पंजाब के विधायक कुलबीर सिंह जीरा ने शराब की तस्करी के अहम खुलासे किए हैं। जीरा ने शराब माफिया व पुलिस प्रशासन की मिलीभगत का ईशारा किया। एकदम से इन आरोपों के पीछे जीरा की मंशा को भी पाक-साफ करार नहीं दिया जा सकता लेकिन पुलिस पर नशा माफिया की मिलीभगत ही नशा तस्करी रोकने में सबसे बड़ी बाधा है। इस पर रह-रहकर आवाजें उठ रही हैं। यूं भी जीरा ने यह बातें केवल हवा में नहीं की बल्कि मंच से उन्होंने दर्ज मामलों की सूची भी जारी की, जो राजनैतिक रूसूख के कारण रद्द कर दिए गए, लेकिन कांग्रेस व पुलिस इस मामले में दोहरी नीति अपना रही है। कांग्रेस प्रधान ने विधायक जीरा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है।
यह सभी घटनाएं पुलिस के साथ-साथ राजनीति पर भी सवाल खड़े करती हैं। विधायक ने एक आईजी पर शराब के ठेकेदार का पक्ष लेने का आरोप लगाया है। भले ही ठेकेदार इन आरोपों को नकार रहा है लेकिन पुलिस का एक उच्च अधिकारी इस बात की पुष्टि करता है कि पुलिस प्रबंध की खामियों के कारण नशा तस्करी नहीं रुक रही। शराब का मामला होने के कारण यह बात भी सामने आ रही है कि पंचायती चुनावों के दौरान शराब खुलेआम बांटी गई। यहां जीरा पर आरोप लग रहे हैं कि वह शराब की कमाई में हिस्सा मांग रहे हंै।
जब राजनेता और पुलिस ही भ्रष्ट होगी एवं खुद पुलिस अधिकारी ही स्वीकार करें यहां कि पुलिस भ्रष्ट है तब सुधार कैसे होगा? यही सब अकाली भाजपा सरकार के समय में भी हुआ। जब जेलों में खुलेआम चिट्टा पहुंच रहा था और मंत्रियों के साथ-साथ उनके पुत्रों, भाई, भतीजों के नाम बोले जा रहे थे कि वह नशा बिकवा रहे हैं। मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने चुनाव से पहले चार सप्ताह में नशा खत्म करने की धार्मिक शपथ ली थी। नशा बिकना तो जरूर कम हुआ है लेकिन बंद नहीं हुआ। नशा खत्म करने की जरूरत है। भले ही यह चार सप्ताह की बजाए चार महीनों में खत्म हो जाए।
यूं भी हैरानी वाली बात यह है कि पंजाब सहित केंद्र सरकार ने अभी तक शराब को नशा ही नहीं माना, जो समाज बुरी तरह लील रही है। विधायक जीरा का मामला शराब की तस्करी के साथ-साथ राजनीति से भी जड़ा हुआ है, फिर भी यह बात सामने आ ही गई है कि गैर कानूनी कार्यों में पुलिस की भूमिका भी ईमानदाराना नहीं है। पता नहीं कितने राजनेता शराब तस्करी में हिस्से बंटा रहे हैं? जीरा के विरुद्ध पार्टी का अनुशासन भंग करने की कार्रवाई से पहले यह भी जरूरी है कि सरकार शराब तस्करी के धंधे के पछे के सत्य को सामने लाए। बेहतर हो यदि लोकप्रतिनिधि शराब को समाज के लिए एक कलंक मानकर इसकी बिक्री को घटाएं और धीरे -धीरे इस पर पाबंदी लगाने का बीड़ा उठाएं।
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