आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद पंजाब सरकार ने पराली न जलाने वाले किसानों को वित्तीय मदद देने की घोषणा करते हुए इस समस्या को सुलझाने की पहल की है। प्रदेश सरकार पांच एकड़ तक की जमीन के मालिक किसानों को 2500 रुपए देगी। भले ही यह रकम बहुत कम है फिर भी शुरूआत अच्छी है। हालांकि पंजाब व हरियाणा की सरकार ने पराली को समेटने वाले कृषि यंत्रों पर सब्सिडी भी मुहैया करवाई थी, गांवों में जागरूकता रैलियां व कृषि विभाग ने जागरूकता कैंप लगाकर भी पराली समस्या से निपटने की पहल की थी।
प्रदेश सरकार ने केंद्र से प्रति क्विंटल पराली 100 रुपए मांगे थे, यदि यह निर्णय धान की कटाई से दो माह पूर्व लिया जाता तब इसके अच्छे परिणाम आ सकते थे। पराली जलाने से दिल्ली सहित हरियाणा के चार पांच जिलों की हवा बहुत खतरनाक हो जाती है। हरियाणा के कई जिलों में स्कूलों में छुट्टियां भी करनी पड़ी हैं। यदि केंद्र सरकार राज्य की आर्थिक मदद करे तब कई अन्य राज्य भी पंजाब जैसी घोषणा कर सकते हैं। पंजाब सरकार की योजना के पीछे यह तर्क भी वाजिब है कि कि छोटे किसानों पर पराली को समेटने के लिए खर्च का बोझ नहीं पड़ना चाहिए। कोई भी समस्या ऐसी नहीं, जिसका समाधान नहीं हो सकता। नि:संदेह सही समय पर काम करने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए।
केंद्र व राज्य सरकारें लोगों के स्वास्थ्य के लिए अरबों रुपए का बजट आरक्षित रखती हैं। यदि बजट का छोटा सा हिस्सा किसानों पर खर्च किया जाए तब यह ‘एक पंथ-दो काज’ वाली बात होगी। दरअसल कृषि पहले ही घाटे का सौदा बन चुकी है और विशेष तौर पर छोटे किसान पराली समेटने के लिए महंगी मशीनरी खरीदने में असमर्थ हैं। किसानों को वित्तीय मदद देना ही पराली की समस्या का एकमात्र समाधान है। कुछ प्राईवेट संस्थाएं भी पराली का समाधान निकालने के लिए प्रयत्नशील हैं। सरकार इन संस्थाओं के साथ मिलकर समस्या का का स्थायी समाधान निकाल सकती हैं। बेहतर हो यदि केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय मदद देकर किसानों के बोझ को हलका करे। मुकदमे दर्ज करने से समस्या का समाधान संभव नहीं, बल्कि यह किसानों पर अत्याचार होगा। कृषि की स्थिति सरकारों से छिपी हुई नहीं। खाद, बीज व कीटनाशकों की कीमतों में वृद्धि होने से किसानों पर बोझ बढ़ा है। यही बेहतर पहल होगी यदि वातावरण की शुद्धता में पूरा देश अपनी जिम्मेदारी निभाए और अपना आर्थिक योगदान दे।
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