अयोध्या के राम जन्मभूमि स्थल विवाद का मुद्दा लगता है अब निराकरण की ओर बढ़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त से इस विवाद की नियमित सुनवाई का निर्णय लिया है। तीन न्यायमूर्तियों की पीठ राम मंदिर बाबरी ढांचा शीर्षक विवाद का हल निकालेगी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध दायर याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए याचिकाकर्ता एवं भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने पहल की थी। तब मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने जल्दी सुनवाई का भरोसा दिया था। हालांकि छह साल से लंबित इस विवाद को पक्षकारों की आपसी सहमति से सुलझाने के लिए भी न्यायालय ने आग्रह किया था।
साथ ही अदालत ने यह भरोसा भी दिया था कि अदालत के बाहर मामला सुलझाने के लिए वादी-प्रतिवादी बैठते हैं तो अदालत मध्यस्थता करने को तैयार है। इस टिप्पणी का मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी हिंदू सर्मथकों ने समर्थन किया था, लेकिन मुस्लिम समुदाय विभाजित दिखा था। पिछले 68 साल से यह विवाद विभिन्न अदालतों से होता हुआ शीर्ष न्यायालय की दहलीज पर आकर ठिठक गया था, जो अब आगे बढ़ता नजर आ रहा है।
अयोध्या विवाद देश के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच लंबे समय से तनाव का कारण बना हुआ है। इस मुद्दे ने देश की राजनीति को भी प्रभावित किया है। विश्व हिंदू परिषद् अयोध्या में उस विवादित स्थल पर मंदिर बनाना चाहती है, जहां पहले एक कथित रूप से मस्जिद थी। जबकि मुस्लिमों का पक्ष है कि यहां मंदिर होने के कोई साक्ष्य नहीं हैं। हालांकि पुरातत्वीय साक्ष्यों और लोक साहित्य से यह प्रमाणित होता है कि 1528 में एक ऐसे स्थल पर हिंदुओं को अपमानित करने की दृष्टि से मस्जिद का निर्माण कराया गया, जहां भगवान राम की जन्मस्थली थी। 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी। इस कारण इसे बावरी मस्जिद कहा जाता है। 1859 में चालाकी बरतते हुए ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर रोक लगा दी और विवादित परिसर क्षेत्र में दो हिस्से करके हिंदुओं और मुस्लिमों को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
आजादी के बाद 1949 में मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां पाई गई। एकाएक इन मूर्तियों के प्रकट होने पर मुस्लिमों ने विरोध जताया। दोनों पक्षों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। नतीजतन सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर ताला डाल दिया और दोनों संप्रदाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी। इसके परिणामस्वरूप मुस्लिमों ने बावरी मस्जिद संघर्ष समिति बना ली। 1989 में राम मंदिर निर्माण के लिए विहिप ने अभियान तेज किया और विवादित स्थल के नजदीक मंदिर की नींव रख दी। 1990 में विहिप के कार्यकतार्ओं ने विवादित ढांचे को क्षति पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन तबके प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत से मामला सुलझाने की कोशिश की, किंतु कोई हल नहीं निकला। अतत: 1992 में भाजपा, विहिप और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को ढहा दिया। इस समय केंद्र में कांग्रेस के पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे।
हालांकि पुरातत्वीय साक्ष्यों, निर्मोही अखाडे़ और गोपाल सिंह विशारद द्वारा मंदिर के पक्ष में जो सबूत और शिलालेख अदालत में पेश किए गए थे, उनसे यह स्थापित हो रहा था कि विध्वंस ढांचे से पहले उस स्थान पर राममंदिर था। जिसे आक्रमणकारी बाबर ने हिन्दुओं को अपमानित करने की दृष्टि से शिया मुसलमान मीर बांकी को मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाने का हुक्म दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय में अपील किए जाने के बाद अदालत में यथास्थिति बनाए रखने का फैसला दिया था। दरअसल, विवादित भूमि 2.77 एकड़ के एक हिस्से पर इस्लाम के दावे को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मंजूर किए जाने से जो मतांतर सामने आया था, वह असंतोष व शीर्ष न्यायालय में अपील का प्रमुख आधार था। इसी बिना पर स्थगन देते हुए न्यायमूर्ति आफताब आलम और आरएम लोढ़ा की संयुक्त पीठ ने कहा था कि किसी भी पक्ष ने जब विवादित भूमि बंटवारे की मांग नहीं की थी, फिर यह अजीब व चकित कर देने वाला हाईकोर्ट ने आदेश क्यों दिया ? जबकि फैसला भूमि के मालिकाना हक पर केंद्रित रहना था।
इस वजह से इस फैसले को एक नया आयाम मिला और यह विचित्रता की श्रेणी में आ गया। हालांकि न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा ने जरूर संपूर्ण विवादित भूमि हिन्दुओं को सौंपने का फैसला दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन देते समय विवादित भूमि के अह्म पहलू को रेखांकित कर यह जाहिर कर दिया था कि अब जो फैसला आएगा वह भूमि के मालिकाना हक को तय करते हुए, एक सर्वमान्य फैसला होगा और भूमि का बंटवारा संप्रदायों के अनुसार नहीं होगा।
विवादित परिसर ढांचे से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह था कि किसी मंदिर अथवा धार्मिक स्थल को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी अथवा नहीं ? इसे हाईकोर्ट के फैसले का संयोग कहिए या विलक्षणता कि तीनों न्यायमूर्तियों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट व जुटाये साक्ष्यों के आधार पर निर्विवाद रूप से यह माना है कि राम के बाल रूप में जिस स्थल पर राम की मूर्ति स्थापित है, वही स्थल रामजन्म भूमि है। विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद बाबरी संघर्ष समिति की भी यही प्रमुख मांग थी कि पहले यह तय किया जाए कि यही स्थल रामजन्म भूमि है। यह भी सुनिश्चित हो कि बाबरी मस्जिद के वजूद में आने से पहले यहां कोई मंदिर था और यह भी तय किया जाए मस्जिद निर्माण के लिए मंदिर तोड़ा गया था ?
बाद में इस सर्वेक्षण की जिम्मेवारी एएसआई को सौंपी गई। इसने विवादित रामजन्म भूमि, बाबरी मिस्जद परिसर के नीचे उत्खनन का कार्य कराया और 5 अगस्त 2003 को खुदाई की 574 पन्ने की रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी। इस खुदाई में जो पुरातत्वीय साक्ष्य मिले उनसे तय हुआ कि तोड़े गए ढांचे के नीचे ग्यारहवीं सदी के हिन्दुओं के धार्मिक स्थल से जुड़े साक्ष्य बड़ी संख्या में मौजूद हैं। अनेक शिलालेख और भगवान शंकर की मूर्ति मिलने के सबूत भी न्यायालय में पेश किए गए। परिसर का राडार सर्वेक्षण भी कराया गया। इसी से तय हुआ कि ढांचे के नीचे एक और ढांचा है। इन्हीं साक्ष्यों के बूते हाईकोर्ट के तीनों न्यायमूर्तियों ने बहुमत से माना कि विवादित स्थल का केंद्रीय स्थल रामजन्म भूमि है।
हालांकि पुरातत्वीय साक्ष्यों और लोक साहित्य से यह प्रमाणित होता है कि 1528 में एक ऐसे स्थल पर हिंदुओं को अपमानित करने की दृष्टि से मस्जिद का निर्माण कराया गया, जहां भगवान राम की जन्मस्थली थी। 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी। इस कारण इसे बावरी मस्जिद कहा जाता है। 1859 में चालाकी बरतते हुए ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर रोक लगा दी और विवादित परिसर क्षेत्र में दो हिस्से करके हिंदुओं और मुस्लिमों को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
-प्रमोद भार्गव
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।