गत वर्ष पंजाब सरकार ने भू-जल बचाव और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए धान की पूसा-44 (PUSA-44) किस्म पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस साल पुन: इस बीज के बाजार में उतरने की चर्चा है। चर्चा यह है कि एक एक शैलर संगठन किसानों को इस प्रतिबंधित धान को लगाने की अपील भी कर रहा है, हालांकि संगठन के एक वरिष्ठ नेता ने इस आरोप से इनकार किया है। दरअसल, पंजाब ने धान के लिए पानी की लागत कम करने के लिए पूसा-44 पर प्रतिबंध लगा दिया था। धान की इस किस्म की पराली भी अधिक बनती थी और फसल तैयार होने में अधिक समय लगता है।
जबकि पीआर-126, पूसा बासमती 1509 और पूसा बासमती 1692 केवल 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसी तरह गेहूं की बिजाई करने के लिए किसानों को अधिक समय मिलता है। किसान खाली खेतों में गेहूं से पहले सब्जियां या कोई अन्य फसल भी लगा सकते हैं। यह जरूरी है कि किसान पर्यावरण की बेहतरी के लिए वैज्ञानिक और तार्किक निर्णय लें ताकि खेती से मुनाफा बढ़ाया जा सके और वहां वायु प्रदूषण से भी बचा जा सके। शैलर मालिकों को भी पर्यावरण के पक्ष में मुहिम शुरु करनी चाहिए। बेहतर होगा, यदि सरकार द्वारा धान की प्रमाणित किस्मों के बारे में किसानों को अधिक जानकारी देने के लिए एक प्रचार अभियान की शुरुआत हो।