गटर साफ करते मजदूरों की मौतों से उठते सवाल

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देश की राजधानी दिल्ली में छह-सात दिन के भीतर अलग-अलग स्थानों पर गटर साफ करते हुए पांच मजदूरों की मौत सफाई व्यवस्था पर कर्इं तरह के सवाल खड़े कर रही है। पहली बात तो यही कि इतने तकनीकी विकास के बावजूद आज भी गटर अंदर जाकर क्यों साफ करने पड़ रहे हैं?

दूसरा, स्वच्छ भारत अभियान में इस तरह के क्षेत्रों पर आखिर कब काम किया जाने लगेगा? क्या सफाई करते कर्मियों को बुनियादी सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध नहीं करवाए जा सकते? हालांकि इस तरह के कोई आंकड़े रखने की सुव्यवस्थित प्रणाली नहीं है। अनुमान के अनुसार हर वर्ष करीब सीवर साफ करते हुए सौ लोगों की मौत हो जाती है। 1993 से अब तक 1471 मजदूरों की मौत हो चुकी है।

देश की आजादी के 70 साल बाद भी देश के हालात नाजुक बने हुए हैं। हालांकि देश की दो प्रतिशत आबादी ऐसी भी है, जोकि सभी प्रकार की सुविधाओं के साथ विकसित यूरोपियन देशों के सम्पन्न लोगों सा जीवन बिता रहे हैं, लेकिन बहुसंख्यक आबादी गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज और बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है।

जाति व्यवस्था का ऊंच-नीच और भेदभाव देश व समाज के लिए एक कलंक के समान है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि सफाई व्यवस्था का सारा जिम्मा एक विशेष जाति या जाति व्यवस्था में बिल्कुल निचले पायदान पर स्थित लोगों के ऊपर है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया।

जब उनसे पूछा गया कि आजादी और सफाई में से आप किसे वरियता देते हैं, तो उन्होंने कहा था कि आजादी तो इंतजार कर सकती है, लेकिन सफाई तो हमें हमेशा चाहिए। उन्होंने जगह-जगह जाकर खुद सफाई की और आजादी के साथ ही स्वच्छता की अलख जगाई। वर्तमान में प्रधानमंत्री सहित सरकार के प्रमुख लोगों ने गलियों में निकल कर सफाई करके लोगों को संदेश दिया।

स्वच्छता को इतनी महत्ता दिए जाने के बाद भी सफाई की मुख्य जिम्मेदारी निभाने वाले कर्मियों की बेकद्री चिंता पैदा करने वाली है। यह बेकद्री उनकी जान को जोखिम में डाल रही है। सफाई करने के लिए अतिदलित समाज के मजदूरों को गटर की दुर्गन्ध और दमघोंटू वातावरण में प्रवेश करना पड़ता है।

सीवर में पैदा होने वाली जहरीली गैस की चपेट में आने से उनकी भयावह मौतें हो जाती हैं। ऐसा तब होता है, जब उन्हें जान बचाने वाली जरूरी सामग्री भी उपलब्ध नहीं करवाई जाती। सीवर में प्रवेश करके सफाई कर रहे मजदूरों के ऊपर मानव मल-मूत्र भी पड़ता रहता है।

आस-पास के लोग अक्सर उन्हें इन्सानियत की नजर से भी नहीं देखते हैं। यह सारा मंजर किसी भयावह दौर के संकेत देता है। भयावह यह भी है कि हमेशा दुर्गन्ध और मौत के मुंह में रहने वाले इन लोगों की जान की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। अक्सर ये मजदूर नाममात्र की दिहाड़ी पर काम करते हैं।

सवाल यह भी है कि सफाई कर्मचारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन में इतना अधिक अंतर क्यों है। स्वच्छ भारत के लिए जब सरकार ने अलग से कर वसूली की है तो सफाई का काम करने वाले लोगों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाने के लिए आखिर क्यों उपाय नहीं किए जा रहे।

दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि जान जोखिम में डाल कर सीवर की सफाई करने वाले मजदूरों के कोई आंकड़े रखने की भी कोई कोशिश नहीं हो रही है। सुरक्षित, सम्मानजनक व बराबरीपूर्ण जीवन सबका बुनियादी हक है। हाथ से मल उठाने और साफ करने की विवशता को हर हालत में समाप्त किया जाना चाहिए।

स्वच्छ भारत की दिशा में सफाईकर्मियों के रोजगार व जीवन की सुरक्षा और बेहतर वेतन की दिशा में ठोस प्रबंध होने चाहिएं। गटर साफ करते हुए हुई मजदूरों की मौतों पर देश की जनता व सरकार को चिंतन करने की जरूरत है। यह भी जरूरी है कि मृतक मजदूरों के परिजनों के बेहतर जीवन का जिम्मा सरकार वहन करे।

-अरुण कुमार कैहरबा

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