बीते वीरवार को यह खबर आग की तरह फैल गई कि भारत पाकिस्तान के पानी को रोकेगा। मीडिया रिपोर्ट में यह खबर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयान के हवाले से प्रकाशित की गई। इससे अधिक अधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं था। अगले दिन गडकरी के इस बयान पर बिल्कुल चुप दिखी। दरअसल राजनीति व बिना काम इस तरह घुलमिल गई है कि वास्तविक प्रक्रिया को नजरअंदाज कर दिया जाता है। केन्द्रीय मंत्री के इस बयान को बड़े अर्थों में जोश से प्रकाशित किया गया, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी। इस खबर से नितिन गडकरी व उनकी पार्टी मीडिया में छा गई। दरअसल सिंधु जल समझौते की बारीकियों का न तो मंत्री ने जिक्र किया और न ही मीडिया ने।
पुलवामा हमले के खिलाफ देश में गुस्सा है व कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तान को घेरने के लिए उससे मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा भी छीन लिया गया है लेकिन नदियों के पानी का मामला बेहद जटिल है। वर्ष 1960 में विश्व बैंक के दखल से नदियों के पानी संबंधी दोनों देशों में जल समझौता हुआ था, जिसके तहत चिनाब व झेहलम के पानी का प्रयोग पाकिस्तान करेगा। इन नदियों का बहाव पाकिस्तान की तरफ बना रहेगा। भारत का दावा है कि समझौते के तहत भारत को भी पानी के प्रयोग का पूरा अधिकार है, वहीं दूसरी तरफ यह भी चर्चा है कि समझौते के अनुसार भारत पानी का प्रयोग इस तरीके से कर सकता है कि पानी का बहाव पहले की तरह बना रहे।
हमारे देश की राजनीति चुनावी राजनीति बन गई है, यहां बेमतलब व अर्थहीन ब्यान तुरत-फुर्त दिए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर नदियों पर बांध बनाने के निर्णय पर दोनों देशों के बीच विवाद भी रह चुका है। नि:संदेह भारत में विशेष तौर पर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में नहरी पानी की कमी है। यदि इन राज्यों को और पानी मिलता है तो यह फायदे की बात साबित होगी। लेकिन देखना यह है कि समझौते पर अंतरराष्टÑीय प्रभाव के बीच बयानबाजी व अमल में कितना अंतर है? इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पंजाब दौरे पर भी यह बात कही थी कि पाकिस्तान जाने वाला पानी पंजाब व अन्य राज्यों को दिया जाएगा।
नि:संदेह हमें नदियों के पानी की आवश्यकता है लेकिन इस मामले में धड़ाधड़ बयान देने की बजाय समझौते की तकनीकी परेशानी को दूर करने के लिए सरकार क्या कुछ कर सकती है व क्या करेगी? यह सब पहले जनता के सामने पेश किया जाना चाहिए। समझौते से जुड़े विश्व बैंक व उसके सदस्य देशों की आपत्तियों का भी विकल्प ढूंढना आवश्यक है। इस मामले को महज राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
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