नेताओं के लिए शैक्षणिक योग्यता तय करने में हर्ज क्या?

Qualifications, Leaders

चुनावी दौर में जन प्रतिनिधियों की डिग्री पर फिर सवाल उठाए जाने लगे है। अल्प शिक्षित उम्मीदवारों पर तंज कसे जा रहे है।हालांकि नेता बनने के लिए कोई डिग्री तय नहीं है लेकिन जब देश को आधुनिक और पूर्ण शिक्षित राष्ट्र बनाने की पहल हो रही है तो फिर राज नेताओं का भी शिक्षित होना जरूरी हो जाता है।आज जब देश में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए नीतियां बनाई जा रही है तब सहसा हमारी नजर उन नीतिनिर्धारकों पर पड़ जाती है जो अनपढ़ और अल्प शिक्षित है।चन्द माह पहले छत्तीसगढ़ में एक अनपढ़ मंत्री अपनी सपथ नहीं पढ़ सके,तो वहीं मध्यप्रदेश की साक्षर महिला मंत्री गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री के संदेश का पठन नहीं कर सकी। वहीं बीते साल कर्नाटक में 8वीं पास एमएलए जी.टी.देवगौड़ा को उच्च शिक्षा मंत्री बनाया गया।

इन उदाहरणों से समझा जा सकता है देश के ऐसे नीति निमार्ता,देश के लिए योग्य है या नहीं।अब यह सवाल उठना लाजमी है कि ऐसे अल्प शिक्षित मंत्री समझ के बिना उच्च शिक्षा के नियम कैसे बनाएंगे?जिसको शासन के मुलभूत नियमों की जानकारी नहीँ है वो भला क्या सुशासन कायम कर पायेगा!इसके इतर अगर संसद पर नजर डाले तो पता चलता है कि 23 फीसदी सांसद ऐसे है जो निरक्षरता से लेकर 12 वीं तक पास है।जिनमें से 1 निरक्षर है,5 साक्षर है,6 पांचवी पास है,9 आठवीं पास है,48 दसवी पास है और 57 बारहवीं पास सांसद हैं।वहीँ 12 सांसदों ने अपनी शैक्षणिक योग्यता नहीं बताई है।आज जब हम ‘न्यू इंडिया’ और ‘पढ़ेगा इंडिया बढ़ेगा इंडिया’की बात करते है तब नेताओं की शिक्षा को लेकर भी सवाल उठने ही चाहिये।

यह विडम्बना ही है कि हमारे संविधान में एमएलए और एमपी के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय नही की गई हैं बल्कि केवल अनुुुभव को तरजीह दी गई है।आज जब चपरासी से लेकर अफसर तक के लिए शैक्षणिक योग्यता तय है तब नेताओं के लिए उच्च शिक्षा की अनिवार्य योग्यता होनी ही चाहीये क्योंकि ये ही नियम कायदे बनाते हैं और देश को चलाते हैं। जैसे हरियाणा राज्य में पंचायत,पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्य के चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 8 वीं और 10 वीं पास अनिवार्य की जा चुकी है तब ऐसी स्थिति में एमपी और एमएलए के लिए भी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता स्नातक तक अनिवार्य किये जाने की जरूरत ओर बढ़ जाती हैं।हालांकि राजस्थान में भी पहले यही नियम बनाया गया था लेकिन सत्ता बदलते ही वर्तमान सरकार ने इसको रद्द कर दिया है।वेल एज्यूकेटेड जन नेता आज बदलते डिजिटल युग की मांग है।

उच्च शिक्षित नेता ही सही अर्थ में सार्थक नीतियाँ बना सकते है और समाज को सही दिशा दे सकते है।अगर राजनीती में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय की जाए तो इससे न केवल राजनीति में शिक्षित बुद्धिजीवी वर्ग बल्कि योग्य,उच्च शिक्षित युवा भी आगे आएंगे जिससे देश के विकास में भी बड़ा योगदान हो सकेगा।उच्च शिक्षित जनप्रतिनिधि जनहित से जुड़े मुद्दों की गहराई को आसानी से समझते हुए उसके समाधान के लिए बेहतर प्रयास कर सकते हैं जबकि अनपढ़ या अल्प शिक्षित जनप्रतिनिधि कई मुद्दों को सुलझाने में खुद उलझे रहते हैं। कई बार मुद्दों के तकनीकी पेंच को समझ नहीं पाते हैं।ऐसे में जनहित के कई महत्वपूर्ण मुद्दे गौण हो जाते है। इसके अलावा देश में अब तक राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता पर जोर नहीं दिया गया है इसके चलते आपराधिक छवि वाले लोगों का राजनीति में प्रवेश आसानी से हो जाता है।

अशिक्षित होने पर भी आपराधिक छवि के लोग जनप्रतिनिधि बन बैठते हैं। शिक्षा की अनिवार्यता से राजनीति में शिक्षित और अच्छे लोगों को आगे आने का मौका मिलेगा।उच्च शिक्षा की अनिवार्यता से युवाओं का राजनीति में भी रुझान बढ़ेगा। उच्च शैक्षणिक योग्यता को पूरी करने पर उनके लिए राजनीति में कैरियर बनाने के रास्ते खुलेंगे। साफ छवि और नए लोगों को आगे आने का मौका मिल सकेगा। इससे युवाओं के मन में राजनीति की गलत छवि भी सुधारी जा सकती है ।इसके अलावा शिक्षित जनप्रतिनिधि समाज को भी सही दिशा देने में सक्षम होंगे ।सरकारी योजनाओं का लाभ जनता को मिले और लोगों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले इसके लिए उच्च शिक्षित जनप्रतिनिधि योजना अनुसार काम करते हुए जनता की समस्याओं को बेहतर और गहरा से समझते हुए उन को लाभान्वित कर सकते हैं।

नौकरशाही में आने के लिए जहां तमाम तरह की शिक्षा व्यवस्था लागू है उससे कर्मचारी व अधिकारी वर्ग तो सरकारी कार्यों को संपादित करने में सक्षम रहते हैं लेकिन उन कार्यों को समझने में अल्प शिक्षित या अनपढ़ जनप्रतिनिधि अक्षम होते हैं ।जिसके चलते नौकरशाहों और राजनेताओं में समन्वय स्थापित नहीं हो पाता है। शिक्षित राजनेता आपसी समन्वय से नौकरशाहों को ठीक प्रकार से निर्देशित कर सकते हैं। राजनीति में उच्चतर शिक्षा की योग्यता लागू करने से राजनीतिक पार्टियों को परेशानी तो हो सकती है लेकिन अभी तक राजनीतिक पार्टियां क्षेत्रीय वर्चस्व के आधार पर उम्मीदवार का चयन करते हैं चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित। कई बार अनपढ़ जनप्रतिनिधि जनता के बीच में अपनी एक पैठ बना लेते हैं और उसी के बल पर चुनाव जीत जाते हैं लेकिन शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य करने से उनकी यह पैठ काम नहीं आएगी। केवल योग्य व्यक्ति ही मान्य होगा।आज का युुुुग तकनीक का युग है और उच्च शिक्षित जनप्रतिनिधि ही तकनीक को आसानी से समझते हुए कार्यो को श्रेष्ठ तरीके से सम्पादित कर सकते है।

देश को विकसित बनाने,विकास कार्य करवाने और शिक्षा की दिशा में अग्रसर कार्य करवाने के लिए नेताओं का उच्च शिक्षित होना आज के समय की मांग हैं।इसके अलावा जन प्रतिनिधियों के लिए रिटायरमेंट की उम्र भी तय की जानी चाहिए ताकि योग्य युवाओं को आगे आने का उचित अवसर मिल सके।इसको लेकर नियम बनाया जाना चाहिए।आज के दौर में राजनीति को रोजगार की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए।जब देश में उच्च शिक्षित बेरोजगार बढ़ रहे है तो ऐसे में राजनीति में इनको अवसर मिलना चाहिए ताकि इनको कुछ काम करने का मोका मिले।अगर हम दूसरे विकसित देशों से तुलना करें तो हम समझ सकते है कि वहां के देश के विकास में शिक्षित राज नेताओं का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा है।अब हमारे देश में पहल होनी चाहिए।

नरपत दान चारण

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