हरियाणा और महाराष्ट में विधान सभा चुनावों के लिए प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। हरियाणा की 90 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के 22 बागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। रूठों को मनाने के बावजूद वे अपने स्टैंड पर अड़े हुए हैं। दरअसल राजनीति केवल कुर्सी की जंग बनती जा रही है। यह विडंबना है कि राजनीति में समाज सेवा व योग्यता जैसे गुण गायब हो रहे हैं। जहां बागी नेता पार्टी में अपनी सेवा को टिकट के साथ तोल रहे हैं वहीं पार्टियां भी जीत हार को उम्मीदवार की एकमात्र योग्यता मान रही हैं।
बागी उम्मीदवारों में से कोई एकमात्र ही ऐसा नेता होगा जो टिकट नहीं मिलने पर यह कहे कि उसने पार्टी का आधार बनाने के लिए जी-जान से लोगों की सेवा की है। दरअसल कुछ नेता राजनीति को केवल सत्ता सुख समझकर टिकट को ही अपना आदर्श मानने लग पड़ते हैं। कोई ऐसा नेता नजर नहीं आ रहा है जिसकी टिकट कटने पर आम जनता ने पार्टीबाजी से ऊपर उठकर रोष प्रकट किया हो। अधिकतर बागी उम्मीदवार केवल टिकट नहीं मिलने पर अपने ही पार्टी के उम्मीदवार को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते हैं। चुनाव लड़ना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है लेकिन सिर्फ कुर्सी की खातिर ही राजनीति करना राजनीतिक पतन का प्रमाण है।
आज वर्कर कम और टिकट के दावेदार ज्यादा हो गए हैं। कांग्रेस ने टिकट लेने के इच्छुक नेताओं के लिए आवेदन की परंपरा शुरू की थी, लेकिन टिकट देने के लिए किस बात को आधार बनाया गया यह सामने नहीं आई। यदि पार्टियां टिकट के दावेदार कोई योग्यता या समाज सेवा का कोई नियम तय कर दें तब टिकट वितरण में पारदर्शिता भी आएगी और इससे राजनीति में सुधार व समाज में विकास होगा। फिलहाल पैसा और परिवार का राजनीतिक पृष्टभूमि ही राजनीति के लिए बड़ी योग्यता बने हुए हैं। पार्टियों के लिए जीत ही सबसे बड़ा लक्ष्य है जिसने आदर्शों को तोड़ दिया है। अच्छा हो यदि विधायकों और मंत्रियों की सुविधाओं में कटौती करने के साथ-साथ सत्ता का दुरुपयोग रोकने के लिए कदम उठाए जाएं तब कुर्सी का लालच घटेगा एवं राजनीति में जनता की सेवा की भावना भी बढ़ेगी।
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