सरकारी स्कूल बंद करके जिम्मेदारी से भागी पंजाब सरकार

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पंजाब सरकार के शिक्षा प्रबंधों का हाल यह है कि अगर पैर में कोई बीमारी हो जाए तो पैर का ईलाज करवाने की बजाए इसे शरीर से अलग ही कर दिया जाए। सरकार ने 20 विद्यार्थियों से कम वाले 800 सरकारी प्राथमिक स्कूलों को बंद करने का एकतरफा फैसला ले लिया है। शिक्षा कोई मशीन नहीं, जो बिल्कुल नकारा होने पर कबाड़ में बेच दी जाए।

दरअसल सरकार बीमारी का ईलाज करने की बजाए उसके लक्षणों का हल ढूंढ़ रही है। सरकार ने बिना किसी ठोस नीति तैयार किए निचले स्तर पर पढ़ा रहे अध्यापकों की कोई समस्या तक नहीं पूछी कि आखिर प्राथमिक स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या इतनी कम क्यों है? इन गांवों में बहुत से बच्चे गांवों में बने निजी स्कूलों या आसपास के निजी स्कूलों में पढ़ते हैं।

जिन सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के बैठने के लिए कमरों का प्रबंध नहीं होगा, पढ़ाई का साजो सामान नहीं होगा तो वहां प्राईवेट स्कूलों की फीस भरने में समर्थ अभिभावक अपने बच्चों को क्यों भेजेंगे? सरकार प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा के बुरे हाल प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाने की बजाए समस्या बने स्कूलों को जड़ से ही खत्म करने की तरफ चल पड़ी है, जो शिक्षा प्राप्ति अधिकार कानून के बिल्कुल विपरित है।

शिक्षा अधिकार कानून का उद्देश्य 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त व लाजिमी शिक्षा उपलब्ध करवाना है। सरकार के ताजा निर्णय से यदि स्कूल बंद होते हैं तो कई बच्चे स्कूल जाना छोड़ देंगे और अभिभावकों के साथ घर के काम में व्यस्त होकर अनपढ़ता के कुएं में गिर जाएंगे। इसी प्रकार सरकार का स्कूल बंद करने का फार्मूला अनपढ़ता के दायरे को भी बढ़ेगा।

यदि इन स्कूलों में शिक्षा का बेहतर प्रबंध हो तो तीन करोड़ की आबादी वाले पंजाब में ऐसा कोई ही गांव होगा जहां 20 विद्यार्थी न हों। यह अलग बात है कि सरकार की नीतियों ने बच्चों को सरकारी स्कूलों में आने लायक छोड़ा ही नहीं। यह भी हैरानी वाली बात है कि सरकार सिद्धांतों के विपरित जाकर विकास के दावे कर रही है। सिद्धांत यही कहता है कि जहां शिक्षा का प्रसार नहीं वहां प्रयास करो।

शहरों व कस्बों में तो सरकारी व निजी स्कूल हैं लेकिन दूर-दराज के गांवों में यह समस्या विकराल है। सरकार इन गांवों को चुनौती के तौर पर स्वीकार कर अपने प्रोगराम में शामिल करे। इन गांवों में ही शिक्षा की ज्योति जगाना ही तो सरकार की उपलब्धि होगी। बड़े छोटे शहरों वाले तो पढ़ ही जाएंगे। बात तो गांवों के स्कूलों की है जिन्हें सुधारने की जरूरत है न कि उन्हें बंद करने की। यह निर्णय तर्कहीण व जन विरोधी निर्णय है जिस पर पुर्न:विचार करने की आवश्यकता है।

 

 

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