चंडीगढ़ (सच कहूँ न्यूज) हाल में केंद्र की तरफ से हरियाणा से हरियाणा से नॉन-एससीएस (गैर राज्य सिविल सेवा) कोटे से आईएएस में चयनित दो अधिकारियों की योग्यता पर सवाल उठा है क्योंकि चयन प्रक्रिया प्रारंभ होने के समय वह ग्रूप ए (क्लास वन) नहीं बल्कि ग्रूप बी (क्लास 2) अधिकारी थे।
पच्चीस अक्टूबर को केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की तरफ से जारी एक अधिसूचना से हरियाणा प्रदेश से नॉन-एससीएस कोटे से राज्य सरकार के चार नॉन-एचसीएस अधिकारियों का चयन कर आईएएस में नियुक्त किया गया है जिनमें डॉ. विवेक भारती, डॉ. हरीश कुमार वशिष्ठ, डॉ.जैन्द्र सिंह छिल्लर और डॉ. ब्रह्मजीत सिंह रंगी शामिल है। इनकी नियुक्ति आईएएस (भर्ती) नियमावली, 1954 के नियम 8 (2) और आईएएस (चयन द्वारा नियुक्ति) रेगुलेशंस, 1997 और आईएएस (प्रोबेशन) नियमावली, 1954 के नियम 3 में की गयी है।
डवोकेट हेमंत कुमार ने उठाए सवाल
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के एडवोकेट हेमंत कुमार ने उपरोक्त में से दो-डॉ. विवेक भारती और डॉ. जैन्द्र सिंह छिल्लर, जो आईएएस में चयन एवं नियुक्ति से पूर्व हरियाणा के उच्चतर शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाले प्रदेश के राजकीय (सरकारी ) कॉलेजों में बतौर वरिष्ठ असिस्टेंट/एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे, की नॉन-एससीएस से आईएएस में चयन प्रक्रिया में शामिल होने की योग्यता पर सवाल उठाते हुए देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री एवं केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सचिव को अभिवेदन कम अपील भेजकर आपत्ति जताई है कि उक्त दोनों अधिकारी चयन प्रक्रिया प्रारम्भ होने के समय चूंकि हरियाणा सरकार के ग्रुप ए (क्लास वन) नहीं बल्कि ग्रुप बी (क्लास टू) अधिकारी थे, इसलिए वह चयन प्रक्रिया में भाग लेने के लिए नियमानुसार योग्य ही नहीं थे क्योंकि इसके लिए न्यूनतम आठ वर्षों की ग्रुप ए सेवा आवश्यक है।
कुमार के अनुसार इन दोनों अधिकारियों को पिछले महीने दो सितम्बर 2022 को ही हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव की तरफ से जारी अधिसूचना से उन पर लागू सेवा नियमों में संशोधन कर उन्हें 12 वर्ष पूर्व की एक तारीख अर्थात सात अक्टूबर 2010 से ग्रुप बी से ग्रुप ए अधिकारी का दर्जा दिया गया, जो कानूनन सही नहीं है।
गंभीर सवाल
उन्होंने बताया कि हरियाणा के राजकीय कॉलेजों में कार्यरत (वरिष्ठ) लेक्चरर जिन्हें वर्षों पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर का पदनाम दिया गया था, उन्हें अक्टूबर, 2010 में तत्कालीन भूपेन्द्र हुड्डा सरकार की तरफ से आधा-अधूरा क्लास वन अधिकारी का दर्जा प्रदान किया गया था। गत दो सितम्बर को जारी अधिसूचना के जरिये वर्ष 1986 के हरियाणा शिक्षा (कॉलेज कैडर) के ग्रुप ए और ग्रुप बी सेवा नियमों में संशोधन कर उसे सात अक्टूबर 2010 से लागू किया गया है जिस पर गंभीर सवाल उठता है क्योंकि सामान्यत: कोई भी सरकारी नोटिफिकेशन उसे जारी करने की तारीख से ही लागू होती है, वर्षों पूर्व की तिथि से नहीं। देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं के पास यह संवैधानिक अधिकार हैं कि वह कोई भी नये कानून या मौजूदा कानून में किसी संशोधन को पिछली तारीख से सदन में पारित करवाकर लागू कर सकती है लेकिन कार्यपालिका अर्थात प्रदेश सरकार की अफसरशाही सेवा-नियम में संशोधन को पिछली तारीख से लागू नहीं करा सकती।
क्या है मामला
उल्लेखनीय है कि चार नियुक्तियों को लेकर दो दिन पूर्व हरियाणा सरकार के जारी एक बयान के अनुसार मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आईएएस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और राज्य सरकार की डिस्क्रिशनरी पॉवर को खत्म करने के प्रयासों के परिणाम स्वरूप राज्य के नॉन-एससीएस कोटे से चार अधिकारी आईएएस में नियुक्त हुए हैं। बयान में कहा गया है कि पहले की सरकारों के कार्यकाल के दौरान राज्य सरकार के पास डिस्क्रिशनरी पॉवर होती थी, जिसके तहत सरकार की तरफ से नामों का चयन कर आईएएस के लिए भेजा जाता था। उनमें से ही आईएएस अफसरों की नियुक्ति होती थी लेकिन श्री खट्टर ने इस प्रथा को बदलने के लिए बड़ा कदम उठाया और इस डिस्क्रिशनरी पॉवर को खत्म किया। पहली बार नॉन-एससीएस कोटे से आईएएस बनने के लिए परीक्षा का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री की इस पहल से उम्मीदवारों को पारदर्शी तरीके से पूरा मौका मिला है। लिखित परीक्षा के परिणाम के आधार पर साक्षात्कार लिए गए। पूरी चयन प्रक्रिया बड़े ही पारदर्शी तरीके से पूरी हुई और हरियाणा से चार अधिकारी आईएएस में नियुक्त हुए हैं।
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