सहकारी समितियों के माध्यम से गांवों से ही हो फसल खरीद

Rigor on Farmers
कोरोना महामारी में कारोबार यहां पूरी तरह ठप्प है, वहीं अब खेती किसानी के समक्ष भी संकट खड़ा है। किसान व सरकार दोनों को फिक्र है कि कैसे खेतों में खड़ी फसल संभाली जाए ताकि महामारी पर काबू पाने के बाद भूखे ना रहना पड़े। लॉकडाउन के बीच केंद्र व राज्य सरकारें खाद्यान्न व तिलहन जो इस वक्त पककर तैयार है, को सहेजने के लिए अपने-अपने संसाधनों को चाक-चौबंद कर रही हैं। परन्तु जैसा कि कोरोना महामारी का असर है हर कोई डरा हुआ भी है। किसानों-मजदूरों को चिंता है कि वह कैसे अपनी फसल को काटकर मंडी में पहुंचाएंगे, सरकार को चिंता है कि फसल मंडी में आएगी तब बड़े स्तर पर लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर आएंगे-जाएंगे। अनाज मंडियों में किसानों, व्यापारियों, मजदूरों, अधिकारियों, कर्मचारियों, चाय नाश्ते वालों, ट्रांसपोर्ट वालों की भीड़ बढ़ेगी, जिससे कोरोना बचाव के लिए रखी जा रही सोशल डिस्टेसिंग का दायरा टूटेगा व कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ेगा।
अत: इस बार फसलों की खरीद व उनका भंडारण बड़ी चुनौती बन गया है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि किसी मुश्किल का हल नहीं इसका सबसे अच्छा उदाहरण अभी देश देख रहा है कि कैसे पुलिस, चिकित्सा स्टॉफ, समाजसेवी संस्थाएं, सरकार सब मिलकर कोरोना के विरुद्ध खड़े हैं और इस पर काबू पा रहे हैं। फसलों की खरीद में सरकार इस बार अपनी रणनीति बदलकर यदि फसलों की खरीद सीधे गांवों व खेतों से कर ले तब बहुत सी मुश्किलें हल हो सकती हैं। इस मुश्किल वक्त में सरकार का साथ कोऑपरेटिव समितियां दे सकती हैं, किसान अपने गांव में ही सहकारी समितियों पर अपनी फसल बेचें, सरकारी खरीद एजेंसी के अधिकारी-कर्मचारी सहकारी समितियों से ही फसल का उठान कर सीधे वेयरहाउस में फसल को भेजें। गांवों की सहकारी समितियों के साथ स्थानीय अनाज मंडी व लेबर को जोड़ा जाए जो फसल की सफाई व भराई में सरकार का सहयोग कर सकते हैं। इससे किसानों व ग्रामीण मजदूरों को भी चार पैसे बचेंगे। एवं सोशल डिस्टेसिंग भी बनी रहेगी।
आढ़ितयों के साथ-साथ ग्रामीण सहकारी समितियों के व्यवस्थापक भी अगर फसल खरीद एजेंट बना दिए जाएं तो फसल खरीद का कार्य बहुत कम समय में पूरा किया जा सकता है। गांवों से फसल खरीद पर किसानों-मजदूरों का अगली फसल बोने या खेत तैयार करने का भी वक्त बचेगा अन्यथा ऑनलाइन पंजीकरण से खरीद प्रक्रिया लंबी खिंचेगी जिससे किसानों के खातों में फसल का भुगतान भी लेट आएगा, अगली फसल के बीज-खाद की खरीद लेट होगी, खेत मजदूरों को उनकी मजदूरी लेट मिलेगी। कृषि उपज मंडी क्षेत्रों में उन्हीं गांवों को प्रवेश दिया जाए जो किसी भी सहकारी समिति से जुड़े नहीं हैं या यहां सहकारी समिति के पास नाममात्र की सुविधाएं भी नहीं हैं। अत: सरकार के लाख प्रयत्नों के बाद भी इस बार फसल खरीद, भुगतान, भंडारण का कार्य काफी जटिल रहेगा जो भावी वित्तीय वर्ष के लिए काफी नुक्सानदेह साबित होगा। अत: देश का सहकारी समिति तंत्र इस बुरे वक्त में देश की बहुत मदद कर सकता है ठीक ऐसे ही जैसे कि अभी पोस्ट ऑफिस सेवाएं ग्रामीण भारत की मदद कर रही हैं।

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