अमेरिका में एक अश्वेत की पुलिस हिरासत में मौत से तमाम अश्वेत अमरीकी गुस्से में हैं, व्यापक पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगहों पर इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है, जिसमें एक दर्जन के करीब व्यक्तियों की मृत्यु हो गई है। प्रशासन को राजधानी वॉशिंगटन समेत 40 बड़े शहरों में रात्रि कर्फ्यू तक लगाना पड़ा है। भले ही दोषी पुलिस कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया है किंतु प्रर्दशनकारियों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा। यह घटना अमेरिका प्रशासन और उन कट्टरवादी लोगों के लिए सबक है जो पिछले कई दशकों से नस्लीय आधारित टिप्पणियों व काले रंग के लोगों को परेशान कर रहे थे।
इस घटना के बाद अब अमरीका में नस्लीय हिंसा के इतिहास पर चर्चा छिड़ गई है। काले लोगों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता ने यह साबित कर दिया है कि प्रशासन में अभी भी नस्लीय नफरत भरी हुई है। पिछले कई वर्षों से गैर-अमेरिकी नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। दु:खद बात है कि एशियाई देशों सहित दूसरे महाद्वीपों से अमेरिका आकर रहने वाले लोगों ने अमेरिका के विकास में योगदान ही नहीं दिया बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से खुद को इस जमीन के साथ जोड़ा है। बराक ओबामा के कार्यकाल में एक भी गैर-अमेरिकी की मृत्यु को गंभीरता से लिया जाता था लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में अनगिनत घटनाओं को सामान्य घटना कहकर अनदेखा किया गया है जिसका नुक्सान आज अमेरिका प्रशासन को भी भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि वे दास प्रथा के युग में रह रहे हैं। आज लोकतंत्र व तकनीक का युग है। किसी भी अमानवीय घटना के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका को शर्मिंदा होना पड़ेगा। कम से कम अब अमेरिका शासकों के पास कोई बहाना नहीं बचा कि उनके यहां नस्लीय हिंसा न हीं होती।
किसी भी राष्ट्रीयता को दबाया नहीं जा सकता। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनेता ही अपने हितों की खातिर नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा देते हैं जो आगे दर्दनाक घटनाओं का कारण बनते हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के मूलवासियों का रोजगार बचाने के नाम पर जिस प्रकार की रणनीति अपनाई है, उससे नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा मिला है। यह घटना ऐसे वक्त हुई है जब देश में कोरोना के कारण एक लाख से अधिक जानें जा चुकी हैं और 4 करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। कोराना महामारी से देश में सबसे बुरी तरह से प्रभावित लोगों में अल्पसंख्यक काले समुदाय के लोग शामिल हैं। यूं भी अमेरिका प्रशासन व अमेरिका के गोरे लोगों को यह बात मालूम होनी चाहिए कि नस्लीय भेदभाव को मिटाने के लिए उनके ही महान नेता पुत्र इब्राहिम लिंकन ने उन्नीसवीं सदी में दास प्रथा का अंत करने का गौरव प्राप्त किया था। गोरे अमेरिकियों को कट्टरवाद की विचारधारा को त्यागकर इब्राहम लिंकन की विरासत को अपनाना चाहिए।
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