कांग्रेस की सर्वोच्चय नीति निर्धारक समिति ने मंगलवार को एक सामूहिक प्रस्ताव पार्टी की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी को दिया है कि राहुल गांधी को अब पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। अपने 15 वर्ष के संसदीय जीवन में यूं भी राहुल गांधी काफी कुछ सीख चुके हैं। ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेताओं, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वरिष्ठ नेता एके एंटोनी, रणदीप सिंह सुरजेवाला प्रमुख तौर पर शामिल हैं, ने यह प्रस्ताव भेजा है। अभी जो कांग्रेस पार्टी है, यह अपने-आपको देश का सबसे पुराना संगठन कहती है और अपने सभी प्रचार अभियानों में यह बकायदा लिखा जाता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी, लेकिन यह पार्टी कांग्रेस (आई.) यानि कांग्रेस इंदिरा का विस्तार मात्र है, जो 1967 में अस्तित्व में आई है। जिस पर एकमात्र हक स्वयं कांग्रेसियों द्वारा इंदिरा गांधी के पारिवारिक वारिसों का ही माना जाता है। तभी 1984 में कांग्रेस के पास बेहद अनुभवी नेता होने के बावजूद पार्टी नेताओं ने पीसी एलेक्जेण्डर द्वारा सुझाए या यूं कहे लाईन में धक्के से खड़े किए गए, राजनीति के अनिच्छुक इंदिरा गांधी के ज्येष्ठ एवं एकमात्र जीवित पुत्र राजीव गांधी को नेता चुना व प्रधानमंत्री पद सौंपा। 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई, तब उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने पार्टी से दूरी बना ली, जिसे पीवी नरसिम्हा राव ने संभाला। तत्पश्चात सीताराम केसरी ने पार्टी की बागडोर संभाली। लेकिन कांग्रेसी, जिन्हें सोनिया गांधी की पार्टी से दूरी तड़पा रही थी, वह सोनिया गांधी के 1998 में अध्यक्ष पद संभालने पर ही अपने आपको सच्चा कांग्रेसी व सुरक्षित महसूस करने लगे। अब कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी, जिनकी तबियत काफी नासाज रहती है और वह पार्टी की अहम् गतिविधियों में सक्रिय भाग भी नहीं ले पा रहीं, तब उनके पुत्र राहुल गांधी को पार्टी अपना अगला अध्यक्ष ‘बैठा’ लेना चाहती है। भले ही राहुल गांधी पर यह आरोप लगते आए हैं कि वह राजनीति में अनिच्छापूर्ण घूम रहे हैं। एक खानदानी राजनीतिक परिवार से होते हुए भी वह सामान्य सी राजनीतिक घटनाओं को भी संजीदगी से नहीं ले रहे। बहुत बार राहुल गांधी की तुलना उनकी बहन प्रियंका गांधी से भी होती है, जिन्हें हर चुनाव के वक्त कांग्रेस का एक खेमा सक्रिय होने के लिए काफी जोर अजमाइश भी करता है। लेकिन शायद यह गांधी परिवार की आंतरिक इच्छा है कि वह राहुल गांधी को ही इस देश का व पार्टी का सर्वोच्चय नेता बना हुआ देखना चाहते हैं। राहुल गांधी भले ही भारतीय राजनीति में या कांग्रेस में एक अनिच्छुक चेहरा हों। बावजूद इसके उनके कई प्रयोग पार्टी के लिए काफी अच्छे रहे हैं, जैसे कि उन्होंने निचले स्तर पर पार्टी में युवाओं व पंक्ति दो के नेताओं को बेहद सक्रिय कर दिया है। जो पार्टी में अपना मुकाम बनाने के लिए बहुत मेहनत करने लगे हैं। फिर राहुल गांधी ने अपने आसपास के नेताओं की टीम में या तो आला दर्जे के प्रशासक, बुद्धिजीवी जोड़ लिए हैं या फिर वह बेहद सक्रिय युवा हैं, जो पार्टी को किसी भी मोर्चे पर पिछड़ने नहीं देना चाहते। ऐसे नेताओं के लिए अध्यक्ष अब ‘ब्रिटेन का शाही ताज’ मात्र भी रहे, तो भी चलेगा। कांग्रेस का वर्तमान काल ऐसा हो चुका है कि भले ही उसका अध्यक्ष कम अनुभवी हो, राजनीति में अनिच्छुक हो या पार्टी एवं परिवार के पास राहुल से भी बेहतर नेता हों, लेकिन राजीव गांधी, सोनिया गांधी की परिपाटी को ढोने में कांग्रेस पार्टी अभी भी दमखम रखती है।