राजिन्द्र सिंह ने अपने हाथों से बदली कोठे इन्द्र सिंह स्कूल की नुहार
बठिंडा(अशोक वर्मा)।
कोठे इंद्र वाला का सरकारी एलिमेंट्री स्कूल अब चमकने लगा है। कई वर्ष पहले इस स्कूल की हालत ऐसी नहीं थी। गोनियाना निवासी व स्कूल के अध्यापक राजिन्द्र सिंह के प्रयासों से इस सरकारी स्कूल के अच्छे दिन आने लगे हैं। गांव वासी भी कहने लगे हैं कि राजिन्द्र सिंह ने बच्चों के हित में ‘पुण्य के काम’ का जो रास्ता अपनाया है, उस पर हर किसी की पैर रखने की हिम्मत नहीं होती ती यह काम सिर्फ ऊंची सोच वाला व्यक्ति ही कर सकता है। इस अध्यापक द्वारा यह सेवा नि:स्वार्थ की जा रही है। पिछली छुट्टियां राजिन्द्र सिंह ने गोनियाना मंडी से थोड़ी दूरी पर स्थित गांव कोठे इन्द्र सिंह वाला के स्कूल में बिताई हैं।
अध्यापक राजिन्द्र सिंह ने छुट्टियों में बाहर घूमने जाने की बजाए स्कूल में रहकर स्कूल को मॉर्डन बनाने में बिताया समय
इस अरसे दौरान पंजाब भर के हजारों अध्यापक सैलानी स्थानों की सैर करने गए परन्तु इस स्कूल के अध्यापक राजिन्द्र सिंह ने इस समय का प्रयोग स्कूल को मॉर्डन दिशा प्रदान करने के लिए किया है। उसने स्कूल की दीवारों पर बहुत सुंदर पेंटिंग बनाईं, जिनमें जंगल का दृश्य, इंद्र धनुष, डोरेमोन, बत्तखें आदि शामिल हैं। इस कलाकारी का मुख्य उद्देश्य सरकारी स्कूल को भी प्राईवेट स्कूल की तरह खूबसूरत व आर्कषण का केंद्र बनाना है, जिससे यहां पढ़ने आने वाले बच्चे खुश व कुछ सीख कर समाज में अन्यों को शिक्षा दें।
बच्चों में आत्मविश्वास की भावना पैदा करने के लिए साफ सुथरी वर्दियां व गले में पहचान पत्र पहनकर रखने भी इसी ही अध्यापक ने सिखाए हैं। बच्चों में देश भक्ति की अलख जगाने के लिए कमरों में चंद्र शेखर आजाद, शहीद भगत सिंह व कल्पना चावला की तस्वीरों भी लगाई हैं। इन सबके के लिए स्कूल के पास न तो कोई फंड था व न ही पिछले दो वर्षों से स्कूल और किसी अनुदान राशि की सरकारी मेहर हुई है गांववासी बताते हैं कि रंग खराब होने से स्कूल की इमारत की छवि ही बिगड़ गई थी यही नहीं कमरों को मुरम्मत की भी जरूरत थी इसे राजिन्द्र सिंह का जुनून ही कहा जा सकता है कि उन्होंने सारा खर्च वेतन रूपी अपनी नेक कमाई में से किया, जिससे स्कूल की नुहार ही बदल गई।
राजिन्द्र सिंह ने स्कूल में डिजिटल पुस्तकालय, स्मार्ट क्लास रूम और कंप्यूटर रूम भी अपने हाथों से तैयार किया है। अपने विद्यार्थियों के साथ खड़े मास्टर रजिन्दर सिंह ने बताया कि पेंटिंग, बिजली व लकड़ी का काम उसने अपने हाथों से किया है। यह काम भी उस वक्त जब स्कूल में वह अकेला ही था क्योंकि इस स्कूल में अध्यापकों के दो पद थे, जिनमें से एक सेवानिवृत हो गया था।
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