सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इस घोर कलियुग में मालिक का नाम लेना बड़ा मुश्किल है। मन और मनमते लोग रोकते-टोकते हैं। इन्सान प्रभु का नाम लेना भी चाहे तो मन तरह-तरह की परेशानी खड़ी कर देता है। आप सुमिरन करने लगते हैं, कुछ देर ही सुमिरन कर पाते हैं और बाद में होश ही नहीं रहता कि मन आपको कहां से कहां ले गया। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इस घोर कलियुग में मन-इंद्रियां बड़े फैलाव पर हैं। मन इन्सान को सुमिरन नहीं करने देता, मालिक की तरफ नहीं चलने देता। जहां मालिक की चर्चा होती हो, वहां मीन-मेख (कमियां) निकालता रहता है, हालांकि उसकी खुद की कमियों का कोई अंदाजा ही नहीं होता। आप जी फरमाते हैं कि मन बड़ा ही जालिम, शातिर है।
आप जब तक सुमिरन नहीं करेंगे, यह काबू में नहीं आएगा। सुमिरन करने से मन काबू में आता है। अगर सुमिरन, भक्ति-इबादत की जाए तो मन काबू में आ सकता है अन्यथा मन बढ़ता चला जाता है और जीव गुमराह हो जाता है। जैसे टायर में हवा भरते हैं तो वह फूलता चला जाता है उसी तरह मन गंदे, बुरे विचारों की हवा देता है और इन्सान फूलता चला जाता है। उसमें अहंकार, घमंड अपने आप आने लगता है। उसे पीर-फकीर के वचन अच्छे नहीं लगते। उसे सिर्फ अपनी बातें सही लगती हैं और दूसरे सभी गलत लगते हैं। इस तरह से मन इन्सान को भटकाता, गुमराह करता है, मालिक से दूर करता है।
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