बिहार में सीमांचल एक्सप्रेस के नौ डिब्बे पटरी से उतर गए। यह दुर्घटना वैशाली जिले के सहदेई बुजुर्ग रेलवे स्टेशन के पास हुई। इसमें सात लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और 24 लोग घायल हैं। यह रेल जोगबनी से आनंद विहार दिल्ली आ रही थी। रेल मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान अब तक छोटे-बड़े मिलाकर 350 से भी ज्यादा रेल हादसे हो चुके हैं। हालांकि रेल मंत्रालय ने हादसों पर अंकुश लगाने के अनेक तकनीकी व सुरक्षा के उपाय किए हैं, लेकिन कारगर परिणाम नहीं निकले। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने हादसे रोकने के लिए मिशन जीरो एक्सीडेंट अभियान भी शुरू हुआ था, किंतु नतीजे प्रभावी नहीं दिखे। इस अभियान के तहत त्वरित पटरी नवीनीकरण, अल्ट्रासोनिक रेल पहचान प्रणाली और मानव रहित रेलवे क्रासिंग खत्म किए जाने के दावे किए थे। पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट में दावा किया है कि अब मानवयुक्त सभी फाटकों पर नीचे अथवा ऊपर के सेतु बना दिए गए हैं।
ज्यादातर रेल हादसे ठीक से इंटरलॉकिंग नहीं किए जाने और मानवरहित रेलवे पार-पर्थ पर होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के केंद्रीय सत्ता पर आसीन होने के बाद ये दावे बहुत किए गए हैं कि डिजीटल इंडिया और स्टार्टअप के चलते रेलवे के हादसों में कमी आएगी। इसरो ने अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ते समय ऐसे बहुत दावे किए हैं कि रेलवे को ऐसी सतर्कता प्रणाली से जोड़ दिया गया है, जिससे मानव रहित फाटक से रेल के गुजरते समय या ठीक से इंटरलॉकिंग नहीं होने के संकेत मिल जाएंगे। नतीजतन रेल चालक और फाटक पार करने वाले यात्री सतर्क हो जाएंगे। लेकिन इसी प्रकृति के एक के बाद एक रेल हादसों के सामने आने से यह साफ हो गया है कि आधुनिक कही जाने वाली डिजीटल तकनीक से दुर्घटना के क्षेत्र में रेलवे को कोई खास लाभ नहीं हुआ है। बावजूद रेलवे के आला अफसर दावा कर रहे हैं कि बीते साल में छोटे-मोटे हादसों को छोड़ दिया जाए तो कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ है।
भारतीय रेल विश्व का सबसे बड़ा व्यावसायिक प्रतिष्ठान है, लेकिन इस ढांचे को किसी भी स्तर पर विश्वस्तरीय नहीं माना जाता। गोया इसकी सरंचना को विश्वस्तरीय बनाने की दृश्टि से कोशिशें तेज जरूर होती दिख रही हैं, लेकिन उनके कारगर नतीजे देखने में नहीं आ रहे हैं। एक ओर तो सुविधा संपन्न तेज गति की प्रीमियम, टेल्गो बुलेट और भारत ट्रेनों को पटरियों पर उतारने के दावे हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हादसे भी बढ़ रहे हैं। ज्यादातर हादसे रेल कर्मचारियों की भूल, चूक या लापरवाही का परिणाम होते हैं। हर दुर्घटना के बाद संबंधित कर्मचारी के निलंबन की खबर तो आती है, लेकिन उसे गलती का वास्तविक दंड क्या मिला इसका पता नहीं चलता। जांच की खानापूर्ति के बाद दोषी कर्मचारी की यथास्थिति बहाल कर दी जाती है। रेलवे का जब भी बजट पारित होता है तब हरेक रेल मंत्री इस पाठ को जरूर दोहराता है कि रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।
इन तकनीकों को आयात करके स्थापित करने की बात मनमोहन सिंह की सरकार से लेकर नरेंद्र मोदी की वर्तमान सरकार तक खूब हुई है, लेकिन दुर्घटनाएं बदस्तूर हैं। इससे पता चलता है कि सर्तकता तकनीक के क्षेत्र में रेलवे में कोई बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हुई है। जबकि बुलेट और टेल्गो ट्रेन पटरी पर उतारने से लेकर सफर को शान-शौकत से जोड़ने की बात खूब हो रही है। गुणवत्ता पूर्ण भोजन और फलाहार परोसने की बात की जा रही है, लेकिन हकीकत है कि इन क्षेत्रों में भी स्थिति संतोशजनक नहीं है। हालांकि इस नाते दो परियोजनाएं शुरू हुईं। एक में रेलवे विकास एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) दूसरे में भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की मदद ली गई थी।
इसरो के साथ शुरू की गई परियोजना के अंतर्गत एक ऐसी सतर्क सेवा शुरू करने का प्रस्ताव था, जिसके तहत चैकीदार रहित क्रॉसिंग के चार किमी के दायरे में आने वाले सभी वाहन-चालकों और यात्रियों को हूटर के जरिए सतर्क रहने की चेतावनी दी जानी थी। इसमें इसरो को उपग्रह की सहायता से रेलों के वास्तविक समय के आधार पर ट्रेक करने के इंतजाम करने थे। इसमें चिप आधारित एक उपकरण रेलों में और एक क्रॉसिंग गेट पर लगाया जाना था। यदि ऐसा संभव हो जाता तो उम्मीद यह थी, कि जैसे ही रेल क्रॉसिंग के 4 किमी के दायरे में आएगी तो स्वमेव फाटक पर लगा हूटर बज उठेगा। रेल के 500 मीटर की दूरी तक आते-आते हूटर की आवाज धीरे-धीरे तेज होती जाएगी और रेल के गुजरते ही हूटर बंद हो जाएगा। रेलवे ने पांच पायलट परियोजनाओं के तहत पांच मानवरहित पार-पथों और चुनिंदा पांच रेलों में यह उपकरण लगाए भी, लेकिन जब इनकी ट्रायल ली गई तो ये बजे ही नहीं।
इसके बाद इस परियोजना को नए अनुसंधान कर, नई तकनीक से जोड़ने के लिए फिलहाल स्थगित कर दिया है। इस परियोजना में इसरो ने अपने सात उपग्रहों वाले रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम का उपयोग किया था। किंतु सात उपग्रहों से जुड़े रहने के बावजूद यह सतर्कता प्रणाली नाकाम रही। इसके साथ ही रेलवे ने आरडीएसओ को एसएमएस आधारित सतर्कता प्रणाली (एडवांस वार्निंग सिस्टम) विकसित करने की जिम्मेदारी दी थी। इस प्रणाली को रेडियो फ्रीक्वेंसी एंटिना में क्रॉसिंग के आसपास एक किमी के दायरे में सभी वाहन चालकों व यात्रियों के मोबाइल पर एसएमएस भेजकर आगे आने वाली क्रॉसिंग और रेल के बारे में सावधान किया जाना था। इसमें जैसे-जैसे वाहन क्रॉसिंग के नजदीक पहुंचता, उसके पहले कई एसएमएस और फिर ब्लिंकर और फिर अंत में हूटर के मार्फत वाहन चालक को सावधान करने की व्यवस्था थी। साथ ही रेल चालक को भी फाटक के बारे में सूचना देने का प्रावधान था, लेकिन जब इस तकनीक का अभ्यास किया गया तो यह परिणाम में खरी नहीं उतरी।
अब मानवरहित फाटक खत्म कर दिए गए हैं, ऐसा दावा पीयूष गोयल ने बजट भाषण में किया है। 2016 में जहां 314 रेल हादसे हुए और 192 लोग मारे गए, वहीं 2017 में 187 रेल दुर्घटनाएं हुई और 97 लोग मारे गए। 2018 सितंबर तक 16 रेल हादसों में 18 लोगों की जानें गई हैं। हरचंद्रपुर हादसे के बाद रेल कर्मचारी संगठनों ने दावा किया है कि ये दुर्घटनाएं रेल कर्मचारियों की कमी की वजह से हो रही हैं। वर्तमान में 1.42 लाख कर्मचारियों की कमी हैं। हालांकि रेलवे ने 1 लाख कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी है।
यदि जो 7701 फाटक बिना किसी चैकीदार के हैं, उन्हें रेलवे युद्ध स्तर पर भी खत्म करने में जुट जाए, तो दो साल के भीतर इनका निर्माण पूरा करके एक बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा। इससे इतर समस्या यह भी है कि मानवरहित फाटकों को खत्म करने की चुनौती रेलवे की प्राथमिकता में नहीं है ? इससे ज्यादा रुचि भारत सरकार और रेलवे बुलैट और टेल्गो ट्रेनों को लाने में दिखा रही है। वातानुकूलित रेलों और स्टेशनों पर वाई-फाई की सुविधा देने से पहले यदि रेलवे काकोदकर समिति की सिफारिशों को अमल में लाते हुए हूटर और एसएमएस जैसी सतर्कता प्रणालियों को जमीन पर उतारने में अपनी सार्म्थ्य लगाती तो बेहतर होता?
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