंच रच रहे हैं। अपनी व पार्टी की मुस्लिम परस्त की छवि को तोड़कर वो साफ्ट हिंदुत्व की छवि गढ़ने में कामयाब होते दिखाई देते हैं। गुजरात व कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा के पसीने छुड़ाने के बाद हिंदी पट्टी के तीन राज्यों की जीत ने राहुल का राजनीतिक कद और लोकप्रियता दोनों को बढ़ाया है। अब मीडिया भी उन्हें तवज्जो देने लगा है। आज राहुल गांधी एक नये ब्रांड के तौर पर उभरतते दिखाई दे रहे हैं। हां, बीच-बीच में उनकी राजनीति, विचार, बॉडी लैंग्वेज और कार्यशैली बेपटरी हो जाती है। जिससे उनकी छवि को ठेस पहुंचती है। फिलवक्त राहुल नरेंद्र मोदी का विकल्प तो नहीं बन पाये हैं, लेकिन वो स्पष्ट तौर पर मोदी के सबसे मुखर राजनीतिक विरोधी बनकर जरूर उभरे हैं। मोदी को टक्कर देने के लिये अभी उन्हें जनता से ज्यादा जुड़ाव, स्वीकार्यता हासिल करने के अलावा लगातार प्रदर्शन की जरूरत है।
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